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जैसे ही रात होती है, कुलदीप कौर एक हाथ में लाठी और दूसरे हाथ में टॉर्च लिए निकल पड़ती है अपने घर से बाहर, अपने गांव की रखवाली या कहिए चौकीदारी करने के लिए। कुलदीप की उम्र 55 साल है और वह 2008 से ही पंजाब में स्थित अपने बंगीवाल गांव की रक्षा कर रही है यह पंजाब की पहली महिला चौकीदार हैं.
कुलदीप सरकार द्वारा चुने गए 2 महिला चौकीदारों में से एक है। दूसरी महिला चौकीदार रज़िया बेग़म है जो अपने गांव 'बीर' की रक्षक है। बीर बंगीवाल गांव से 15 कि.मी. की दूरी पर है। रज़िया बेगम को कुलदीप कौर की नियुक्ति के 1 या 2 साल बाद नियुक्त किया गया था। इन पावरफूल महिलाओं ने Gender Stereotypes के मुंह पर करारा थप्पड़ मारते हुए अपना काम निडरता और बहादुरी से निभा रही हैं।
सरकार द्वारा 13,500 चौकीदारों की भर्ती में 13000 चौकिदारों को पंजाब के गांवों के लिए अपोइंट किया गया था। उन 13000 चौकिदारों में महिलाओं में केवल कुलदीप कौर और रज़िया बेगम अपनी जगह बना पाई।
कुलदीप कौर ने 55 साल की उम्र में इस नौकरी को करते हुए ये साबित कर दिया कि कोई भी काम महिलाओं के मुश्किल नहीं है। कुलदीप कौर रात में सूट-सलवार पहनें, हाथ में लाठी और टॉर्च लिए सबसे पहले गांव की गलियों और आस-पास के एरिया में घूम-फिर के सब चेक करती है। जैसे ही घड़ी में 9.30 बजते है वो मेन सड़क की और चली जाती है। "मेन सड़क पर एक चबूतरा बना है, बरगद के पेड़ के नीचे। दिन में ज्यादातर लोग वहां बैठ के ताश खेलते हैं। मैं वहां जाकर बैठ 20-30 मिनट बैठ जाती हूं और फिर गांव के किसा भी व्यक्ति का नाम लेकर चिल्लाती हूं 'जागते रहो'" (The Tribune).
पहले के दिनों में कुलदीप कौर 7-8 घंटे काम करती थी और सुबह के 4 बज़े घर वापिस लौटती थी। लेकिन, अब आंखों में कुछ परेशानी होने के कारण वो रात में 3-4 घंटे ही काम कर पाती है, बाकी समय उनका बेटा उनकी ड्यूटी संभालता है। कुलदीप के गांव में करीब 1500 लोग रहते हैं और 500 के आस-पास घर हैं।
कुलदीप के पति की मौत हार्ट अटैक से हो गई थी। कुलदीप से पहले वो ही इस गांव के चौकीदार थे। पति की अचानक मौत के कारण सरकार द्वारा उनकी नौकरी कुलदीप कौर को दे दी गई। 8 बच्चों की सिंगल मदर होने के कारण उनके पास इस नौकरी को एक्सेप्ट करने के अलावा और कोई ऑप्शन नही था। लेकिन इस नौकरी को करने के फैसले पर उन्होनें कभी रिग्रेट नही किया बल्कि इस काम से उन्हें एक नई पहचान मिली।
पहले इस काम के लिए उन्हें 800 रूपये मिलते थे जो अब बढ़कर 1250 तक हो गई है। फिर भी घर चलाने के लिए ये राशी कम ही है। जब कुलदीप कौर से रात में चौकीदार की नौकरी करने पर डर लगने के बारें में पुछा गया तो उन्होनें बताया कि वो कभी नही डरती थी। हालांकि, शुरूआती दिनों में उनके बच्चें उनके लिए डरते थे और उनके साथ रात में पहरेदारी करने आतें थे, लेकिन समय के साथ-साथ उनका डर भी कम हो गया। अब वो कुलदीप कौर को सुपरवूमेन कहकर पुकारते हैं।
कुलदीप जो खुद कभी स्कूल नही गई वो चाहती है कि वो अपने बच्चों को अच्छे से पढ़ा सके। हर रात अच्छे से बीतने पर वो भगवान का शुक्रिया अदा करती है फिर अपने घर की ओर निकल पड़ती है। कुलदीप कौर का मानना हैं कि उन्होनें कोई बड़ा काम नही किया है। पर देखा जाए तो वो अपने गांव की लड़कियों के लिए एक मिसाल ज़रूर बनी हैं।
