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फेयर एंड लवली से 'फेयर' हटा के क्या बदल जाएगी समाज की सोच?

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Swati Bundela
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2019 में भारत में फेयरनेस क्रीम का मार्केट 450 मिलियन डॉलर का है। 6,777 टन स्किन लाइटनर्स और एन्टी एजिंग प्रोडक्ट्स जो काले निशान को हटाती है उसे दुनियाभर में बेचा गया और वो सारी creams बिक गयीं।

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क्या बताते हैं फेयरनेस ads

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दुल्हन के गोरे होने की क्वालिफिकेशन  (qualification) अभी भी लोगों द्वारा मांगी जाती है। अगर हमारी फेयरनेस क्रीम्स के एड्स देखे जाए तो गोरा होने से आपके शादी के चांसेस बढ़ जाते हैं, जॉब मिलना आसान होजाता है और आपको फिल्मों में काम भी मिल सकता है।



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ये एड्स exploit करते हैं

तो हमें ये फेयरनेस एड्स कैसे exploit कर रहे हैं? हमें गोरे होने के ऐसे सपनें क्यों दिखा रहे हैं? हम पसंद करें या नहीं पर ये इसलिए किया जा रहा है क्योंकि ये ही हमारे समाज की सच्चाई है। समाज बहुत दयालु है अगर हम सदियों पुरानी सुंदरता की डेफिनशन(गोरा होना) में फिट हैं।

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और इसी डेफिनिशन में फिट बैठने की इनसिक्योरिटी को फेयरनेस एड्स exploit कर रहे हैं ।



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केमिकल लगाने से क्या हमारा नेचर और पर्सनालिटी बदल जाएगी?



हर साल सुपरस्टार्स को लेकर ये एड्स बनाते हैं ताकि लोग attract हों। दो शेड गोरा रंग पाकर एक अच्छी लाइफ बनाने के लिए जो ये फेयरनेस क्रीम देने का वादा करती है। और इन creams से हम एक ऐसे individual बन जाते हैं जो अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं।
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ब्लैक लाइव्स मैटर
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पर कुछ दिनों पहले ब्लैक लाइव्स मैटर movement ने इन कम्पनीज को साइड में धकेल दिया है और वो uncomfortable होगये हैं कि वो क्या बेच रहे हैं और क्यों बेच रहे हैं। ये यूनाइटेड स्टेट्स में हो रहे racism के खिलाफ है पर हर देश ने इससे कहीं ना कहीं कनेक्ट किया है। ये वो डिस्क्रिमिनेशन है जो हज़ारों लोग रोज़ फेस करते हैं।



थोड़े ही दिन पहले इसी मूवमेंट की वजह से जॉनसन एंड जॉनसन ने अपना क्लीन एंड क्लियर फेसवाश की बिक्री बंद करने की घोषणा की थी। कल यूनिलीवर ने भी अपनी स्किन lightning क्रीम फेयर एंड लवली से फेयर हटाने का फैसला लिया है। अब वो कंपनी whitening और lightning जैसे शब्दों का प्रयोग भी नहीं करेगी।



ये enough नहीं



पर क्या ये enough है? मुझे लगता है कि ये सिर्फ tokenism है। भले ही एड्स में नाम चेंज होजायेगा और तरीके बदल जाएंगे पर प्रोडक्ट तो वही रहेगा। क्या खूबसूरत होने के लिए ब्यूटी क्रीम्स की ज़रूरत है?



लेकिन अभी भी ऐसी क्रीम्स हैं जो लोगों को ब्यूटी के नाम पर महसूस कराती है कि वो जैसे हैं उसमें कमी है। उन्हें और अच्छा दिखने के लिए क्रीम्स की ज़रूरत होगी।



जब तक ये गोरा और बेहतर दिखने का बिलीफ रहेगा तब तक नाम और एड्स बदलने से कुछ नही होगा। डिस्क्रिमिनेशन रहेगा।



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#फेमिनिज्म
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