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"महिलाओं के मध्य छिपी है
सौ-सौ डाके डाले उसने
एक-एक की नाक तराशी
एक-एक की कुतर गई है कान
दसियों की तो आंखे फोड़ीं
बदल-बदलकर घोड़े उड़ती
जिला बदलती ही रहती
फूलन देवी दुर्गामाता की बेटी है
कौन सामना कर सकता है !
दाएं-बांए बीसों को ठंडा करती है
कारतूसों की मालाओं से हमने उसको पहचाना था
मैनपुरी के एक गांव में
ठाकुर के घर डटी हुई थी फूलन देवी
लगता था, हां, सिंहवाहिनी
प्रकट हुई है
मैनपुरी के एक गांव में !"
(नागार्जुन की कविता 'फूलन देवी')
यह कविता पढ़कर आपको थोड़ा अंदाज़ा तो लग ही गया होगा कि फूलन देवी साधारण महिला नहीं बल्कि शेरनियों सी दहाड़ने वाली बोल्ड लेडी थीं। ऐसे देखा जाए तो हमें फूलन देवी को फेमिनीस्ट मूवमेंट और जाति के भेदभाव के खिलाफ़ लड़ने वाली आइकॉन के रूप में याद करना चाहिए। जिससे सोसायटी में खासकर फीमेल विक्टिमस् के बीच उनको लेकर पॉज़िटीव मैसेज़ दिया जा सके। टाइम मैगजीन ने जब दुनिया की सबसे टॉप फीमेल रेबल्स की लिस्ट बनाई, तो उसमें चौथे नंबर पर फूलन देवी का नाम चुनकर उनके पर्सनेलिटी को और ज्यादा फेमस कर दिया।
जब भी कभी हमारें सोसायटी में रेप होता है तो हर ओर से एक ही आवाज आती है कि रेपिस्टस को फांसी मिलनी चाहिए। लेकिन फूलन देवी ने अपने आप को खुद जस्टिस दिलाया। कई बार देखा गया है कि अगर लड़की ज्यादा बोलती-चालती हो या अपने हक के लिए लड़ना जानती हो तो उसे दो ही खिताब मिलते है या तो उसे झांसी की रानी बोल दिया जाता है या उसे चरित्रहीन कह दिया जाता है। इन दो खिताबों की कहानी भी बदली जब लड़कियों को फूलन कहां जाने लगा।
उस टाइम में फूलन देवी का नाम फिल्म शोले के गब्बर सिंह से भी ज़्यादा ख़तरनाक बन चुका था।अक्सर कुछ महिलाओं को फूलन देवी की धमकी और मिसाल देते सुना जाता था कि फूलन देवी का निशाना बड़ा अचूक था और उससे भी ज़्यादा कठोर था उनका दिल।
आइए, जानते है उनके जन्म से लेकर मौत तक का सफ़र।
फूलन देवी का जन्म और बचपन का संघर्ष
फूलन देवी का जन्म उत्तर प्रदेश के जालौन के पास बने एक गांव पूरवा में 10 अगस्त 1963 में हुआ था। इसी गांव से उनकी कहानी भी शुरू होती है। फूलन में पितृसत्ता का कोई खौफ़ नहीं था। वह अपने मां-बाप और बहनों के साथ रहती थीं। कानपुर के पास स्थित इस गांव में फूलन के परिवार को मल्लाह जाति होने के चलते ऊंची जातियों के लोग नीच मानतें थे। इनके साथ गुलामों जैसा बर्ताव किया जाता था। फूलन ने अपनी मां से सुना था कि चाचा ने उनकी जमीन हड़प ली थी। दस साल की उम्र में ही वो अपने चाचा से जमीन के लिए भिड़ गई और धरना दे दिया।
इस गुस्से की सजा फूलन को उसके घरवालों ने भी दी। दस साल की उम्र में ही उसकी शादी उससे 30-40 साल बड़े आदमी से कर दी गई। उस आदमी ने शादी की पहली रात ही फूलन से बलात्कार किया। कुछ साल किसी तरह से निकले लेकिन धीरे-धीरे फूलन की हेल्थ इतनी खराब हो गई कि उसे मायके वापिस आना पड़ गया। पर कुछ दिन बाद ही उसके भाई ने उसे वापस ससुराल भेज दिया। जब फूलन ससुराल वापिस गई तब वहां जा के पता चला कि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है। उसके पति और उसकी बीवी ने फूलन की काफी बेइज्जती की। और लास्ट में फूलन को घर छोड़कर आना पड़ा।
