बच्चों के जीवन में माता- पिता की नसीहतें, खुशहाली या सज़ा?
इस बात में बिलकुल भी दोराय नहीं है कि माता पिता बच्चों के जीवन का एक ऐसा अभिन्न अंग हैं जिसके बिना कोई कोई भी व्यक्ति इस संसार में अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता। लेकिन फिर भी आजकल के समय में बच्चों को माता पिता की नसीहतें और उनका साथ एक आँख नहीं सुहाता।
क्या होती है भारतीय पैरेंटस की सोच ?
भारतीय परिवेश में, माता- पिता का ये सोचना कि बच्चों को जन्म देने, उनको पाल -पोष कर बड़ा करने से लेकर उनको लिखने -पढाने तक और उनकी सभी इच्छाए पूरी करने के कारण वे उनके जीवन पर अपना पूर्ण नियंत्रण रख सकते है, बहुत ही आम बात है। इसलिए भारतीय परिवारों में बच्चों से सम्बंधित कोई भी निर्णय हो, माँ बाप के द्वारा ही फैसला लिया जाता है।
लेकिन क्या आपको लगता है कि ये सही है? क्या बच्चों को जन्म देने और उनका पालन पोषण करने कि वजह से बच्चों कि जिंदगी पर सिर्फ माता- पिता का ही अधिकार रह जाता है? क्या बच्चों का अपनी जिंदगी और अपने सपनों पर कोई अधिकार नहीं होता है ? या उनका अपनी इच्छाओं और अपने सपनों के बारे में अपने नजरिये से सोचना गुनाह है? क्या बच्चों को अपने माता पिता द्वारा इस संसार में लाये जाने के कारण हमेशा उनका कर्जदार महसूस करना होता है? क्या कभी पेरेंट्स ने ये महसूस किया है कि उनके इस तरह के आचरण से उनके बच्चों पर किस प्रकार का मानसिक प्रभाव पड़ता है?
एडल्ट्स पर अपने माता पिता की इच्छाओं के कारण बच्चे कैसा महसूस करते है?
अक्सर बच्चों को ऐसा महसूस कराया जाता है कि वे अपने जीवन के लिए अपने माता पिता के ऋणी है, और हमेशा रहेंगे। जिन सपनों को उनके माता पिता अपने समय मे पूरा नहीं कर पाए थे, वे सपने पूरा करना अब उनके बच्चों की जिम्मेदारी है।
इसलिए अगर किसी के माता पिता डॉक्टर या आर्मी अफसर बनना चाहते थे, लेकिन वे किसी कारणवश नहीं बन पाए, तो अब वही माता-पिता अपने बच्चे से उम्मीद करते है कि, उनके बच्चे उस अधूरे सपने को पूरा करे, लेकिन ये सही नहीं है। क्योंकि बच्चों के भी खुद के बहुत सारे सपने होते है, हो सकता है कि वो हॉकी प्लेयर बनना चाहता हो, लेकिन भारतीय माता पिता को ये कतई स्वीकार्य नहीं है कि उनका बच्चा हॉकी खेलने जैसे फालतू काम करें।
इसलिए ऐसे माता-पिता को अपने बच्चों के सपनों को गलत बताते हुए और बच्चे के भरण पोषण पर किए गए खर्चे को याद दिलाते हुए बच्चों को उनके सपने छोड़ अपने सपने थोपते हुए बिलकुल भी देर नहीं लगती।
माता पिता को बच्चे का मन समझना होगा
इसलिए वो माता पिता जो अपने सपने और इच्छाओं के खातिर अपने बच्चों के सपनों और इच्छाओं का गला घोंट देते है उनसे और बाकि सभी माता- पिता से मै कहना चाहूंगी कि अपने बच्चों के मन को समझे उन्हें उनके जीवन मे वह करने कि आजादी दे जो वे अपने जीवन मे करना चाहते है हालाँकि जब वह गलत हो तो उनको उचित तरीके से समझाना भी गलत नहीं है लेकिन बच्चों को किसी व्यापर मे किये गए निवेश कि तरह समझाना बिलकुल गलत है।
जब बच्चे बड़े हो जाते है तो वे अपने भविष्य से जुड़े फैसले खुद से लेने की क्षमता रखते है इसलिए माता पिता को अपने बच्चों को हर छोटी बड़ी बात पर टोकना बंद कर देना चाहिए। माता- पिता के लिए ये भी जरुरी है कि वे बच्चों को उनका स्पेस दें। क्युकि नियंत्रण और समर्थन के बीच एक बहुत नाजुक डोर होती है। भारतीय परिवेश मे पेरेंट्स और बच्चों के बीच जिस तरह का रिश्ता है उसमे बदलाव कि जरुरत है और ये बदलाव तभी होगा जब पेरेंट्स के मन से बच्चों को अपना स्वामित्व समझने कि भावना ख़त्म होगी।