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Moms Should Not Feel Guilty : इन चीज़ों का कभी न करें पछतावा

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हमारे समाज में महिलाओं का हर प्रकार से उत्पीड़न किया जाता है। उन्हें मानसिक तौर पर यह विश्वास दिला दिया जाता है कि वह जो काम कर रही हैं वह गलत है। उन्हें वह नहीं करना चाहिए। और इसी वजह से महिलाओं को पछतावा होता है। महिलाओं को यह बताया जाता है कि मां के रूप में उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। लेकिन यह किस हद तक ठीक है? 

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हमारा समाज महिला से यह उम्मीद करता है कि वह एक मां, बेटी और बहन की सभी जिम्मेदारियां पूरी करें। उनसे एक आइडियल वूमेन बनने की अपेक्षा की जाती है। लेकिन आइडियल वूमेन कैसी होती है ? इसकी क्या परिभाषा है? समाज अपनी मर्जी से औरत के लिए कुछ मापदंड बना देता है। जिन्हें फॉलो ना करने पर महिला को पछताने पर मजबूर जाता है।

एक मां को इन चीज़ों को लेकर कभी नहीं पछताना चाहिए -

1. सब कुछ न कर पाना

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जब एक औरत मां बन जाती है तो उससे हजारों उम्मीदें कर ली जाती हैं। उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह बच्चे, ऑफिस और घर को एक साथ संभाले। अपने पति और रिश्तेदारों की सेवा भी करे। और अगर इनमे से एक भी काम वह सही से नही कर पाती तो उसपर अच्छी मां ना होने का आरोप लगा दिया जाता है। 

इसमें महिलाएं खुद को दोष देने लगती हैं कि वह अच्छी मां नहीं है। लेकिन उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि मल्टी टास्किंग यह फैसला नहीं करती कि वह अच्छी मां है या नहीं। एक ही इंसान सब कुछ नहीं कर सकता।

2. आराम करना

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पूरे दिन बच्चे को संभाल कर और दूसरे काम करने के बाद थोड़ा आराम करना कोई गलत बात नहीं है। यह मां को खुश और स्वस्थ बनाता है। इसलिए उन्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि मैं आराम करके कोई गलत काम कर रही हैं। यह पूरी तरह से सही है।

3. मी-टाईम 

मां बनने के बाद एक महिला अपना सारा वक्त अपने बच्चे को समर्पित कर देती हैं। ऐसे में अपने लिए थोड़ा वक्त निकालना और अपने दोस्तों के साथ वक्त बिताना वह गलत समझती है। अपने लिए मी टाइम चाहने को वह सेलफिशनेस समझती है। लेकिन ऐसा नहीं है। मी टाइम स्पेंड करने में कुछ गलत नहीं है। यह हर व्यक्ति का हक़ है।

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4. बच्चों के सामने रोना

मां अपने बच्चों के सामने नहीं रोती ताकि बच्चों को उनकी भावनाओं का एहसास ना हो। उन्हें लगता है कि शायद बच्चे समझेंगे कि वह सिंपैथी के लिए ऐसा कर रही है। लेकिन यह बिल्कुल सही है। अपने बच्चों के सामने रोने में कोई गलत बात नहीं। इससे बच्चों को मां की भावनाओं का पता चलता है। और वे अपनी मां को ज्यादा करीब से जान पाते हैं।

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