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Pitru Paksha 2023 : पितृ पक्ष में जानें क्या करें और क्या न करें

ब्लॉग: पितृ पक्ष या श्राद्ध एक 15 दिन की अवधि है जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद के महीने में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दौरान शुरू होती है। आइए जानते हैं इस ब्लॉग में क्या करें और क्या ना करें इस दौरान-

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Vaishali Garg
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Pitru Paksha 2023

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Pitru Paksha 2023: पितृ पक्ष या श्राद्ध एक 15 दिन की अवधि है जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद के महीने में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दौरान शुरू होती है। यह कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को समाप्त होता है। इस अवधि के दौरान, हिंदू अपने पूर्वजों की दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। पितृ पक्ष को श्राद्ध के अनुष्ठान और एक प्रतिबंधित जीवन शैली द्वारा चिह्नित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस अवधि के दौरान श्राद्ध के अनुष्ठान से पूर्वजों को मोक्ष या मोक्ष प्राप्त करने में मदद मिलती है।

Pitru Paksha 2023: क्या करें और क्या न करें

  1. श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी कई बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं। मगर ये बातें श्राद्ध करने से पहले जान लेना बहुत जरूरी है, क्योंकि कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते हैं। आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें बता रहे हैं, जो ज्योतिषी राजा सचदेवा जी द्वारा बताई गईं हैं।
  2. श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितृ भोजन नहीं करते।
  3. श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं। दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए।
  4. श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है। पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और खाने के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है।
  5. ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करें।
  6. जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए।
  7. श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं।
  8. दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत , पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते, क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है। अत : इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है।
  9. चाहे मनुष्य देवकार्य ( पूजन आदि ) में ब्राह्मण की चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए, क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है।
  10. जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहनी वाली अपनी बहिन, जमाई और भानजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते।
  11. श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है।
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