Virginity Myths: महिलाओं की वर्जिनिटी को लेकर कैसे समाज में फैली हैं गलत धारणाएं

एक महिला की वर्जिनिटी उसकी पहचान नहीं है बल्कि उसका आत्मसम्मान, निर्णय लेने की आज़ादी और शरीर पर हक़ उससे कहीं ज्यादा मायने रखता है। लेकिन समाज में आज भी इस पहलू पर कई धारणाएं और मिथक हैं जो महिलाओं की जान भी ले लेते हैं।

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Kirti Sirohi
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virginity Respect and control in indian society

SheThePeople

How Misconceptions about Virginity Of Women are spread in society: महिलाओं को लेकर जब भी समाज में बात होती है तो बहुत सारी धारणाएं और मिथक सामने आते हैं जिनकी वजह से न केवल उनपर कई तरह के सवाल उठाए जाते हैं बल्कि उनके आत्म-सम्मान को भी नुकसान पहुंचता है। "वर्जिनिटी" इससे जुड़ी कई बातें भी ऐसी ही हैं जो महिलाओं के लिए समाज में बनाई तो गईं लेकिन वो सच है भी या नहीं इसपर बात बहुत कम की गई। "तुम वर्जिन हो" "क्या तुम्हारी वर्जिनिटी लूज हो चुकी" ऐसे सवाल अक्सर महिला के सामने रख दिए जाते हैं। आज हम आपको बताएंगे ऐसे ही मिथकों के बारे में जिन्हें हमारे समाज और लोगों ने एक हॉट टॉपिक तो बना दिया पर वो सच हैं भी या नहीं यह जानने की इच्छा कम ही रखी।

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महिलाओं की वर्जिनिटी को लेकर myths

हाइमन ब्रेक होना मतलब वर्जिनिटी लूज होना?

हाइमन और वर्जिनिटी को आपस में बहुत ज्यादा जोड़कर देखा जाता और लोग अक्सर कहते या सोचते हैं कि पहली बार सेक्स करने पर हाइमेन (Hymen) ब्रेक होता है, जिससे वजाइना से ब्लड आता है और अगर ऐसा न हो तो इसका मतलब कि लड़की वर्जिन नहीं है। लेकिन असल में यह सबसे बड़ा और ग़लत मिथक है। आज भी समाज में यह मान्यता है। दरअसल हाइमन एक पतली स्किन होती है जो कई वजहों से फट सकती है। अगर कोई भी लड़की फिजिकल एक्टिविटी जैसे साइक्लिंग, स्पोर्ट्स, स्विमिंग में एक्टिव हैं तब भी उसकी हाइमन ब्रेक हो सकती है। इसका सेक्स से या वर्जिनिटी से कोई सीधा संबंध नहीं होता है। यहां तक कि कुछ लड़कियों का जन्म ही बिना हाइमेन के हो सकता है। इसलिए हाइमन और वर्जिनिटी को जोड़ने वाली यह धारणा न केवल साइंटिफिक रूप से ग़लत है बल्कि यह महिलाओं को 'सबूत' देने के दबाव में डालती है और उनके चरित्र और आत्म-सम्मान पर भी लोग बेवजह सवाल खड़े कर देते हैं।

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क्या वर्जिनिटी पर सवाल केवल महिलाओं के लिए हैं?

क्या आपने कभी दोस्तों के बीच बैठकर, इंटरव्यू में या कही भी सुना है कि किसी लड़के से पूछा गया हो “क्या तुम वर्जिन हो?” नहीं ना? वहीं अगर महिलाओं की बात की जाए तो ऑनलाइन या सामने से उनसे यह सवाल बस एक ही बार नहीं बल्कि बार-बार किया जाता है। यह gender inequality की एक गहरी जड़ है। पुरुषों की वर्जिनिटी को हमारी सोसाइटी कभी उनके कैरेक्टर का पैमाना नहीं मानता लेकिन महिलाओं के लिए यह उसकी इज्जत, घर की इज्जत, यहां तक कि समाज की इज्जत और मर्यादा या परवरिश का मुद्दा बना दिया गया है। यह सोच महिलाओं को ‘शुद्ध’ और ‘अशुद्ध’ की कैटेगरी में बांट देती है और पुरुषों को मौका देती है कि वो सवाल उठा सकें और गलत बयान दे सकें जो कि बेहद अपमानजनक है।

