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बच्चों के सिर के आकार से जुड़ी बातें - जन्म के समय शिशुओं के सिर का बेडौल होना या सिर का अजीब सा आकार होना एक सामान्य बात है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जन्म लेने वाले शिशु के सिर की हड्डियां लचीली एंव नर्म होती हैं और हड्डियों की परतों के बीच खोखलापन होता है। इससे कुदरती प्रसव (बिना सर्जरी/आॅपरेशन) होने पर संकरे जनन मार्ग से शिशु को बाहर निकलने में आसानी होती है।
कुदरती प्रसव के दौरान जब कोई बच्चा सिर की ओर से गर्भ से बाहर आता है तो इस संकरे जनन मार्ग से शिशु के सिर पर दबाब बनता है जिससे जन्म ले रहे शिशु का सिर अंडाकार हो जाता है और शिशु आसानी से बाहर आ जाता है। यही वजह है कि नये पैदा होने वाले शिशुओं का सिर अक्सर थोड़ा लंबा या फिर टेढ़ा-मेढ़ा हो जाता है। इस प्रक्रिया को डाॅक्टरी बोलचाल में मोल्डिंग कहा जाता है।
हालांकि बहुत कम मामलों में शिशु के सिर के बेडौल होने के पीछे अन्य वजहें होती हैं लेकिन फिर भी आपको लगता है कि आपके शिशु के सिर का आकार बेडौल है तो आप डाॅक्टर की सलाह ले सकती हैं।
शिशु को सिर के असमान होने की ज्यादातर शिकायतें आमतौर पर उसके पैदा होने के बाद ही मिलती हैं पर क्रैनियोसिनोस्टोसिस वह समस्या है जो गर्भ के अंदर भी हो सकती है। जब नये पैदायशी शिशु के सिर की नरम हड्डियों के रेशेदार तंतु जल्दी विकसित होकर आपस में जुड़ कर कठोर हो जाते हैं तो शिशु के सिर का आकार असमान हो जाता है। इसे ही क्रैनियोसिनोस्टोसिस कहा जाता है।
1.शिशु के सिर का असमान आकार का लम्बे समय तक खत्म न होना
2.सिर मे किसी खास जगह पर गुम्मड़/उभार होना
3.शिशु के शरीर के विकास के साथ उसके सिर में कम या बिल्कुल बढ़त न होना जो शिशु के दिमाग के आकार के बढ़ने पर असर करता है।
क्रैनीओसिनोस्टोसिस का इलाज केवल सर्जरी के जरिए ही मुमकिन है जिससे यह तय हो सके कि शिशु सिर के अंदर मुनासिब जगह हो और शिशु को दिमाग अच्छे से बढ़ सके। सर्जरी के जरिए समय से पहले जुड़ कर कठोर हो चुके खोपड़ी के रेशेदार तंतुओं को खोल दिया जाता है जिससे शिशु की खोपड़ी का आकार बढ़ने लगता है और यह दिमागी बढ़त पर होने वाले दबाब को भी खत्म कर देता है।
आमतौर पर शिशु के सिर के चपटेपन में सुधार लाने के लिए किसी तरह के डाॅक्टरी इलाज की जरूरत नहीं होती बल्कि इसे कुछ घरेलू नुस्खों को अपनाकर ठीक किया जा सकता है जैसे-
ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि शिशुओं के सिर का आकार हमेशा बेडौल नहीं रहता। लगभग 9-18 माह के होने तक सभी शिशुओं में सिर की हड्डियों के बीच की खोखली जगह भर जाती है, हड्डियां आपस में जुड़ जाती हैं और वहां मांस आ जाता है जिससे शिशु के सिर का आकार सुडौल और गोल हो जाता है।
कुदरती प्रसव के दौरान जब कोई बच्चा सिर की ओर से गर्भ से बाहर आता है तो इस संकरे जनन मार्ग से शिशु के सिर पर दबाब बनता है जिससे जन्म ले रहे शिशु का सिर अंडाकार हो जाता है और शिशु आसानी से बाहर आ जाता है। यही वजह है कि नये पैदा होने वाले शिशुओं का सिर अक्सर थोड़ा लंबा या फिर टेढ़ा-मेढ़ा हो जाता है। इस प्रक्रिया को डाॅक्टरी बोलचाल में मोल्डिंग कहा जाता है।
