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गोवर्धन पूजा विधि
इस पर्व में हिंदू धर्म को मानने वाले घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन जी की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा करते हैं| इसके बाद ब्रज के देवता माने जाने वाले भगवान गिरिराज को खुश करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता हैं| गाय- बैल आदि पशुओं को नहलाकर फूल माला, धूप, चन्दन आदि से उनकी पूजा की जाती है| गायों को मिठाई का भोग लगाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा पूजा अर्चना की जाती है|
भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुल वासियों से कहा कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं होता| वर्षा करना उनका दायित्व है और वे सिर्फ अपने दायित्व का निर्वाह करते हैं, जबकि गोवर्धन पर्वत हमारे गौ-धन की रक्षा करते हैं और इससे पर्यावरण भी शुद्ध होता है| इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए|
कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भगवान के लिए भोग व यथासामर्थ्य अन्न से बने कच्चे-पक्के भोग, फल-फूल, अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ जिन्हें छप्पन भोग भी कहा जाता हैं और उसका भोग लगाया जाता है| फिर सभी सामग्री अपने परिवार व मित्रों के बीच बांटकर कर प्रसाद ग्रहण किया जाता है|
गोवर्धन पूजा व्रत कथा
यह घटना द्वापर युग की है| ब्रज में इंद्र की पूजा की जा रही थी| वहां भगवान कृष्ण पहुंचे और उनसे पूछा की यहाँ किसकी पूजा की जा रही है| सभी गोकुल वासियों ने कहा देवराज इंद्र की| तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुल वासियों से कहा कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं होता| वर्षा करना उनका दायित्व है और वे सिर्फ अपने दायित्व का निर्वाह करते हैं, जबकि गोवर्धन पर्वत हमारे गौ-धन की रक्षा करते हैं और इससे पर्यावरण भी शुद्ध होता है| इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए| सभी लोग श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पूजा करने लगे| जिससे इंद्र क्रोधित हो उठे, उन्होंने मेघों को आदेश दिया कि जाओं गोकुल का विनाश कर दो| भारी वर्षा से सभी भयभीत हो गए| तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी ऊँगली पर उठाकर सभी गोकुल वासियों को इंद्र के कोप से बचाया| जब इंद्र को यह पता चला कि श्रीकृष्ण भगवान श्रीहरि विष्णु के अवतार हैं तो इन्द्रदेव अपनी मुर्खता पर बहुत लज्जित हुए और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की| तबसे आज तक गोवर्धन पूजा बड़े श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ की जाती है|