फिर शुरू हुआ फूलन का डाकू जीवन
अब फूलन का उठना-बैठना उन लोगों के साथ होने लगा जो डाकुओं के गैंग से जुड़े हुए थे। धीरे-धीरे फूलन का उनके साथ घूमना-फिरना बढ़ने लगा। फूलन ने ये कभी क्लियर नहीं किया कि वह अपनी मर्जी से उनके साथ गई या फिर उन लोगों ने उन्हें किडनेप कर लिया था। फूलन ने इसके बारें में अपनी आत्मकथा में कहा: शायद किस्मत को यही मंजूर था। लेकिन जैसे ही गैंग में फूलन आई उनके आने के बाद परेशानियां बढ़ गई। सरदार बाबू गुज्जर को फूलन से प्यार हो गया। और इस बात को लेकर गैंग के एक मेंबर विक्रम मल्लाह ने उसकी हत्या कर दी और सरदार बन बैठा। अब फूलन का साथ विक्रम को मिलने लगा। फिर एक दिन फूलन अपने गैंग के साथ अपने पति के गांव गई और वहां जाकर अपने पति और उसकी बीवी दोनों को बहुत पीटा।
बेहमई कांड:- 3 सप्ताह तक गैंगरेप और फिर 22 ठाकुरों की हत्या ने बदला पूरा किया
अब इस गैंग की भिड़ंत हुई ठाकुरों के एक गैंग से जिसको सरदार श्रीराम ठाकुर और लाला ठाकुर थें। ये लोग और इनका गैंग बाबू गुज्जर की हत्या से नाराज था और इसका जिम्मेदार फूलन को ही मानता था। दोनों गैंग में लड़ाई हुई और विक्रम मल्लाह को मार दिया गया। और फिर ठाकुरों के गैंग ने फूलन को निशाना बनाया और किडनैप कर उन्हें बेहमई गांव में एक घर के एक कमरे में बंद कर दिया गया। तीन हफ्तें तक उंची जाति के मर्दों ने फूलन को काफी पीटा, रेप किया और बेईज्जत किया। उन लोगों ने उन्हें गाँव के चारों ओर बिना कपड़ों के घुमाया। लेकिन, तीन हफ्तें के बाद फूलन जैसे-तैसे अपनी जान बचाकर वहां से भाग गई।यहां से छूटने के बाद फूलन डाकुओं के गैंग में शामिल हो गई।
बेहमई से भागने के कई महीनों बाद, 14 फरवरी 1981 की शाम को फूलन बदला लेने के लिए गाँव लौटी। उस समय गाँव में एक शादी चल रही थी। फूलन ने वहां मौजूद लोगों से श्रीराम ठाकुर और लाला ठाकुर का पता मांगा लेकिन किसी ने बताने की हिम्मत नहीं की। वह दो लोगों को पहचान गई जिन्होंने उनके साथ बलात्कार किया था। फिर फूलन देवी ने गाँव के सभी मर्दों को कुएँ के पास एक लाइन में खड़ा कर दिया, उन्हें घुटने टेकने को कहा और फिर गोलियों की बौछार कर दी जिसमें 22 लोग मारे गए।
इस हत्याकांड ने उन्हें अब दहशत की रानी बना दिया और वह फूलन से बैंडिट क्वीन बन गई। बेहमई कांड ने उन्हें पूरे राज्य में मशहूर कर दिया लेकिन इसके बाद ही उन्हे पकड़ने के मनसूबे बनाए जाने लगे और वह हर बार बच निकलती।
जेल से एग्ज़िट कर, मारी राज़नीति में एंट्री
