आत्म और निर्भर, शब्द से मिलकर बना है आत्मनिर्भर। यह शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है। जिस में आत्म का अर्थ है स्वयं और निर्भर का अर्थ है दूसरों से करवाए जाने वाले काम या खुद से करने वाले काम।
आत्मनिर्भरता से तात्पर्य है अपने काम बिना किसी पर निर्भर हुए स्वयं अपनी इच्छा और पूरी आजादी से करना। भूतकाल में हुए स्टडीज और रिसर्च से पता चलता है कि आत्मनिर्भर व्यक्ति निर्भर व्यक्ति से अधिक प्रसन्न महसूस करते हैं और ऐसा इसलिए भी होता है कि जब हम अपनी ज़िंदगी के फैसले अपनी इच्छा के मुताबिक लेते है तो हम ज्यादा राहत और संतुष्ट महसूस करते हैं क्योंकि दुनिया निर्भरता पर आधारित है।
जो कुछ भी दुनिया में है वो सभी व्यक्ति या वस्तुएं किसी न किसी पर निर्भर हैं और दुनिया इसी निर्भरता के कारण ही व्यवस्थित रूप से संचालित हो रही है।
इस दुनिया में सभी एक दूसरे पर निर्भर हैं चाहे वो व्यक्ति हो, समाज हो, शहर हो, या राज्य हो और यही नहीं जानवर से लेकर महादीप तक सभी किसी न किसी पर निर्भर हैं और जब कोई भी व्यक्ति या वास्तु एक सीमा रेखा से आगे बढ़ कर किसी पर निर्भर हो जाता है तो उसे अपाहिज होने में अधिक समय नहीं लगता है इसलिए आत्मनिर्भर होना जीवन में अति आवश्यक है लेकिन आत्मनिर्भर होने के बाद कुछ बातें ऐसी भी हैं जो हमें कभी नहीं भूलनी चाहिए
आत्मनिर्भर होने के बाद न भूलने वाली निम्नलिखित बातें -
मन में ईर्ष्या का भाव पैदा होना
आत्मनिर्भर होना समाज में व्यक्ति को एक अलग पहचान और सम्मान तो दिलाता है लेकिन आत्मनिर्भरता का यह गुण कई बार व्यक्ति के मन में द्वेष एवं ईर्ष्या की भावना भी पैदा कर देता है और इसी द्वेष की भावना की वजह से व्यक्ति फिर अपने समक्ष हर किसी को छोटा और कमजोर समझता है। फिर ऐसे व्यक्ति हर इंसान को हीन भावना से ही देखते हैं।
अहंकार का जाना
आत्मनिर्भर होने से समाज में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है और इस बात में कोई दोराय भी नहीं हैं लेकिन अक्सर लोगों में आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ अहंकार के भाव का अंकुर पनपते हुए भी देखा गया है इसलिए यह भाव तब तक तो अच्छा है जब तक यह अहंकार की भावना दूसरों को हानि न पहुंचाए।
रिश्तों में मधुरता की कमी होना
आत्मनिर्भर होना किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व में तो चार चाँद लगा सकता है परन्तु जरूरत से अधिक आत्मनिर्भरता भी कई बार परिवार एवं मित्रों के बीच के मधुर संबंधों में कड़वाहट पैदा कर देता है।