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1. सेक्सुअलिटी के बारे में कम्प्रेहैन्सिव जानकारी
जब बच्चे प्यूबर्टी की उम्र को रीच करते हैं तो अपने सेक्सुअलिटी से जुड़े उनके मन में बहुत सारे ख़याल आने लगते हैं। ह्यूमन एनाटोमी के डिफरेंस को समझने के लिए वो बहुत क्यूरियस रहते हैं। लेकिन इस समय में उनको चुप करा दिया जाता है। उनको ये सिखाया जाता है की सब बारे में बात करना गलत है और इसलिए उन्हें ये सब नहीं बोलना चाहिए। इन सब के बारे में बात करने में लोगों की शर्म की लेवल इतनी हाई है की वो प्रीमैरिटल सेक्स को पाप समझते हैं।
2. लड़की की विर्जिनिटी पे उठाते हैं सवाल
यहाँ भी सोसाइटी अपने डबल स्टैण्डर्ड दिखाने से पीछे नहीं हटती है। लड़कों के प्रीमैरिटल रिलेशनशिप्स को सोसाइटी उस नज़र से नहीं देखती है जैसे की लड़कियों के। सोसाइटी की सोच के हिसाब से एक लड़की की ज़िन्दगी भर की इज़्ज़त उसकी विर्जिनिटी से जुड़ी हुई है। इसलिए अगर शादी से पहले ये विर्जिनिटी चली गयी तो उस लड़की से ज़्यादा बेशर्म कोई नहीं है।
3. प्रेगनेंसी का खतरा
चाहे हम साइंस में कितने भी एडवांस्ड क्यों ना हो जाए और कंट्रासेप्शन के कई नए तरीके डिस्कवर कर लें, सौ प्रतिशत सेफ कोई भी कंट्रासेप्शन नहीं होता है। इसलिए ये सोसाइटी इस बात से ही नर्वस हो जाती है की अगर कोई लड़की शादी से पहले ही प्रीमैरिटल सेक्स के वजह से माँ बन गयी तो फिर उसका और उसके बच्चे का क्या होगा। लड़के के बारे में कोई नहीं सोचता क्योंकि सोसाइटी की घटिया सोच के मुताबिक इन सब से लड़कों को कोई फर्क नहीं पड़ता है।
4. कास्ट सिस्टम में फसीं हुई है सोसाइटी
भारत में आज भी जहाँ शादी से पहले लड़के के स्किल्स से पहले उसके कास्ट को देखा जाता है, ये सोसाइटी इस बात को बर्दाश्त ही नहीं कर पाती है की कोई दो लोग अलग-अलग कास्ट या धर्म के होने के बावजूद सेक्स कर सकते हैं। सोसाइटी की ये सोच इतनी रूढ़िवादी है की इससे ज़्यादा शर्मनाक कुछ नहीं है। अगर इन सब से आगे नहीं निकल पाए तो हम एक सोसाइटी के हैसियत से फेल हो चुके हैं।