Lohri festival 2024: जानें तारीख़, इतिहास, महत्व और मनाने का तरीक़ा

लोहड़ी का त्यौहार पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तर प्रदेश जैसे प्रदेशों में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। बच्चे और बूढ़े इस त्योहार को चाव और उल्लास के साथ मनाते हैं। इस दिन लोग अपने घरों के बाहर लकड़ियाँ और उपले लगा कर इस त्योहार को मनाते हैं।

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Mandie Panesar
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Know Date, History, Significance And How To Celebrate Lohri (Image Credit: Freepik)

Know Date, History, Significance And How To Celebrate Lohri: लोहड़ी का त्यौहार पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तर प्रदेश जैसे प्रदेशों में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। बच्चे और बूढ़े इस त्योहार को चाव और उल्लास के साथ मनाते हैं। इस दिन लोग अपने घरों के बाहर लकड़ियाँ और उपले लगा कर इस त्योहार को मनाते हैं। लोगों का मानना है कि इस दिन से उत्तर भारत की सर्दी के अंत की शुरुआत होती है यानि कि इस दिन से सर्दी का मौसम किमी होने लगता है और कोहरे और धुँध से भरे दिन खुलने लगते हैं।

जानें तारीख़, इतिहास, महत्व और मनाने का तरीक़ा

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इस दिन लोग सूर्या और अग्नि की पूजा करते हैं । आइए हम जानते हैं कि इस साल लोहड़ी किस तिथि पर पड़ रही है, इस त्योहार का क्या महत्व है और यह कैसे मनाया जाता है।

लोहड़ी की तिथि

लोहड़ी हमारे देश में हर साल मकर सक्रान्ति से एक दिन पहले मनायी जाती है। मकर सक्रान्ति 14 जनवरी को है और लोहड़ी 13 जनवरी को मनायी जाएगी।

लोहड़ी का इतिहास

लोहड़ी मनाने के पीछे का ख़ास कारण यह माना जाता है कि मुग़ल बादशाह अकबर से समय एक जिमींदार हुआ करता था जिसका नाम दुल्ला भट्टी था। वो औरतों और लड़कियों की ख़रीदो-फ़रोकत करने वाले लोगों को मार कर लड़कियों को ग़ुलाम होने से बचाता था। उसका शुक्रिया करने के लिए औरतों ने मिलकर लकड़ियों और उपलों की धूनी लगाकर इस त्योहार को मनाना शुरू किया और उसकी तारीफ़ में गाना भी गाया जाता था।

लोहड़ी का महत्व

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जैसे हमने ऊपर बात की कि दुल्ला भट्टी नाम का डाकू लड़कियों को ग़ुलामी से बचाता था। इसके इलावा यह किसानों के लिए पुरानी फसलें काटने और नयी फसलों को बीजने का समय होता है तो लोग कड़कती हुई सर्दी को भगाने के लिए घरों के बाहर लकड़ियाँ और उपले जलाते हैं और कामना करते हैं कि यह सर्दी का मौसम जल्दी निकल जाये। लोग अग्नि के चारों और चक्कर काटते हुए गाते हैं 'ईशर आये, दलिद्दर जाए। दलिद्दर दी जड़ चुल्ले पाए। जिसका अर्थ है कि ईश्वर जल्दी से जल्दी उनके घरों से दलिद्दर को दूर कर दे और उनके घर भगवान का वास हो।

कैसे मनाया जाता है?

लोहड़ी वाले दिन सब लोग पहले सूरज की पूजा करते हैं और फिर बच्चे और ज्वान लड़के-लड़कियाँ अपने आस-पास के घरों में लोहड़ी के गीत गाते हुए शगुन लेने जाते हैं। औरतें घरों में तरह-तरह के पकवान बनाती हैं। जिन घरों में इसी साल लड़के का जन्म या शादी हुई हो, वो लोग कुछ दिन पहले ही जश्न मनाना शुरू कर देते हैं और इस त्योहार को धूमधाम और शान से मनाते हैं।

शाम को सब लोग इकट्ठे हो कर लकड़ियाँ और उपले एक जगह लगाकर उन्हें जलाते हैं और अग्नि की पूजा करते हैं। इस पूजा का अर्थ है कि हमारे घरों में सुख-शांति का वास हो और आमी वाली ज़िंदगी में उन्हें काम करने का उद्यम मिले। फिर लोग धूनी के फेरे लेते हूए गाना गाते हैं और मूँगफली और रेवड़ियाँ खाते हैं। फिर लोग बैठ कर बातें करते हैं और आग सेकते हैं। लोगों का मानना है कि लोहड़ी की आग से सर्दी कम होती है और मौसम खुलने लगता है।

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इस तरह उत्तर भारत में नये साल का आग़ाज़ इस शांति प्रिय और आने वाले समय के लिए अच्छी कामनाओं से भरा हुआ होता है।

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