1949 से 1972 तक, मुंबई में शराब पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद महिलाओं ने ‘आंटी बार्स’ के रूप में एक ऐसा आंदोलन खड़ा किया, जो समाज और कानूनी प्रतिबंधों के खिलाफ खड़ा था। ये महिलाएं अपनी बुद्धिमत्ता और साहसिकता से न केवल शराब की अवैध बिक्री करती थीं, बल्कि एक समर्पित और साहसी समुदाय की भी रचना करती थीं।
मुंबई की 'आंटी बार्स' ने 1950s में कैसे प्रतिबंध का विरोध किया
मुंबई में शराब पर प्रतिबंध और उसकी पृष्ठभूमि
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बाद 1949 में मुंबई प्रोहिबिशन एक्ट लागू किया गया, जिसका उद्देश्य शराब के सेवन को नियंत्रित करना था। सरकार का मानना था कि शराब समाज में एक बुराई है, जिसे खत्म करना आवश्यक है। हालांकि, इस प्रतिबंध ने एक अंडरग्राउंड शराब संस्कृति को जन्म दिया, जहां लोग गुप्त तरीकों से शराब की आपूर्ति प्राप्त करते थे।
आंटी बार्स: महिलाओं के द्वारा संचालित गुप्त शराब घर
इन प्रतिबंधों के बावजूद, ‘आंटी बार्स’ जैसे गुप्त स्थान उभरकर सामने आए, जो महिलाओं द्वारा अपने घरों में संचालित किए जाते थे। गोवा समुदाय की महिलाएं इन बार्स का संचालन करती थीं, जहाँ वे अपने घरों में लोकल शराब जैसे फेनी या चंद्रमा तैयार कर अपने ग्राहकों को सेवा देती थीं। इन बार्स में आमतौर पर पुरुष ग्राहक होते थे, जो शांति से अपनी ड्रिंक का आनंद लेते थे।
आंटी बार्स की महिलाएं: स्वतंत्रता की ओर एक कदम
हालांकि ये बार्स महिलाओं द्वारा चलाए जाते थे, लेकिन उनका मुख्य ग्राहक वर्ग पुरुषों का था। 1950 के दशक में, भारतीय समाज में महिलाओं के लिए कई सांस्कृतिक प्रतिबंध थे। इनमें से कुछ महिलाएं, विशेष रूप से विधवाएं और अकेली माताएं, आंटी बार्स चलाकर अपनी आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करती थीं। हालांकि, इस संघर्ष ने उन्हें सामाजिक आलोचनाओं का सामना भी कराया।
आंटी बार्स का विरासत और उनका महत्व
आंटी बार्स का इतिहास सिर्फ शराब के सेवन की कहानी नहीं है। यह उन महिलाओं की कहानी है जिन्होंने समाज की बाधाओं को चुनौती दी और अपनी मेहनत से आर्थिक स्वतंत्रता हासिल की। ये बार्स न केवल उन महिलाओं की आर्थिक मजबूती की प्रतीक हैं, बल्कि इस संघर्ष के पीछे की सशक्त और प्रेरणादायक कहानियों को भी उजागर करती हैं, जिन्हें अक्सर नजरअंदाज किया जाता है।
आंटी बार्स के द्वारा पेश की गई ये कड़ी यात्रा और साहसिकता हमें यह याद दिलाती है कि महिलाएं किसी भी सामाजिक या कानूनी प्रतिबंध के बावजूद अपनी जगह बना सकती हैं। यह कहानी महिलाओं की संघर्षशीलता और सामाजिक सुधार की दिशा में उनके योगदान का प्रतीक है।