कब चिंता करने की जरूरत है? बच्चों के सिर के आकार से जुड़ी बातें
हालांकि बहुत कम मामलों में शिशु के सिर के बेडौल होने के पीछे अन्य वजहें होती हैं लेकिन फिर भी आपको लगता है कि आपके शिशु के सिर का आकार बेडौल है तो आप डाॅक्टर की सलाह ले सकती हैं।
शिशुओं के सिर में असमानता का कारण और इलाज
क्रैनियोसिनोस्टोसिस
शिशु को सिर के असमान होने की ज्यादातर शिकायतें आमतौर पर उसके पैदा होने के बाद ही मिलती हैं पर क्रैनियोसिनोस्टोसिस वह समस्या है जो गर्भ के अंदर भी हो सकती है। जब नये पैदायशी शिशु के सिर की नरम हड्डियों के रेशेदार तंतु जल्दी विकसित होकर आपस में जुड़ कर कठोर हो जाते हैं तो शिशु के सिर का आकार असमान हो जाता है। इसे ही क्रैनियोसिनोस्टोसिस कहा जाता है।
क्रैनियोसिनोस्टोसिस के लक्षण
1.शिशु के सिर का असमान आकार का लम्बे समय तक खत्म न होना
2.सिर मे किसी खास जगह पर गुम्मड़/उभार होना
3.शिशु के शरीर के विकास के साथ उसके सिर में कम या बिल्कुल बढ़त न होना जो शिशु के दिमाग के आकार के बढ़ने पर असर करता है।
क्रैनियोसिनोस्टोसिस का इलाज (bacchon ke sir ke aakar se judi baatein)
क्रैनीओसिनोस्टोसिस का इलाज केवल सर्जरी के जरिए ही मुमकिन है जिससे यह तय हो सके कि शिशु सिर के अंदर मुनासिब जगह हो और शिशु को दिमाग अच्छे से बढ़ सके। सर्जरी के जरिए समय से पहले जुड़ कर कठोर हो चुके खोपड़ी के रेशेदार तंतुओं को खोल दिया जाता है जिससे शिशु की खोपड़ी का आकार बढ़ने लगता है और यह दिमागी बढ़त पर होने वाले दबाब को भी खत्म कर देता है।
पोजीशनल प्लैगियोसेफली (सिर में चपटापन)
- जन्म के बाद शिशु के सिर के आकार को लेकर जो परेशानी सबसे आम है, वो है फ्लैट हैड या सिर का चपटा होना जिसे डाॅक्टरी भाषा में पोजीशनल प्लैगियोसेफली भी कहा जाता है।
- शिशु के सिर में चपटापन खासतौर पर उसके लेटने के गलत तरीके की वजह से होता है। कुछ मामलों में शिशु के समय से पहले जन्म लेने या गर्भ में जुड़वा बच्चों के होने पर भी पैदायशी शिशु के सिर में चपटेपन की शिकायत हो सकती है। इसकी वजह से शिशु की खोपड़ी या दिमागी बढ़त पर असर होने जैसी परेशानियां नहीं होती सिवाय सिर का बेडौल होने या असमान आकार होने के.
पोजीशनल प्लैगियोसेफली का इलाज
आमतौर पर शिशु के सिर के चपटेपन में सुधार लाने के लिए किसी तरह के डाॅक्टरी इलाज की जरूरत नहीं होती बल्कि इसे कुछ घरेलू नुस्खों को अपनाकर ठीक किया जा सकता है जैसे-
- सोते समय शिशु को लम्बे समय तक एक ही स्थिति में लेटे रहने से बचाएं और कुछ समय बाद उसकी करवट बदलते रहें।
- शिशु के सिर के नीचे राई/सरसों के तकिये का इस्तेमाल करें।
- हालांकि सिर के चपटेपन को सुधारने के लिए कुछ डाॅक्टरी उपाय भी मौजूद हैं पर इनकी जरूरत बहुत खास परिस्थितियों में ही होती है जैसे कि फिजियोथैरेपी या हैलमेट थैरेपी।
ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि शिशुओं के सिर का आकार हमेशा बेडौल नहीं रहता। लगभग 9-18 माह के होने तक सभी शिशुओं में सिर की हड्डियों के बीच की खोखली जगह भर जाती है, हड्डियां आपस में जुड़ जाती हैं और वहां मांस आ जाता है जिससे शिशु के सिर का आकार सुडौल और गोल हो जाता है।