Double Standards For Women: जैसे कि हम सब को पता ही है कि कैसे हमारे समाज में लड़का और लड़की में भेदभाव होता है। लड़का और लड़की के बीच होती भेदभाव को हम सदियों से देखते और सुनते आ रहे हैं। नज़ाने कितने लोगों को लगता है कि महिलाएं वो सब हासिल नहीं कर सकतीं जो एक आदमी कर सकता है।
क्यों आज भी लड़कें, लड़कियों को एक ऐसी चीज़ समझते हैं जिसका ध्यान रखा जाना हर समय जरूरी होता है। आज भी, लड़की की तरह क्यों रो रहा है?, लड़की है क्या? और मर्द बन, इन वाक्यों का इस्तमाल किया जाता है। इस gender discrimination से किसी का भला नहीं होता न लड़कों का न ही लड़कियों का।
ड्राइविंग मर्दों के लिए होती है
यह भी अक्सर कह दिया जाता है महिलाओं को तो गाड़ी चलाना नहीं आता। इनको तो गाड़ी चलानी ही नहीं चाहिए। सोशल मीडिया पर ऐसे कितने ही मीमस बनाए जाते है जिसमें औरतों का ड्राइविंग को लेकर मज़ाक़ बनाया है।
बॉडी हेयर (Body Hair)
बॉडी हेयर को शेव करना या नहीं यह किसी भी औरत की व्यक्तिगत मर्ज़ी है। लेकिन बहुत से लोग औरतों को इस बात पर शर्मिंदा करते है, नीचा दिखाते है।लेकिन वहीं दूसरी तरफ़ मर्दों को इस बात के लिए शर्मिंदा नहीं किया जाता।
माँ-बाप रोल
हमारे समाज में यह भी एक डबल स्टैंडर्ड है कि बच्चा सम्भालना सिर्फ़ माँ की ज़िम्मेदारी है और मर्द की ज़िम्मेदारी बच्चे के खर्चे उठाना है। बच्चे के लिए माँ को नौकरी छोड़ने के लिए जाता है लेकिन कभी पिता को नहीं कहा जाता कि तुम नौकरी छोड़कर घर पे बच्चा सम्भालो।
ट्रेडिशनल और वेस्टर्न कपड़ों में भी होता है भेदभाव (Traditional Clothes vs Western Clothes)
अगर किसी औरत ने साड़ी का ब्लाउस पहना है तो वहीं दूसरी तरफ़ क्रॉप टॉप पहना है। समाज उस औरत के कपड़ों पर सवाल उठाएगा जिसने क्रॉप टॉप पहना। इस पर लोग बातें बनायेंगे कि कैसे कपड़े पहने है। इसे तो कपड़े पहनने की अक़्ल नहीं है। आजकल तों लड़कियाँ कपड़े उतारने को फिर रहीं है। वहीं दूसरी और उस औरत पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगा जिसने ब्लाउस पहना और उसका शरीर क्रॉप टॉप से ज़्यादा दिख रहा हो।बात यह नहीं है कि शरीर ज़्यादा दिख रहा या कम बल्कि मसला यह है कि समाज अपने डबल स्टैंडर्ड्ज़ शो करता है।
कैसे इनको ख़त्म किया जाए
ऐसे और भी बहुत से डबल स्टैंडर्ड्ज़ है जो हमारे समाज में प्रचलित है।इनको ख़त्म किया जा सकता है अगर हम अपने आने वाली पीढ़ियों को आगे यह चीजें न सिखाए। उन्हें बराबरी की बात सिखाए। उन्हें कभी यह ना कहे कि औरत का काम सिर्फ़ परिवार पालना और बच्चे सम्भालना है या। फिर मर्द को ही सिर्फ़ कमाकर लाना है। उन्हें औरत की इज़्ज़त करना सिखाए।ऐसे ही हमारे समाज में बदलाव आ सकता है।