ऐसी मान्यता है कि जब तक किसी मृत व्यक्ति का श्राद्ध ना किया जाए तो उसकी आत्मा को शांति प्राप्त नही होती है। पितृ पक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध किया जाता है। ऐसा करने से पितृ खुश होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। पृथ्वी लोक पर आते हैं पितृ -
शास्त्रों के अनुसार जब सूर्य नारायण भगवान कन्या राशि में भ्रमण करते है तब पितृलोक पृथ्वी लोक के सबसे करीब होता है। अश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर अमावस्या तक का समय श्राद्ध पक्ष माना जाता है। यह 16 तिथियां श्राद्ध कर्म के लिए निर्धारित की गई हैं। यह मान्यता है कि इस अवधि के दौरान पितृ मृत्यु लोक से पृथ्वी लोक पर आते हैं। इस दौरान अपने पूर्वजों को श्राद्ध अपर्ण करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
कब किए जाते हैं श्राद्ध?
श्राद्ध तिथियों के हिसाब से किए जाते हैं। जिस तिथि को मृत्यु होती है, पितृ पक्ष में उस तिथि पर ही उस मनुष्य का श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध में पिंड दान और ब्राह्मण भोज करवाया जाता है। अगर कभी आप तिथि भूल जाते हैं तो ऐसी स्थिति में आप अश्विन अमावस्या के दिन श्राद्ध कार्य कर सकते हैं। क्योंकि इस तिथि को सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है।
किसको खिलाएं श्राद्ध भोज?
श्राद्ध पक्ष में पितरों के लिए फल, अन्न, मिठाई आदि का भोग लगाया जाता है। इसके साथ ही ब्राह्मण भोज भी करवाया जाता है। पशुओं में गाय माता में सभी देवी-देवताओं का वास होता है इसलिए गाय को भी भोजन खिलाया जाता है। वहीं श्वान और कौए को पितरों का रूप माना जाता है इसलिए इस दौरान इनको भोजन खिलाने की भी परंपरा है।
क्यों है श्राद्ध करना जरूरी?
माना जाता है कि श्राद्ध करने से सभी दोषों से मुक्ति मिलती है और पितृ आपसे प्रसन्न होकर आपको आशीर्वाद देते हैं। आपके घर- परिवार में शांति बनी रहती है और धन-धान्य में वृद्दी होती है। पितृ आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं और वंशवृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। पितरों के आशीर्वाद से आपको सभी बीमारियों से राहत मिलती है