Chhath Puja: छठ पूजा एक प्रमुख हिंदू त्योहार है, जिसे विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। यह पूजा सूर्य देवता और छठी माई को समर्पित होती है। इस पर्व का आयोजन कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की छठी तिथि को किया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से सूर्य की उपासना के साथ-साथ प्रकृति, जल और भूमि की पूजा का प्रतीक है।
छठ पूजा भारतीय संस्कृति महत्व
छठ पूजा का महत्व भारतीय संस्कृति में अत्यधिक है। यह पर्व खासकर महिलाओं द्वारा अपने परिवार के सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए मनाया जाता है। इस पूजा के दौरान श्रद्धालु सूर्य देवता से प्रार्थना करते हैं कि उनके परिवार पर कृपा बनी रहे। यह पर्व समाज में एकता और सहकारिता का भी प्रतीक है, क्योंकि इस दौरान लोग एक-दूसरे की मदद करते हैं और मिलकर पूजा का आयोजन करते हैं।
छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जिसमें श्रद्धालु स्वच्छता का विशेष ध्यान रखते हुए स्नान करते हैं और फिर विशेष भोजनों का सेवन करते हैं। इसके बाद दूसरे दिन कद्दू-भात का प्रसाद तैयार किया जाता है। तीसरे दिन, जिसे "गोधूलि वेला" कहा जाता है, श्रद्धालु सूर्य अस्त के समय संध्या अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस दिन भक्तों का ध्यान अपने परिवार के प्रति एक विशेष स्नेह का भाव भी होता है।
चौथे दिन, जिसे "उषा अर्घ्य" कहा जाता है, सूर्योदय के समय पुनः सूर्य देवता को अर्घ्य दिया जाता है। इस समय श्रद्धालु अपने इरादों में दृढ़ होते हैं और अपनी व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ करते हैं। इस पर्व के दौरान, भक्त विशेष रूप से शुद्धता और संयम का पालन करते हैं, जिसमें न केवल आहार में, बल्कि विचारों में भी पवित्रता का ध्यान रखा जाता है।
छठ पूजा का आयोजन विशेष रूप से जलाशयों, नदियों और तालाबों के किनारे किया जाता है। श्रद्धालु रंग-बिरंगे वस्त्र पहनकर जल में खड़े होकर सूर्य देवता को अर्घ्य देते हैं। इस दौरान लोक गीत गाना और समूह में मिलकर पूजा करना इस पर्व की खासियत है। ये गीत मुख्य रूप से छठ माता की महिमा और प्रकृति की आराधना से जुड़े होते हैं।
छठ पूजा के माध्यम से श्रद्धालु अपने पारिवारिक बंधनों को और मजबूत करते हैं। यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की जड़ों को दर्शाता है, जिसमें परिवार, समाज और प्रकृति के प्रति सम्मान और प्रेम का भाव होता है।
इस प्रकार, छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन के मूल्यों और संस्कृति का भी प्रतीक है। यह हमें सिखाती है कि हमें प्रकृति और इसके तत्वों का सम्मान करना चाहिए और अपने परिवार एवं समाज की भलाई के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए।