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Rape Cases: क्या रेपिस्ट को फांसी देना आंतरिक समाधान है?

जानिए इस ओपिनियन ब्लॉग के माध्यम से कैसे आज भी मासूम लड़कियों के साथ दरिंदगी करने वाले खुलेआम घूम रहे हैं।आप भी सोचते होंगे क्या प्रशासन ने कोई कष्ट नहीं लिया इन सब की रोकथाम के लिए तो आइए जानते हैं

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Aastha Dhillon
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Rape

Rape Cases: रेप जैसे घनघोर अपराध की रोकथाम के लिए हमारे प्रशासन कड़े नियम बना रहा है। लेकिन क्या इससे रेप जैसे दिल-दहला देने वाले अपराधों में गिरावट आई है? आइए जानते हैं इस लेख के माध्यम से 

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क्या कहते हैं आंकड़े?

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के लिए बलात्कार का खतरा पिछले 17 सालों की तुलना में लगभग दोगुना हो गया है। NCRB के आंकड़ों के मुताबिक, 2001‐2017 के बीच पूरे भारत में कुल 4,15,786 बलात्ककार के मामले दर्ज हुए। पिछले 17 सालों के दौरान पूरे देश में प्रतिदिन औसतन 67 महिलाओं के साथ बलात्कार हुए, यानी 17 सालों में हर घंटे औसतन तीन महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ है।

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उत्तर प्रदेश के उन्नाव में सुनवाई के लिए कोर्ट जाते समय रास्ते में एक 23 वर्षीय रेप पीड़िता को जला दिया गया। खबरों में कहा गया कि पीड़िता मदद मांगने के लिए जली हुई हालत में करीब एक किलोमीटर तक भागी और आखिरकार हारकर उसने पुलिस को कॉल किया। कुछ दिनों ​​बाद दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में उसकी मौत हो गई। आरोप है कि पीड़िता के बलात्कारी ने ही उसपर मि​ट्टी का तेल छिड़क कर उसे जला दिया। भारत में बढ़ते बलात्कार के मामलों के बीच 15 दिनों के भीतर यह दूसरी घटना थी जब किसी बलात्कार पीड़िता को जला कर मार दिया गया।
यह कितना दयनीय है कि इतना सब कुछ होने पर भी हमारी सरकार बस चुप्पी ही बनाए रहती है। अगर मीडिया सच को बाहर लाने का प्रयास भी करती है तो उसे बार-बार दबाने की कोशिश की जाती है।  क्या हमारा देश लोकतंत्र नहीं रहा जहां सरकार लोगों की, लोगों से और लोगों के द्वारा होती है।

क्या सजा है ऐसे दरिंदों के लिए उपयुक्त?

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अगर रेप जैसे अपराधों को हमें जड़ से उखाड़कर फेकना है तो उसके लिए हमारी न्याय प्रणाली का सख्त होना बेहद जरूरी है। हमारे संविधान ने महिलाओं एवं लड़कियों की सुरक्षा लिए जो प्रावधान किए हैं उनका धरातल पर इंप्लीमेंट होना बहुत आवश्यक है। जब तक महिलाएं अपने घर, अपने गांव एवं शहर में सेफ महसूस नहीं करेंगी तब तक कानून सिर्फ कागजी ही रहेगा। भारतीय संविधान के अनुसार हमारी न्याय प्रणाली भेदभाव तो नहीं करती लेकिन कुछ असामाजिक तत्व जज लोगों पर लगातार दवाब डालकर न्याय को खरीद लेना चाहते हैं। इस के साथ ही साथ पीड़ित को न्याय मिलने में भी दशक लग जाते हैं। काफी रेप पीड़ितों की तो मौत भी हो जाती है और उसके बाद कोर्ट का फैसला आता है। अगर रेप जैसे घनघोर अपराधों को रोकना है तो हमें अपने संविधान, अपने कानून को सिर्फ कागज के रूप में नहीं बल्कि दिनचर्या में भी शामिल करना होगा। रेपिस्ट को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए क्योंकि बलात्कार रेप दुष्कर्म यह कोई आम अपराध नहीं है। ऐसे अपराधियों को किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए किसी को भी कोई भी छूट नहीं मिलनी चाहिए और यह कहना एकदम सही है रेपिस्ट को फांसी देना आंतरिक समाधान है।

NCRB rape cases
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