वर्जिन लड़की ही एक आदर्श पत्नी होती है

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हमारे देश में लोगों के बीच महिलाओं की वर्जिनिटी को एक 'प्रमाण पत्र' की तरह देखा जाता है। अगर तुम वर्जिन हो तो तुम्हारा रिश्ता होगा जैसे कि एक लड़की का बीता हुआ सेक्सुअल एक्सपीरियंस उसके संस्कारों और उसके अच्छे जीवनसाथी बनने की क्षमता को खत्म कर देगा। यह सोच उस मानसिकता से जुड़ी है जो महिलाओं को केवल किसी वस्तु के रूप में देखती है – एक लड़की जो कि 'नई', 'अनछुई', 'पवित्र' या 'शुद्ध' है। लेकिन सवाल यह भी होना चाहिए कि क्या एक महिला की समझदारी, करियर, संवेदनशीलता और रिश्तों को निभाने की काबिलियत उसके यौन अनुभव पर निर्भर करती है? और अगर हां तो फिर पुरुषों की शुद्धता का क्या प्रमाण होना चाहिए और उनसे इसको लेकर क्या सवाल पूछे जाने चाहिए?

महिलाओं का वर्जिनिटी टेस्ट

आज भी हमारे देश कई हिस्सों के कुछ समुदायों में एक महिला का वर्जिनिटी टेस्ट किया जाता है। शादी की पहली रात के बाद सफेद चादर बेड पर बिछाई जाती है और उसपर खून के धब्बों को देखा जाता है। अगर ब्लड नहीं आया तो लड़की वर्जिन नहीं थी और उसको अपवित्र, बेईमान माना जाता है और यहाँ तक कि उसे तलाक या सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। यह टेस्ट न केवल अवैज्ञानिक है बल्कि यह सीधे तौर पर उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन है और अपमानजनक हरकतों में शामिल है। उदाहरण के तौर पर विवेक तमाईचिकार जो कि एक कैंपेन चलाते हैं, जिसका नाम है "stop the V ritual" जिसके जरिए वो महिलाओं के वर्जिनिटी टेस्ट किए जाने के खिलाफ आवाज उठाते हैं। दरअसल उन्हें यह कैंपेन चलने की प्रेरणा भी एक ऐसे हादसे के बाद हुई जिसमें उनकी cousin को शादी की पहली ही रात केवल इसलिए टॉर्चर करके मार दिया गया क्योंकि सेक्स के दौरान उसे ब्लीडिंग नहीं हुई!

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ऐसे ही और भी कई मिथक है जो महिलाओं की पवित्रता, उनकी ईमानदारी और संस्कारों से जोड़कर देखे जाते हैं और जहां कई बार समाज के इन बेतुके सवालों की पीछे वो अपनी जान भी गवां देती हैं और जो जिंदा रह जाती हैं ये मिथक उनके आत्मविश्वास, शिक्षा, करियर और सबसे बढ़कर उनकी सेक्सुअल इंडिपेंडेंस को नियंत्रित करते हैं। एक महिला अगर अपनी वर्जिनिटी को लेकर शर्मिंदा है या डर में जी रही है तो वह कभी भी अपने शरीर को या खुद को रिस्पेक्ट से नहीं देख पाएगी। वर्जिनिटी केवल एक social construct है न कि कोई जीवित प्रमाण और इस पर समाज की सोच और प्रतिक्रिया बदलने की जरूरत है।

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