नेशनल फॅमिली हेल्थ सर्वे (2019-21) के अनुसार, रूरल भारत में 15-24 आयु वर्ग की 70% महिलाएं पीरियड्स के दौरान सैनिटरी नैपकिन का उपयोग नहीं करती हैं।
भारत में कई महिलाएं असुरक्षित तरीकों का इस्तेमाल करती हैं, जैसे राख, भूसी या रेत से भरा कपड़ा या मेक-डू पैड। स्वच्छ प्रोडक्ट्स का उपयोग नहीं करने से कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, जिनमें रिप्रोडक्टिव और यूरिनरी ट्रैक्ट के इन्फेक्शन शामिल हैं।
अन्य समस्याएं-
‘मेंस्ट्रुअल हेल्थ इन इंडिया’ के शीर्षक से 2016 के एक एनालिसिस में पाया गया कि भारत में लगभग 355 मिलियन लड़कियां जो पुबर्टी तक पहुंच चुकी है, उनमें 71% ने अपनी पहली पीरियड से पहले पीरियड्स के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। कई लड़कियों का मानना है कि वे पहली बार पीरियड्स के दौरान बीमार हैं।
सेनेटरी प्रोडक्ट्स और सुविधाओं तक पहुंच का अभाव: भारत में मेंस्ट्रुटिंग महिलाओं और लड़कियों को अक्सर कई कारणों से पीरियड प्रोडक्ट्स तक पहुंचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जैसे प्रोडक्ट की अनुपलब्धता, गरीबी और शर्म की भावना।
रूरल वातावरण
आज भी लड़कियों और महिलाओं को पीरियड के दौरान रोक टोक किया जाता है, उन्हें अपवित्र माना जाता है, और उन्हें धार्मिक स्थानों या रसोई में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है।
पीरियड प्रोडक्ट्स की कमी के कारण भारत में लगभग 23 मिलियन लड़कियां हर साल स्कूल छोड़ देती हैं, साफ़ पानी और कूड़ेदान वाला स्वच्छ शौचालय, सैनिटरी नैपकिन तक पहुंच और जागरूकता की कमी के कारण।
इतनी सारी महिलाएं अस्वच्छ तरीकों का इस्तेमाल क्यों करती हैं?
पार्ट्रीआर्केल सामाज: ग्रामीण क्षेत्रों में सामाज आज भी पैरिअर्चल है। महिलाओं के जरूरतें दूसरे नंबर पर आती हैं। महिलाओं की ऑटोनोमी और स्वास्थ्य के संबंध में विचार करना और भी कम है।
टैबू
आज भी भारत में पीरियड्स एक बहुत बड़ा टैबू का विषय है। टीचर इस टॉपिक को स्कूल में स्किप कर देते हैं, माता पिता बात नहीं करना चाहते, और पुरुष के सामने कुछ बोलना आपको ‘चरित्रहीन’ का टैग दिला सकता है। आप पद खरीदने जाएं तो काला पैकेट में दिया जायेगा, मगर शराब और सिगरेट खुला ही बिकता है, इससे टैबू का एहसास होता है।
फाइनेंसियल इशु
सैनिटरी पैड को सस्ता बनाना एक बात है और यह सुनिश्चित करना कि महिलाएं इनका उपयोग करना जारी रखें, बिल्कुल दूसरी बात है। यह पैसे की कमी वाले परिवारों से अतिरिक्त खर्च के लिए कहने जैसा है। इस कारण भी कई महिलाएं अस्वच्छ तरीके इस्तेमाल करती हैं।
क्या किया जा सकता है?
अगर हम चाहते हैं कि हमारे देश की महिलाएं स्वस्थ और सुरक्षित रहें, हमें मेनस्ट्रॉल हाइजीन के बारे में जागरूकता बढ़ाना होगा। एन जी ओ और सरकारी आर्गेनाईजेशन अपना काम करने का प्रयास कर रहे हैं, मगर हम क्या कर सकते हैं?
- हम अपने सेनेटरी नैपकिन खरीदते समय दुकानदार को कह सकते हैं की उसे छुपाने की ज़रूरत नहीं।
- मेंस्ट्रुएशन के बारे में बात करना, ताकि इससे टैबू की भावना हटे।
- अपने बच्चों को इस बारे में जागरूक करना ताकि आगे वाले जनरेशन में टैबू न हो और आपके बच्चो को पता हो की वे आपसे अपने प्रश्न पूछ सकते हैं।
- हम अपने घर में काम करने वाली महिलाओं को फ्री पैड दे सकते हैं।
- रियूजेबल ओपश्न, जैसे मेंस्ट्रुअल कप, क्लॉथ पैड आदि के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
हमारे छोटे कदम आगे जा कर महिलाओं के लिए मेंस्ट्रुएशन को एक समस्या नहीं बल्कि एक आम फंक्शन जैसे पेश करेगा।