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रेप होने पर महिलाओं पर विश्वास की जगह शक क्यों किया जाता है?
इस समाज ने बचपन से हमेशा लड़कियों को ही समझाया है की ये मत करो, ऐसे मत बैठो, लडको के सामने जुबान मत चलाओ, ऐसी हरकतें करोगी तो को करेगा तुम से शादी। लेकिन क्या कभी किसी ने अपने बेटो को समझने की कोशिश की की महिलाओ का सामान करो, उनको आदर से देखो चाहे वो तुम्हारी मां, बहन, दोस्त, या कोई भी हो।
आज भी जब एक लड़की या औरत का रेप होता है, उस समय के लिए हम सब काफी अफसोस करते है लेकिन उसके अगले ही क्षण हम उस महिला या औरत पर ही शक करने लग जाते हैं। मन घड़न बातें बनाने लग जाते है। की उसके कपड़े ढंग कर नहीं होंगे, लड़की ने उकसाया होगा वरना कोई आदमी खुद भला क्यों करेगा।
हमारे समाज में क्या कमी है?
हमारा समाज आज भी औरतों को इसका दोषी मानता है। इसीलिए उन पर विश्वास करने की जगह हम उन्हें शक की निगाहों से देखते है। इसके कही करुण है जैसे कि जब भी इस प्रकार कि कोई भी घटना घटती है लोग अक्सर अपनी बेटियों को घर में रहने को कहते है, समाज में नज़रे झुका कर चलने को कहते है जिससे लड़कियों का मनोबल और कम हो जाता है और वो अपने आप को कमजोर समझने लगती है।
इस से लड़ने और ख़तम करने के लिए हमें एक जुट हो कर इस चोटी सोच का सामना करना है एक बेहतर कल के लिए। हमारे और आने वाले पीढ़ी के लिए। हमें मिल कर महिलाओं को हौसला, हिम्मत देनी है और उनका साथ देना है की वो अपनी आवाज़ बिना झिझक और संकोच के उठा सके। अपना हक और इंसाफ मांग सके। और इस रेप कल्चर का नाश हो सके।