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पितृसत्ता क्या है? कैसे लड़ सकते हैं इससे हम ?

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Swati Bundela
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आजकल एक शब्द बहुत पॉपुलर हो रहा है - पितृसत्ता। काफी लोग इस पितृसत्ता से लड़ने की बातें करते हैं। तो आइये जानते हैं ये पितृसत्ता क्या है और हम समाज में इससे छुटकारा कैसे पा सकते हैं

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पितृसत्ता क्या है ? (Patriarchy kya hai)



Patriarchy जिसको हिंदी में पितृसत्ता भी बोलते हैं, एक टाइप का आईडिया या मिंडसेट है जो हमारी सोसाइटी ने बरसो से फॉलो किया है। इस आईडिया में पुरुष को हमेशा डोमिनेटिंग पोजीशन पे रखा जाता है और वही घर की औरतों और बच्चों को उनसे इन्फीरियर माना जाता है

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या ये भी कह सकते हैं की - पितृसत्ता समाज या सरकार का एक सिस्टम है जिसमें पिता या परिवार का सबसे बड़ा पुरुष उसका मुखिया होता है . इसमें पुरुषों को ज़्यादा हक़ दिए जाते है और महिलाओं को उनके हकों से दूर रखा जाता है ।

महिलाओं पर पितृसत्ता के प्रभाव

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  •  पितृसत्तात्मक समाज में ये माना जाता है कि पुरुष को  घर के लिए पैसे कमा के लाने होते हैं और औरत को घर और बच्चे सँभालने होते है।


  • पितृसत्तात्मक सोसाइटी में महिलाओं के ओपिनियनस को नहीं सुना जाता , उन्हें बोला जाता है की उन्हें कमाने की ज़रुरत नहीं क्यूंकि उनके घर के मेल मेंबर्स कमा रहे हैं ।


  •  ऐसी सोसाइटी में महिलाएं अपने पसंद के कपड़े नहीं पहन सकती और न ही खुद से कोई कदम उठा सकती हैं।


  • उनके पास अपनी ज़िन्दगी अपने ढंग से जीने का अधिकार नहीं होता है


  •  रेप कल्चर भी इसी सोच से ही आया है । Patriarchy के रहते मैरिटल रेप जैसे सेरियस क्राइम को क्रिमिनलाइस नहीं किया गया है ।


  • औरतों को ज़्यादातर ' लेडी लाइक' तरीके से रहने के लिए कहा जाता है। इसका मतलब है उन्हें बोला जाता है कि उन्हें सर झुका के चलना चहिये, ज़्यादा बोलना नहीं चहिये, सबसे आगे बढ़के माफ़ी मांगनी चाहिए और पता नहीं क्या क्या।


  • ' स्ट्रीट हर्रासमेंट ' का शिकार सबसे ज़्यादा महिलाएं ही होती हैं । उन्हें ये फील कराया जाता है कि वो चाहे कहीं भी जाये, वो कहीं भी सेफ नहीं है। और वो वैसी ज़िन्दगी नहीं जी सकती जैसी उन्हें पसंद है




लेकिन हैरानी की बात ये है की पितृसत्ता  पुरुषों को भी उतना ही नुक्सान पहुंचाती है जितना महिलाओं को ।
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पुरुषों पर पितृसत्ता के प्रभाव



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  •  लड़कों को बचपन से ही सिखाया जाता है की वो स्ट्रांग है, उन्हें दर्द नहीं होता और जो लड़का रोता है वो मर्द नहीं होता।


  •  ये सब चीज़ें टॉक्सिक मस्क्युलिनिटी ( toxic masculinity) में बदल जाती है और लड़को को नहीं समझ आता की वो अपनी

    भावनाएं कैसे एक्सप्रेस करे। आखिर कार वो अपना गुस्सा औरतों पे उतार देते हैं ।


  •  इस सोच के अनुसार लड़के कुकिंग नहीं कर सकते, पिंक कलर पसंद नहीं कर सकते।


  • फीमेल को आदर्श नहीं बना सकते, घर पे बैठ कर बच्चों का ध्यान रखने का निर्णय नहीं ले सकते और अपनी सेंसिटिव साइड भी नहीं दिखा सकते । यही कारण है की मेन में वीमेन से ज़्यादा मेन्टल हेल्थ इश्यूज देखे जाते हैं ।




पितृसत्ता का विपरीत : मातृतंत्र ( Matriarchy )

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मातृतंत्र वह समाज होता है जिसमे महिलाओं का रूल होता है। या फिर कह सकते है मातृतंत्र समाज या सरकार का एक सिस्टम है जिसमें माता या परिवार कि सबसे बड़ी महिला मुखिया होती है और वंश को फीमेल लाइन के माध्यम से जाना जाता है।

हम पितृसत्ता से कैसे लड़ सकते हैं

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लेकिन अब समय आ गया है कि हम पितृसत्ता को ख़तम करने के बारे में सोचे । ये तब हो सकता है जब हम लोगों को जेंडर की बेड़ियों से मुक्त करें और उन्हें अपनी ज़िन्दगी अपने तरीके से जीने दे । ये तब होगा जब हम लोगों कजेंडर के लेंस से नहीं बल्कि इंसानों की तरह देखना शुरू करेंगे ।



हमें अपने बच्चों पे उनके जेंडर की वजह से रेस्ट्रिक्शन नहीं लगाना चाहिए । हमें उनसे ये नहीं कहना चाहिए कि तुम लड़के हो, लड़की की

तरह मत रो । तुम लड़की हो लड़को कि तरह मत बात करो. और हमें बच्चों को सेंसिटिव बनाना होगा । उनको बताना होगा कि दुनिया में सब लोग बराबर है और हमें सबको एक जैसे इज़्ज़त देनी होगी।

पढ़िए : भारत में कानूनी अधिकार हर विवाहित महिला को पता होने चाहिए

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