Chhath Puja 2023 : हिंदू धर्म की समृद्ध संस्कृति में अनेक त्योहारों का अपना विशिष्ट महत्व है। इनमें से छठ महापर्व एक ऐसा पर्व है जो अपनी अनूठी परंपराओं और आस्था के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में विशेष स्थान रखता है। सूर्य देव की अराधना का यह पावन पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, जिसमें श्रद्धालु सूर्य देव से सुख-समृद्धि और खुशहाली का वरदान मांगते हैं।
छठ महापर्व की उत्पत्ति का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। मान्यताओं के अनुसार, महाभारत काल में द्रौपदी ने इस पर्व को विराट नगरी में किया था, जिसके फलस्वरूप पांडवों को युद्ध में विजय प्राप्त हुई थी। तभी से छठ महापर्व का प्रचलन शुरू हुआ और आज यह पूर्वांचल के राज्यों में ही नहीं, बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों में भी बड़े ही श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
Chhath Puja 2023
छठ महापर्व चार दिनों में मनाया जाता है। प्रत्येक दिन की अपनी अलग ही परंपरा और महत्व है।
पहला दिन: नहाय-खाय
छठ महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस दिन श्रद्धालु सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी या तालाब में स्नान करते हैं और फिर घर लौटकर शुद्ध वस्त्र धारण कर भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन के भोजन में सात्विक व्यंजन जैसे खीर, फल और दूध शामिल होते हैं।
दूसरा दिन: खरना
छठ महापर्व का दूसरा दिन खरना कहलाता है। इस दिन श्रद्धालु सूर्य देव को गुड़ से बनी खीर का भोग लगाते हैं और खुद भी इस खीर का प्रसाद ग्रहण करते हैं। यह प्रसाद पूरी तरह से सात्विक होता है और इसमें किसी भी तरह के मसाले या नमक का प्रयोग नहीं किया जाता है।
तीसरा दिन: लोहंडा
छठ महापर्व का तीसरा दिन लोहंडा कहलाता है। इस दिन श्रद्धालु शाम के समय सूर्यास्त के बाद घर के बाहर एक छोटा सा मंडप बनाते हैं और उसमें सूर्य देव की प्रतिमा स्थापित करते हैं। इसके बाद, श्रद्धालु सूर्य देव की पूजा-अर्चना करते हैं और उन्हें तरह-तरह के प्रसाद अर्पित करते हैं।
चौथा दिन: सूर्योदय को अर्घ्यदान
छठ महापर्व का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन सूर्योदय को अर्घ्यदान होता है। इस दिन श्रद्धालु सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी या तालाब में जाते हैं और वहां सूर्य देव को अर्घ्यदान करते हैं। अर्घ्यदान के बाद, श्रद्धालु सूर्य देव से अपने परिवार की खुशहाली और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
छठ महापर्व के दौरान श्रद्धालु कई तरह के व्रत और नियमों का पालन करते हैं। वे पूरे चार दिनों तक केवल एक ही बार भोजन करते हैं और वह भी सात्विक भोजन होता है। श्रद्धालु इस दौरान किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करते हैं और अपने शरीर और मन को पूरी तरह से शुद्ध रखते हैं।
छठ महापर्व सिर्फ एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा, विश्वास और समर्पण का प्रतीक है। इस पर्व के माध्यम से श्रद्धालु सूर्य देव को अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और उनसे सुख-समृद्धि और खुशहाली का वरदान मांगते हैं। छठ महापर्व की सादगी और पवित्रता इसे भारतीय संस्कृति का एक अनमोल रत्न बनाती है।