कुलदीप सरकार द्वारा चुने गए 2 महिला चौकीदारों में से एक है। दूसरी महिला चौकीदार रज़िया बेग़म है जो अपने गांव 'बीर' की रक्षक है। बीर बंगीवाल गांव से 15 कि.मी. की दूरी पर है। रज़िया बेगम को कुलदीप कौर की नियुक्ति के 1 या 2 साल बाद नियुक्त किया गया था। इन पावरफूल महिलाओं ने Gender Stereotypes के मुंह पर करारा थप्पड़ मारते हुए अपना काम निडरता और बहादुरी से निभा रही हैं।
सरकार द्वारा 13,500 चौकीदारों की भर्ती में 13000 चौकिदारों को पंजाब के गांवों के लिए अपोइंट किया गया था। उन 13000 चौकिदारों में महिलाओं में केवल कुलदीप कौर और रज़िया बेगम अपनी जगह बना पाई।
कुलदीप कौर ने 55 साल की उम्र में इस नौकरी को करते हुए ये साबित कर दिया कि कोई भी काम महिलाओं के मुश्किल नहीं है। कुलदीप कौर रात में सूट-सलवार पहनें, हाथ में लाठी और टॉर्च लिए सबसे पहले गांव की गलियों और आस-पास के एरिया में घूम-फिर के सब चेक करती है। जैसे ही घड़ी में 9.30 बजते है वो मेन सड़क की और चली जाती है। "मेन सड़क पर एक चबूतरा बना है, बरगद के पेड़ के नीचे। दिन में ज्यादातर लोग वहां बैठ के ताश खेलते हैं। मैं वहां जाकर बैठ 20-30 मिनट बैठ जाती हूं और फिर गांव के किसा भी व्यक्ति का नाम लेकर चिल्लाती हूं 'जागते रहो'" (The Tribune).
पहले के दिनों में कुलदीप कौर 7-8 घंटे काम करती थी और सुबह के 4 बज़े घर वापिस लौटती थी। लेकिन, अब आंखों में कुछ परेशानी होने के कारण वो रात में 3-4 घंटे ही काम कर पाती है, बाकी समय उनका बेटा उनकी ड्यूटी संभालता है। कुलदीप के गांव में करीब 1500 लोग रहते हैं और 500 के आस-पास घर हैं।
इस सफर की शुरूआत कैसे हुई?
कुलदीप के पति की मौत हार्ट अटैक से हो गई थी। कुलदीप से पहले वो ही इस गांव के चौकीदार थे। पति की अचानक मौत के कारण सरकार द्वारा उनकी नौकरी कुलदीप कौर को दे दी गई। 8 बच्चों की सिंगल मदर होने के कारण उनके पास इस नौकरी को एक्सेप्ट करने के अलावा और कोई ऑप्शन नही था। लेकिन इस नौकरी को करने के फैसले पर उन्होनें कभी रिग्रेट नही किया बल्कि इस काम से उन्हें एक नई पहचान मिली।
पहले इस काम के लिए उन्हें 800 रूपये मिलते थे जो अब बढ़कर 1250 तक हो गई है। फिर भी घर चलाने के लिए ये राशी कम ही है। जब कुलदीप कौर से रात में चौकीदार की नौकरी करने पर डर लगने के बारें में पुछा गया तो उन्होनें बताया कि वो कभी नही डरती थी। हालांकि, शुरूआती दिनों में उनके बच्चें उनके लिए डरते थे और उनके साथ रात में पहरेदारी करने आतें थे, लेकिन समय के साथ-साथ उनका डर भी कम हो गया। अब वो कुलदीप कौर को सुपरवूमेन कहकर पुकारते हैं।
कुलदीप हैं महिलाओं के लिए एक प्रेरणा
कुलदीप जो खुद कभी स्कूल नही गई वो चाहती है कि वो अपने बच्चों को अच्छे से पढ़ा सके। हर रात अच्छे से बीतने पर वो भगवान का शुक्रिया अदा करती है फिर अपने घर की ओर निकल पड़ती है। कुलदीप कौर का मानना हैं कि उन्होनें कोई बड़ा काम नही किया है। पर देखा जाए तो वो अपने गांव की लड़कियों के लिए एक मिसाल ज़रूर बनी हैं।
पढ़िए : ईरानियन डॉक्टर शिरीन रूहानी हम सबके लिए एक प्रेरणा है