Unrealistic Expectations: महिलाएं क्यों बनती हैं उम्मीदों का आसान निशाना?

चाहे घर हो या ऑफिस हर जगह महिलाएँ अक्सर सबकी उम्मीदों का आसान निशाना बन जाती है। ऊपर से समाज का दबाव उम्मीदों के इस बोझ को और भी बढ़ा देता है। हालांकि महिलाएं लगातार इन उम्मीदों को पूरा करने की कोशिश में लगी रहती हैं।

author-image
Deepika Aartthiya
New Update
Women

File Image

चाहे घर हो या ऑफिस हर जगह महिलाएँ अक्सर सबकी उम्मीदों का आसान निशाना बन जाती है। ऊपर से समाज का दबाव उम्मीदों के इस बोझ को और भी बढ़ा देता है। हालांकि महिलाएं लगातार इन उम्मीदों को पूरा करने की कोशिश में लगी रहती हैं। लेकिन हमेशा सफल नहीं हो पाती है और अंत में मानसिक और भावनात्मक रूप से टूट जाती हैं।

Advertisment

महिलाएं क्यों बनती हैं उम्मीदों का आसान निशाना?

1. घर में जिम्मेदारियों का भार

घर की महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वे परिवार की हर जरूरत का ध्यान रखें। महिलाएं अक्सर घर संभालने, बच्चों की परवरिश और परिवार की अनगिनत उम्मीदों को पूरा करने जैसी जिम्मेदारियों तले फंस कर रह जाती हैं। 

2. सोशल लाइफ को लेकर दबाव

महिलाओं के लिए छोटी-छोटी बातें जैसे पार्टी में जाना, दोस्तों से मिलना, या वेस्टर्न कपड़े पहनना, बड़े सवाल खड़े कर देती हैं। वहीं पुरुषों पर ऐसा दबाव आमतौर पर नहीं होता।

3. समाज की नजरें

महिलाओं के कपड़ों, व्यवहार और काम हर चीज़ पर समाज की पैनी नज़रें रहती है। कई बार तो छोटी-सी गलती पर भी उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ता है। महिलाओं से हमेशा परफेक्ट बने रहने की अपेक्षा बने रहने की अपेक्षा की जाती रही है।

Advertisment

3. कामकाजी महिलाओं पर अतिरिक्त बोझ

घर और ओफिस दोनों को में बैलेंस बनाए रखने के बावजूद भी कई बार कभी सहकर्मी और कभी समाज महिलाओं को उनकी जिम्मेदारियों के लिए जज करता है। जिसके चलते उन्हें लगातार साबित करना पड़ता है कि वो दोनों जगह पर जिम्मेदारीयों को बखूबी निभा सकती है। जॉब में सफल होने पर भी महिलाओं को याद दिलाया जाता रहता है कि घर संभालना भी उनकी ही जिम्मेदारी है। इस तरह के डबल स्टैंडर्ड्स महिलाओं के लिए हमेशा चुनौती बने रहते हैं।

4. सोशल मीडिया का असर

महिलाओ की तुलना और आलोचना को सोशल मीडिया पर भी ट्रोल किया जाता है। कभी उनके लाइफस्टाइल, तो कभी उनके किसी फैसले या ओपिनियन को लेकर उन पर भद्दे कमेंट्स करना आम हो चुका है। ये उनके आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालता है।

5. सोच में बदलाव की जरूरत

समाज को ये समझना होगा कि केवल कह देने से समानता नहीं आती। सच्ची समानता तभी आएगी जब महिलाएं अपने फैसले खुद ले सकें और बिना डर के अपनी ज़िन्दगी खुलकर जी सकें। महिलाओ को भी उतनी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए जितनी पुरुष समाज को मिलती है।

Advertisment