बेहमई के इस इंसिडेट ने पूरे देश में हाहाकार मचा दिया। उत्तर प्रदेश के उस समय के मुख्यमंत्री वी॰पी॰ सिंह ने बेहमाई में हुए गोलीकांड के बाद इस्तीफा दे दिया। फूलन को पकड़ने के लिए पुलिस की एक बड़ी टीम अपने काम पर लग गई। फिर भी उन्हे पकड़ न पाई। फूलन का पता बताने वाले को ईनाम देने का भी एलान किया गया लेकिन कोई भी सामने नही आया क्योंकि फूलन को उस जगह के गरीब लोगों का सपोर्ट मिल रहा था। फूलन देवी की कहानी रॉबिन हुड मॉडल की कहानियों की तरह मीडिया में घूमने लगीं। और उन्हें बैंडिट क्वीन कहा जाने लगा। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सरकार ने फूलन देवी को आत्मसमर्पण और बातचीत के लिए विवश किया था। इसी बीच भिंड के एसपी राजेंद्र चतुर्वेदी ने फूलन के गैंग से बात-चीत और मेल-मिलाप जारी रखा। वैसे तो इस बात की कम कहानियां हैं, पर एसपी की चाल और तेज़ दिमाग़ का ये रिज़ल्ट था कि दो साल बाद 1983 में फूलन खुद को सरेंडर करने के लिए राजी हो गईं। सरेंडर करने को लेकर फूलन ने एक शर्त रखी कि वह पुलिस के अधिकारियों के सामने हथियार नहीं रखेगीं। फूलन देवी ने कहा कि वे अपने हथियार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और दुर्गा माता के सामने ही समर्पण करेगी। उन पर 22 मर्डर, 30 डकैती, 18 किडनेपिंग के चार्जेज लगे और11 साल जेल की सज़ा हुई।
अरुंधती रॉय ने ऐसा लिखा है कि जेल में फूलन से बिना पूछे ऑपरेशन कर उनका यूटरस निकाल दिया गया। डॉक्टर ने पूछने पर कहा- अब ये दूसरी फूलन नहीं पैदा कर पायेगी।
फिर 1993 में मुलायम सिंह की सरकार ने उन पर लगे सारे आरोप वापस लेने का फैसला किया। इस डिसीज़न ने पॉलिटीक्स में बड़ा अहम रोल निभाया। सब लोगों की आंखें खुली की खुली रह गई।
जब 1994 में फूलन जेल से छूट कर आई तब उनकी शादी उम्मेद सिंह से हो गई। इसके दो साल बाद ही मुलायम सिंह ने यूपी की मिर्जापुर सीट से फूलन को चुनाव लड़ने का ओॉफर दिया और वो उस सीट से जीतकर सांसद बनी और दिल्ली पहुंच गई। चम्बल में घूमने वाली फूलन अब दिल्ली के अशोका रोड के शानदार बंगले में रहने लगी थी।
जब जिंदगी बदली फूलन की, तभी उनकी सांसे छीन ली उनके इस दुश्मन ने
25 जुलाई 2001 फूलन की जिंदगी का आखिरी दिन था। खुद को राजपूत गौरव के लिए लड़ने वाला योद्धा बताने वाला शेर सिंह राणा फूलन से मिलने आया। इच्छा जाहिर की कि फूलन के संगठन ‘एकलव्य सेना’ से जुड़ेगा। खीर खाई और फिर घर के गेट पर फूलन को गोली मार दी। उसने कहा कि मैंने बेहमई हत्याकांड का बदला लिया है। 14 अगस्त 2014 को दिल्ली की एक अदालत ने शेर सिंह राणा को पूरी ज़िंदगी जेल
में बिताने की सजा सुनाई। हालांकि, हमले में शामिल राणा के तीन दोस्तों को छोड़ दिया गया था। साल 2017 में इसी अदालत ने शेर सिंह राणा को जमानत दे दी। इसके बाद 20 फरवरी 2018 को छतरपुर से पूर्व विधायक राणा प्रताप सिंह की बेटी प्रतिमा राणा से रुड़की में शादी की इस बार भी वह देशभर में सुर्खियों में रहा क्योंकि शेर सिंह राणा ने दहेज में मिली 10 करोड़ की खदान, 31 लाख रुपए के शगुन को ठुकराकर चांदी का सिक्का लेकर शादी की थी।
फूलन देवी के इस मर्डर को कई तरह से देखा जाता है। कभी यह एक राजनीतिक साजिश लगती है तो कभी यह शक़ उनके पति उम्मेद सिंह पर भी जाता है। फूलन देवी पर फिल्म बैंडिट क्वीन भी बन चुकी है। इसके डायरेक्टर शेखर कपूर थे। इस फिल्म से फूलन को काफी परेशानियां भी थी जिस वजह से कई कट्स के बाद फिल्म रिलीज़ हुई। लेकिन बाद में सरकार ने ही इस फिल्म को बैन कर दिया।