/hindi/media/media_files/T56wabAItKEBqIe3bkqt.png)
Hartalika Teej 2023
Hartalika Teej 2023: हरतालिका तीज भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज पर्व के रूप में मनाया जाता है, यह व्रत निर्जला रखा जाता है। इस वर्ष हरितालिका तीज 17 सितंबर को पड़ रही है, शास्त्रों के अनुसार हरितालिका तीज को सबसे बड़ी तीज माना जाता है।
Hartalika Teej 2023: महिलाएं करती हैं विशेष श्रृंगार
इस व्रत में महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर संध्या के समय भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं।इस दिन महिलाएं हरे रंग की चूड़ियां पहनती हैं और मेहंदी लगाती हैं। हरतालिका तीज के दिन हरे रंग का विशेष महत्व होता है। पौराणिक मान्यता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था।
Hartalika Teej 2023: पूजा विधि
सबसे पहले काली गीली मिट्टी से माता पार्वती, भगवान शिव और गणेशजी की प्रतिमा तैयार करें और उसे फूलों से सजाएं।
तब तक आप लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर पूजा की तैयारी करें। तीनों प्रतिमाओं को पीले कपड़े पर स्थापित करें। उसके बाद चौकी पर दाईं चावल से अष्टकमल तैयार करें और उस पर कलश स्थापित करें।
अब कलश के ऊपर स्वास्तिक बनाएं और कलश में जल भरकर सुपारी, सिक्का और हल्दी उसमें डाल दें। मूर्तियों का विधि विधान से अभिषेक करें और उसके बाद मां पार्वती को सुहाग का सामान अर्पित करें और शिवजी को धोती व गमछा चढ़ाए।
पूजा के बाद माता पार्वती को लगा हुआ सिंदूर अपनी भी मांग में लगाएं, और पति के चरण स्पर्श करके दीर्घायु का आशीष प्राप्त करें।
हरितालिका व्रत के दौरान 16 श्रृंगार का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन महिलाएं हाथों में मेहंदी भी लगाती हैं , जिसे सुहाग की निशानी माना जाता है।
Hartalika Teej 2023: व्रत महत्त्व
पार्वती माता ने शंकर भगवान को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हरितालिका तीज का व्रत किया था। और यह व्रत के करने के फलस्वरूप पार्वती माता ने शिवजी को पति रूप में पाया था। शंकर जी ने भी पार्वती माता से कहा था कि इसी व्रत के प्रभाव से उन्हें पार्वती प्राप्त हुई थी और वो उनकी अर्धांगिनी बन पाई थी।
कुंवारी कन्यायें हरितालिका तीज का यह व्रत अच्छा पति पाने के लिए करती है और सुहागिन महिलाऐं अपने पति की लम्बी उम्र के लिए यह व्रत को करती हैं। इस व्रत को निर्जल करने का विधान है।
उत्तर भारत के काफी हिस्सों में शिव पार्वती और संपूर्ण शिव पंचायत की बालू मिट्टी की प्रतिमाएँ बना कर उनकी पूजा करी जाती है और दुसरे दिन उनका विसर्जन किया जाता है। जो लोग बालू मिट्टी की प्रतिमाएँ बना कर पूजन ना कर सके वो शिव मंदिर जाकर भी पूजन कर सकते है।
व्रत करने वाले को उमा और शिव का नमन करना चाहिए। उमा पूजन मंत्रोचार के साथ आवाहन , आसान , अर्ध्य आदि सोलह उपचारों से करनी चाहिए। उमा महेश्वर का अभिषेक कर पुष्प , बिलपत्र आदि चढ़ाने चाहिए। उमा की अंग पूजा करनी चाहिए। धूप , दीप , नैवेद्य ,कपूर , चन्दन , इत्र, ताम्बूल, पुंगीफल , दक्षिणा के कृत्य करने चाहिए।