हमारी माँए हमारे जन्म से पहले ही खुद को परफेक्ट बनाने की कोशिश करती हैं। वे अपने बच्चों के भलाई और खुशी के लिए अपने आप को सैक्रिफाइस करने तक को तैयार रहती हैं। हालांकि इस टेन्डेन्सी के पीछे उनके मन में अपने बच्चो के प्रति प्यार होता है, वे भूल जाते हैं के उनके बच्चे भी उनसे प्यार करते हैं। उनका परिवार भी उनसे प्यार करता है। अगर मां परफेक्ट होने के प्रयास में दुखी हो जाए या दुखी रहे, तो भी बच्चा खुश नहीं हो सकता।
बच्चे को जन्म देकर माँ “बनना” आसान है मगर बच्चे की पालन पोषण कर, माँ रहना आसान नहीं। जन्म से लेकर कई महीनों तक बच्चे बोल नहीं सकते। वे अपने भावनाओ, ज़रूरतों या परेशनियों को शब्दो में एक्सप्रेस नहीं कर सकते। ना ही वे अपने माता पिता को 'धन्यवाद' बोल सकते हैं।
ऐसे में जब बच्चा रोता है तो माता पिता को उनकी जरूरतें समझने में कठिनाई होती है और इसके कारण वे स्ट्रेस महसूस करते हैं। आगे जाकर भी, बच्चे के हर परेशानी के लिए माँ खुद को दोषी मानती हैं। मगर ऐसा क्यों होता है?
1. सोशल एक्सपेक्टेशन
स्मज ने महिलाओं के मन में अपने बच्चे के लिए “परफेक्ट” होने का बीज बो दिया है। इसका एक उदाहरण है की छोटे बच्चे को लेकर बाहर जाना माता पिता के लिए कठिन काम है, मगर समाज मां को ही जज करता है। जब ट्रेन, प्लेन, बस या होटल में बच्चा रोता है तो लोग मां की तरफ जजमेंटल नज़रों से देखते हैं और मां को शर्मिंदगी महसूस होती है।
यह सही नहीं है, सामाजिक प्रम्पराओं हऔर स्टेरोटाइप को इंटरनलाइस करने के कारण माताए खुद को ही दोष देता है। कई औरतें इस कारण से मां बनने के बाद बाहर जाना ही छोड़ देती है या कम कर देते हैं।
2. रोल स्टीरियोटाइपिंग
बिना पिता के कोई औरत गर्भवती नहीं हो शक्ति, फिर भी बच्चे की पालन पोषण की जिम्मेदारी लोग माता को ही देते हैं। इसके कारण कई औरत मां बनने के बाद अपने करियर को छोड़ कर बच्चों को पालने में अपना सारा ध्यान लगाते हैं। इसके कई बुरे परिणाम होते हैं। पहला, कमाने का सारा भार पिता पर आ जाता है, जो की बहुत तनावपूर्ण होता है।
दूसरा, पिता की कई वजह से कमाई बंद हो शक्ति है, जैसे की इकनॉमिक रिसेशन , स्वास्थ्य बिगड़ना, आदि। ऐसे में परिवार की साड़ी कमाई 100% बंद हो जाएगी। तिसरा, औरत डिपेंडेंट हो जाएगी, और उसे हर चीज के लिए किसी को पूछना होगा।
कई परिवार में इस कारण से औरत/मां की इज्जत नहीं होती है। चौथा, किसी कारणवश अगर माता को अकेला रहना पड़े, वह मुश्किल में पढ़ जाएगी। हमे बच्चे के पालन पोषण में पिता की जिम्मेदारी को समझना चाहिए और सारा भर मां को नहीं देना चाहिए।
3. माँ का ओवर ग्लोरिफिकेशन
मां बनने के बाद औरत “सुपर वुमन” या देवी नहीं बन जाती। वो इंसान ही रहती है। ईश्वर परफेक्ट होता है, इंसान को गलती करने की इजाजत है। हमारे समाज में माता को "देवी" के रूप में दर्शाया जाता है, जिसके कारण मां बनने के बाद औरत पर देवी के तरह परफेक्ट होने का बड़ा बोझ आ जाता है। मां परफेक्ट बनने के प्रयासों में खुश रहना भूल जाती है।
माँ बनने के बाद औरत का अस्तित्व बस "माँ" का नहीं होना चाहिए। माँ भी इंसान है, औरत है, किसी की बेटी, किसी की पत्नी, किसी की बहू, किसी की बहन, किसी की बॉस और किसी की जूनियर है। मां सिर्फ औरत के जीवन का एक हिस्सा है, उसका पूरा अस्तित्व नहीं।
हमें औरत के अस्तित्व को मां से नहीं जोड़ना चाहिए। माँओ को अपने जीवन अपने तरीके से जीने की और खुश होने का स्कोप देना चाहिए। माँओ को इंडिपेंडेंस देना चाहिए, उन्हे अपने करियर और शौक को पर्स्यु करने पर पर टोकना नहीं चाहिए। आखिर माँ खुश तो हम सब खुश।