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Ahoi Ashtami 2024: अहोई अष्टमी व्रत का महत्व, क्या हैं इसके नियम

हिंदू धर्म में अहोई अष्टमी का व्रत का काफी महत्व होता है। यह व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और उनकी खुशियों के लिए रखती हैं। आइये जानते हैं अहोई अष्टमी का व्रत किस दिन रखा जाएगा साथ ही जानें मुहूर्त, महत्व और नियम-

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Priya Rajput
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Ahoi Ashtami 2023(FabHotels.com)

Importance Of Ahoi Ashtami Fast What Are Its Rules (Image Credit - FabHotels.com)

Importance Of Ahoi Ashtami Fast What Are Its Rules: अहोई अष्टमी की पूजा प्रदोषकाल में की जाती है। इस दिन सभी माताएं सूर्योदय से पहले जागती है और उसके बाद स्नान करके माता अहोई की पूजा करती है। अहोई व्रत में दोपहर को गणेश जी की कथा सुनी जाती है। पूजा में अहोई माता की आठ कोने वाली तस्वीर पूजा स्थल पर रखें। पूजा की प्रक्रिया शाम में प्रारम्भ होती है। पूजा के स्थान को गंगा जल से स्वच्छ करें। 

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अहोई अष्टमी व्रत 2024 कब? 

पंचांग के अनुसार इस वर्ष अहोई अष्टमी का व्रत 24 अक्टूबर 2023 को किया जाएगा। इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ अहोई माता की पूजा की जाती है। अहोई अष्टमी पर पूरे दिन व्रत रखने के बाद शाम के समय तारों को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है।

महत्व

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सभी माताओं के लिए अहोई अष्टमी का व्रत बहुत ही खास होता है। यह व्रत संतान की लंबी उम्र और उनके खुशहाल जीवन के लिए रखा जाता है। इस दिन अहोई माता का पूजन किया जाता है और पूरे दिन निर्जला व्रत रख रात में तारों को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को रखने से संतान पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं। इसके साथ ही इस व्रत को रखने से संतान प्राप्ति की कामना भी पूरी होती है। 

नियम

अहोई अष्टमी की पूजा प्रदोषकाल में की जाती है। इस दिन सभी माताएं सूर्योदय से पहले जागती है और उसके बाद स्नान करके माता अहोई की पूजा करती है। पूजा में अहोई माता की आठ कोने वाली तस्वीर पूजा स्थल पर रखें। पूजा की प्रक्रिया शाम में प्रारम्भ होती है। पूजा के स्थान को गंगा जल से स्वच्छ करें। 

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इसके बाद आटे की चौकोर रंगोली बनाएं। अहोई माता की तस्वीर के पास एक जल से भरा कलश भी रखे। कलश के किनारों पर हल्दी ज़रूर लगाए। इसके बाद किसी बुजुर्ग महिला से अहोई माता की कथा सुने। फिर माता को खीर और पैसे चढाए। इसके बाद तारों को जल चढाकर व्रत खोलें।

अहोई माता कथा

प्राचीन काल में एक साहूकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएँ थीं। इस साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली के अवसर पर ससुराल से मायके आई थी I दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएँ मिट्टी लाने जंगल में गईं  तो ननद भी उनके साथ जंगल की ओर चल पड़ी। साहूकार की बेटी जहाँ से मिट्टी ले रही थी उसी स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। खोदते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी ने खुरपी से स्याहू का एक बच्चा मर गया। इस पर स्याहू क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।

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स्याहू की यह बात सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभी से विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी उसके बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे थे वह सभी सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।

सुरही गाय सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं। अचानक साहूकार की छोटी बहू की नज़र एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह साँप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहाँ आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे के मार दिया है। इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। छोटी बहू कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी प्रसन्न होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुँचा देती है। स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहुएँ होने का अशीर्वाद देती है। स्याहू के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र की वधुओं से हरा भरा हो जाता है।

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