कोविड के दौरान कंपनियों ने अपने एंप्लॉय के स्वास्थ्य व उनकी खुशी के महत्व को जाना है। घर में बंद रहने के कारण होने वाले स्ट्रेस और मानसिक तनाव का शिकार होने के कारण नजाने कितनी ही कम्पनियों ने अपने बेस्ट एंप्लॉयज को खोया है। इसलिए अब अब वर्कप्लेस में उनकी खुशी का पूरा ध्यान रखने की कोशिश जारी है।
इसी के बारे में जानने के लिए happiness.me ने एक सर्वे किया है जिसके दौरान उन्होंने 1360 एंप्लॉयज से बातचीत की। इसके परिणाम में सामने आने वाली 10 महत्वपूर्ण बातें-
1. भारत की 59 प्रतिशत काम करने वाले लोग अपने वर्कप्लेस से नाखुश हैं।
2. वर्कप्लेस हैप्पीनेस मनोवैज्ञानिक और कार्यक्षेत्र से जुड़े तत्वों का जोड़ है।
3. ज्यादा स्वाधीनता और पर्सनल स्पेस वर्कप्लेस हैप्पीनेस को बढ़ाता है।
4. ज्यादा तनाव और जिंदगी और काम के बीच के बिगड़े हुए संतुलन से वर्कप्लेस हैप्पीनेस में कमी आती है।
5. पुरुष अपने कार्यक्षेत्र से महिलाओं की तुलना में ज़्यादा संतुष्ट हैं।
6. ज्यादातर काम करने वाले लोग अपने काम में फ्लैक्सिबिलिटी में बढ़ोतरी चाहते हैं।
7. फुल टाइम एंप्लॉयीज पार्ट टाइम एंप्लॉयज के मुकाबले ज़्यादा खुश हैं।
8. जो एंपलॉयर्स काम छोड़ना चाहते हैं वे खुद ना खुश नहीं है बल्कि अपने काम से नाखुश हैं।
9. पीढ़ियों में नौकरी छोड़ने के इन कारणों में ज्यादा कमी नहीं आई है।
10. वर्कप्लेस हैप्पीनेस और दुरस्त सेहत दोनों ही स्वाबलंबी संतुष्टि k लिए ज़रूरी हैं।
सर्वे के दौरान यह मालूम हुआ है कि महिलाओं के मुकाबले पुरुष अपने कार्य क्षेत्र से ज्यादा संतुष्ट हैं। पुरुषों के पास स्वाधीनता, वर्क लाइफ संतुलन और घर की जिम्मेदारियों का कम बोझ जैसे विशेषाधिकार हैं जो कि महिलाओं के पास अक्सर नहीं देखे जाते हैं। महिलाएं अपने काम से खुश नहीं है क्योंकि वे अपने काम के मुताबिक वेतन नहीं पाती जो कि उन्हें असंतुष्ट करता है।
इसके साथ ही घर की जिम्मेदारियों और ऑफिस का काम बराबर मात्रा में करने का बोझ उनके सर पर बना रहता है जो उनका तनाव बढ़ाता है और उन्हें असंतुष्ट व चिढ़चिढ़ा बनाता है। यहां तक की कई सारी महिलाओं को इन जिम्मेदारियों के बोझ तले दब कर अपनी नौकरी तक छोड़नी पड़ती है और अपनी अभिलाषा का त्याग करना पड़ता है।