सदियों से, महिलाओं को यह मानने के लिए मजबूर किया गया है कि उन्हें अपने परिवार में पुरुषों की हर बात को मानना चाहिए क्योंकि वे उनके जीवन की बुनियादी ज़रूरतें पुरी करते हैं। इसी तरह, पुरुषों को भी यह विश्वास दिलाया जाता है कि उन्हें अपने जीवन में महिलाओं को नियंत्रित करना चाहिए क्योंकि वे खुद की देखभाल नहीं कर पाती हैं, और आर्थिक रूप से भी मजबूत नहीं हैं।
हमारे पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को नियंत्रित करना काफी हद तक एक पुरुष के कर्तव्य के रूप में देखा जाता है। आज भी महिलाओं से कहा जाता है, "वो कमाता है, तुम्हें उसकी बात मानना चाहिए।" क्या हमने कभी सोचा है कि इस तरह का प्रवचन महिलाओं के जीवन को कैसे बदल देता है?
पितृसत्तात्मक सोच
आपने कभी ऑब्जर्व किया है कि कैसे पिता बेटी को (जो कि पढ़ रहे होती है) उसको कहते हैं जा और अपनी मां का खाना बनाने में मदद कर और लड़की के कपड़े के लिए कह दिए जाते हैं कि इसको जाकर बदलो क्योंकि यह बहुत रिवीलिंग है। और क्या आपने यह ऑब्जर्व किया है कि कैसे हस्बैंड, पिता और भाई घर की महिलाओं को खर्चा करने के लिए रोते हैं। जबकि बहुत सी महिलाएं स्मार्टफोन तक यूज़ नहीं करती हैं, और ना ही दोस्तों के साथ कहीं बाहर जाती हैं।
एक समय था जब सोसायटी महिलाओं को घर से बाहर तक निकलने की इजाजत नहीं दिया करती थी, उनको किसी भी प्रकार की कोई एजुकेशन नहीं मिलती था और ना ही उनका कोई कैरियर होता था वह हर चीज के लिए घर के आदमियों पर डिपेंड होती थीं। ऐसा कहा जा सकता है कि एक महिला जब जन्म लेती थी तो वह पूरी तरीके से अपने पिता के ऊपर निर्भर रहती थी और कुछ समय बाद मतलब शादी के बाद अपने हस्बैंड पर और फिर अपने लड़के पर।
आखिर महिलाओं पर पुरुषों का कंट्रोल क्यों?
आखिर पुरुषों को महिलाओं का जीवन नियंत्रित करने का अधिकार किसने दिया? या यह फिर हमने खुद ही सोच लिया कि एसा चला आरहा है तो चलने दो? इतनी सदियां बदल चुकी है लेकिन उसके बाद भी अभी भी बहुत से लोग महिलाओं को पूरी तरीके से नियंत्रित करते हैं। ऐसा नहीं है कि महिलाओं में आत्मविश्वास की कमी है लेकिन पुरुषों द्वारा बनाया गया दबाव के कारण बहुत सी महिलाएं अपना खुद का डिसीजन नहीं ले पाती हैं।
दूसरी ओर, पुरुष अक्सर महिलाओं को यह बताने में कोई बुराई नहीं देखते कि उन्हें अपने जीवन का क्या करना है। आखिरकार, एक निश्चित पुरुष मित्र के साथ ठीक से कपड़े पहनने या न घूमने की थोड़ी सलाह जल्द ही एक आदेश में बदल जाती है; जो पूर्ण नहीं होने पर अवज्ञा का भ्रम पैदा करता है, अत्यधिक नाजुक पुरुष अहंकार को चोट पहुँचाता है।
समानता के अधिकार का सम्मान करना चाहिए
महिलाओं और पुरुषों दोनों को यह समझने की जरूरत है कि किसी के लिए भोजन और सिर पर छत प्रदान करना किसी व्यक्ति को अपने जीवन को नियंत्रित करने का अधिकार नहीं देता है। कमाई करें या न करें, महिलाएं अपना बचाव करने में पूरी तरह से सक्षम हैं। इसके अलावा, यह केवल पुरुष ही नहीं हैं जो महिलाओं के लिए "प्रदान" करते हैं। विपरीत लिंग भी घर के आसपास अवैतनिक श्रम करता है और देखभाल करने वालों के रूप में कार्य करता है। कई महिलाएं व्यवसाय चलाकर या आधी या पूर्णकालिक नौकरी करके पारिवारिक आय में योगदान करती हैं।
हर किसी को अपना जीवन अपने तरीके से जीने का अधिकार है। परंपरा आदि के कारण कोई भी व्यक्ति किसी का भी जीवन को नियंत्रित नहीं रख सकता है। परसों के पास किसी भी प्रकार का पुलिस की तरह अधिकार नहीं है महिलाओं की रक्षा करने का।
यह आर्टिकल वंशिका के आर्टिकल से इंस्पायर्ड है।