वेस्टर्न समाज इंडिवीडुअलिस्टिक है, पर भारतीय समाज कम्युनल। इसके कारण भारतीय संस्कृति में शादी और परिवार के बहुत मायने हैं। किसी भी भारतीय के जीवन में परिवार का बहुत ऊंचा दर्जा है। आमतौर पर भारतीय संयुक्त परिवार, यानी जॉइंट फैमिली में रहते हैं, और सरे ज़रूरी फैसले परिवार या माता पिता ही लेते हैं। इसके कारण शादी के फैसले भी अक्सर परिवार ही लेता है।
समाज की नज़रिये में शादी और परिवार बसाने को इतना महत्व दिया गया है कि कई बार शादी को एक अचीवमेंट के तरह देखा जाता है। यह ख़ास कर औरतों के लिए सच साबित होता है। व्यक्ति चाहे लड़का हो या लड़की, पढाई ख़तम होते ही, 25-26 के उम्र से उसके माता पिता उसके शादी के बारे में चर्चा शुरू करते हैं। पड़ौसिया, रिश्तेदार आदि भी मिलने पर शादी के बारे में एक सवाल ज़रूर पूछते हैं। यह दिखने में नार्मल और हार्मलेस लग सकता है पर असल में है नहीं।
शादी एक अचीवमेंट नहीं है।
अक्सर पाया गया है की व्यक्ति के प्रोफेशनल अचीवमेंट्स उसकी शादी न करने की बात के सामने फीकी पड़ जाती हैं। कुछ मशहूर उदाहरण है:
- सलमान खान को लगभग हर इंटरव्यू या प्रेस कांफ्रेंस में उनकी शादी के बारे में पूछा जाता है। आज कल इस टॉपिक पर उनका मज़ाक भी उड़ाया जाता है।
- साइना मिर्ज़ा के शादी के बाद उनसे कई बार माँ बनने के बारे में पुछा गया। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था की “चाहे कोई कितनी भी विम्बलडन जीत ले, अगर वह लड़की है, तो शादी और माँ बनने के सामने बाकि सब के कोई मायने नहीं है”। (उनके इस जवाब के बाद इंटरव्यूअर ने अपनी गलती मानी थी)
- हाल ही में कियारा अडवाणी से उनके “सेटल” होने की, यानि शादी करने के बारे में पूछा गया। उन्होंने बड़ी चतुराई से जवाब दिया की वह काम क्र रही हैं, कमा रही है, तो क्या वह सेटल्ड नहीं हैं?
इन उदाहरणों से पता चलता है कि कैसे शादी के आगे व्यक्ति के सारे अचीवमेंट फीके पड़ते हैं। क्या यह सही है?
हमारे समाज को यह समझने की ज़रूरत है की हर व्यक्ति समाज के बनाय स्क्रिप्ट के अनुसार जीवन नहीं जियेगा। समाज के स्क्रिप्ट के अनुसार, जन्म, पढाई, नौकरी, शादी, बच्चे और रिपीट, यह ज़िन्दगी है। हाँ यह ज़िन्दगी है, पर सबकी नहीं। कुछ लोग शादी से पहले कुछ हासिल करना चाहते हैं। कुछ लोग कभी शादी नहीं करना चाहते। कुछ लोग शादी चाहते हैं पर बच्चे नहीं। यह आम भले ही न हो, मगर गलत भी नहीं है। हर व्यक्ति को अपने अनुसार जीवन जीने का हक़ है।
शादी इंसान को पूरा करता है, यह सोच गलत है। शादी को खाने के बाद की मिठाई के रूप में देखें। कुछ लोगों को मिठाई पसंद होती है, कुछ को नहीं। मीठा न खाने से कोई अधूरा नहीं होता, न ही अविवाहित रहने से कोई अधूरा होता है।