वोलंटरी चाइल्डलेस्नेस का अर्थ है अपनी इच्छा से बच्चे पैदा करने से दूर रहना। हम ये तो समझते हैं कि कई बार आदमी या औरत, या दोनों के इनफर्टिलिटी के कारण कपल अपना परिवार आगे नहीं बढ़ा पाते, मगर कभी कभी ऐसा भी होता है की कुछ लोग इक्षा से परिवार बढ़ाना नहीं चाहते। समाज में औरत को माँ के रूप में देखा जाने के कारण कई लोग इस कॉन्सेप्ट को समझ नहीं पाते।
औरत या कपल बच्चे क्यों नहीं चाहते?
लोगों के बच्चा न चाहने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि-
- वे करिअर सेंट्रिक हैं: कुछ लोग बाई डिफ़ॉल्ट करिअर सेंट्रिक होते हैं। वे अम्बिशयस होते हैं और जीवन में बहुत कुछ पाना चाहते हैं। ऐसे लोगो को लगता है की परिवार में बच्चा होने से उन्हें बच्चे की ज़रूरतों को पहले रखना होगा, सुर इससे उनके इच्छाए अधूरी रह सकती है।
- बुरा बचपन: जिन लोगों का बुरा बच्चपन बीतता है, उनमें से कुछ लोग सोचते हैं की वे अपने बच्चे को अलग तरह से पालन पोषण करेंगे, मगर कुछ के मन में इतना गहरा प्रभाव पडता है की वे बच्चों से ही दूर होना चाहते हैं।
- पहले बच्चे की मौत: कभी कभी गर्भवती औरत की मिस्काररिएज हो सकती है या बच्चे को कोई जानलेवा बीमारी हो सकती है जिसके कारण उसकी मृत्यु हो जाती है। ऐसे हादसों के बाद कई कपल इतना पीड़ित होते हैं की वे दोबारा बच्चे के लिए ट्राई करना ही छोड़ देते हैं। वे दोबारा वैसा दर्द सहने से डरते हैं।
- बच्चे पसंद नही: शायद यह लोगों को चौंका दे, मगर कई ऐसे लोग होते हैं जिन्हें बच्चे नहीं पसंद। इसका कोई कारण या एक्सप्लेनेशन नहीं है, केवल उनकी चॉइस है।
“तुम्हारा मन बदल जाएगा” यह सुनना इतना कॉमन क्यों है?
जब कोई बच्चे न चाहने की बात करता है, तो सबसे पहले लोग बोलते हैं की उसका मन बाद में बदल जाएगा। इसके कई कारण है, मगर सबसे ज़रूरी कारण है परम्परा या ट्रेडिशन। सालो साल यही होता आया है की लड़का और लड़की की शादी होती है और 1-2 साल में उनके बच्चे हो जाते हैं। यह होता है पर ऐसा होना ज़रूरी नहीं। परम्परा से ज़्यादा ज़रूरी अपनी ख़ुशी है। आखिर, अगर आप बच्चा न चाहे, तो क्या आप उससे प्यार कर पाएंगे?
लोगों के वोलंटरी चाइल्डलेस्नेस के खिलाफ होने का एक और वजह है औरत को माँ के रूप में देखना। माना जाता है की लड़की केयरिंग होती है, माँ जैसी होती है, आदि। बड़ी बहन को दूसरी माँ माना जाता है। कई घरों में तो छोटे बच्चियों को “माँ” बुलाया जाता है। हालांकि लोग ये प्यार से बुलाते हैं, मगर साइकोलॉजिकली, यह औरत की “माँ” वाले फंक्शन को इंटरनलआइस करने का काम करता है। इसका मतलब है की जब इंसान एक ही बात बार बार सुनता है वह सोचने लगता है की उसे वही बनना है, या वह उसी चीज़ को चाहता है। इससे ‘पावलोव इफ़ेक्ट’ के नाम से भी जाना जाता है।
इसलिए जब कहती है की उसे बच्चे नहीं चाहिए, लोगों को झटका लग जाता है।
हमें समझना चाहिए की इस युग में भी लोग हमारे इच्छा या परंपरा के मुताबिक काम नहीं करेंगे, और न ही उन्हें करना चाहिए। खासकर परिवार के मामले में। एक ऐसे इंसान जो बच्चा नहीं चाहता अगर ज़बरदस्ती से बच्चा ले भी ले, तो न वह खुश रहेगा और न उस नन्ही सी जान को खुश रख पायेगा।