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Photograph: (Pinterest+ Lalitha sampathi)
21वीं सदी में जहां तकनीक ने दुनिया को एक क्लिक पर ला दिया हैं, वहीं भारत में आज भी लाखों ग्रामीण महिलाएं हैं जो आज भी डिजिटल दुनिया की चौखट पर खड़ी हैं। स्मार्टफोन, इंटरनेट और डिजिटल सेवाएं उनके लिए सपने जैसा हैं- दूरी, डर और एक ऐसा दरवाजा जहां वे जाना तो चाहती हैं पर पहुँच के अभाव में सीमित रह जाती हैं। उन्हें अक्सर यह सिखाया जाता हैं कि डिजिटल दुनिया उनके लिए नहीं बनी है- उनकी दुनिया चारदीवारी तक ही सीमित हैं। जब एक महिला अपनी आर्थिक आवश्यकताओं के लिए ऑनलाइन बैंकिंग नहीं कर सकती, सरकारी योजनाओं की जानकारी नहीं पा सकती, या अपनी बात सोशल प्लेटफॉर्म/मीडिया पर नहीं रख सकतीं- तो उसका सशक्तिकरण अधूरा रह जाता हैं। इसे समझना बेहद जरूरी बन जाता हैं कि महिलाएं आज भी तकनीकि की पहुँच से दूर क्यों है।
Digital Gender Divide: आज भी तकनीकी महिलाओं की पहुंच से दूर क्यों ?
तकनीकी तक पहुँच: The Privilege
तकनीकी तक पहुँच आज के दौर में एक बुनियादी आवश्यकता बन गई हैं, लेकिन आज भी भारत में ग्रामीण महिलाओं के लिए एक privilege की तरह बन गया हैं। स्मार्टफोन, इंटरनेट और डिजिटल सेवाएं जहां शहरी युवाओं के लिए रोजमर्रा का हिस्सा हैं, वहीं गाँव की महिलाएं इससे वंचित हैं। उनके पास न तो उपकरण हैं, न उसे इस्तेमाल करने की आजादी। कई बार मोबाईल या डिजिटल उपकरण घर में होता हैं लेकिन पुरुष ही उसे इस्तेमाल कर सकते हैं।
महिलाओं की आजादी का डर
समाज को महिलाओं की तकनीकि के इस्तेमाल से उनके अधिक वाचाल और नियम को न मानने का डर हमेशा सताता रहा हैं। इस डिजिटल दूरी का असर सिर्फ जानकारी की तक की पहुँच तक ही नहीं, बल्कि महिलाओं की निर्णय लेने की क्षमता, आत्मविश्वास और सामाजिक भागीदारी पर पड़ता हैं। समाज आज भी महिलाओं की निर्णय में भूमिका को सही नहीं समझता, और अक्सर घरों में छोटे-छोटे निर्णय भी पुरुषों की ही सहमति से लिए जाते हैं।
सामाजिक और पिछड़ा नजरिया
आज भी समाज में महिलाओं की आजादी और शिक्षा को लेकर पीड़ित सोच मौजूद हैं, जो उन्हें जीवन के अहम निर्णय लेने से रोकती हैं। समाज महिलाओं को आज भी घर की चारदीवारी तक उनकी पहचान को सीमित देखता हैं। डिजिटल दुनिया उन्हें बाहरी लोगों और नई विचारों से जोड़ती हैं जो ज्ञान और शिक्षा का विस्तार करती हैं, लेकिन समाज आज भी महिलाओं को इस काबिल नहीं समझता कि महिलाएं अपने विचारों और ज्ञान को बाहरी दुनिया के सामने रखे।
भावनात्मक शोषण और बहिष्कार का डर
तकनीक से जुड़ाव न होने के कारण महिलाओं में आत्मविश्वास की कमी, वे खुद मे कमजोर, निर्भर और पीछे छूट गई ऐसा महसूस करती हैं। यह भावनात्मक दूरी उन्हें सामाजिक संवाद और नेतृत्व की भूमिकाओं से भी दूरी कर देती हैं। साथ ही यह भी देखा जाता हैं कि जब महिला ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर स्वयं को व्यक्त करती हैं, तो उन्हें 'बोल्ड', 'असभ्य' या 'characterless' कहकर सामाजिक रूप से बहिष्कृत किया जाता हैं। यह मानसिक उत्पीड़ना उन्हें चुप्पी और डिजिटल दुनिया से दूरी की ओर धकेल देता हैं।
परंपरा और पित्रसत्ता(patriarchy) की दीवारें
ग्रामीण भारत में महिलाओं की तकनीकी से दूरी के लिए शैक्षिक और आर्थिक कारण ही नहीं, बल्कि गहरी जड़ें जमाएं हुए परंपरा और पित्रसत्ता का प्रभावी होना भी सबसे बड़ा कारण हैं। आज भी कई घरों में मोबाईल का प्रयोग पुरुष को बिना रोक-टोक के करने दिया जाता हैं, लेकिन जब महिला इसका प्रयोग करती है तो उन्हें दूसरों की निगरानी में ही करने दिया जाता हैं। यह नियंत्रण डिवाइस पर ही नहीं उनकी आजादी और विचारों के आदान-प्रदान पर भी हैं।
चरित्रहीनता और असभ्यता का टैबू
महिलाओं को समाज पुरुष वर्ग जिसे दूसरे वर्ग की उपमा देता हैं उससे दूर रखने और महिलाओं के उनके साथ अधिक न घुलने मिलने की पिछड़ी सोच के कारण कहीं रुढ़ि विचारधाराओं से ग्रसित होना भी तकनीकी से दूरी का कारण हैं। इंटरनेट को 'भटकाने वाला', 'चरित्र को बिगाड़ने वाला' या 'अश्लीलता फैलाने वाला' मानकर महिलाओं को इससे दूर रखा जाता हैं। उन्हें अक्सर यह सिखाया जाता हैं कि डिजिटल दुनिया उनके लिए नहीं बनी है- उनकी दुनिया चारदीवारी तक ही सीमित हैं।
डिजिटल प्लेटफॉर्म पर असुरक्षा का डर
ऑनलाइन होने वाली गतिविधियां अक्सर दोनों ही रूप लेकर रहती हैं- समाज को जागरूक करना और समाज के किसी व्यक्ति और वर्ग के लिए पीड़ित सोच और व्यवहार को भी। डिजिटल प्लेटफॉर्म और मीडिया पर महिलाओं के साथ होने वाली बुलिंग, अश्लील संदेश और मानसिक उत्पीड़ना का डर भी परिवार के लिए तकनीकी से दूर रखने का बहाना और ऑनलाइन मीडिया का सुरक्षित न होना जैसे विचार को पुख्ता कर देता हैं। यह डर सुरक्षा से ज्यादा नियंत्रण और डिजिटल स्पेस से उन्हें दूर रख देता हैं।