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इस साल के मिस इंडिया पेजेंट प्रतियोगियों की समानता से सोशल मीडिया हैरान है। इस साल क प्रतियोगिता के अंतिम चरण में पहुंचनेवाले प्रतिभागी की तस्वीर ट्विटर पर बार बार दिखाई दे रही है। और लोग पूछ रहे हैं, क्या ये महिलाएं क्लोन हैं? या ज्यूरी सदस्यों के पास दूरदर्शी दृष्टि है? एक समान त्वचा, एक ही जैसे बाल, और बड़ी कृत्रिम रूप से मुस्कुराने वाली 30 महिलाओं में से एक के चयन को सही कैसे कह सकते हैं? यहां तक कि उनके बालों की लंबाई भी समान है।
महत्वपूर्ण बातें
हालाकि पेजेंट प्रतियोगियों की शारीरिक रूप में समानता कोई नई बात नहीं है। अगर आप भी मेरी तरह नब्बे के दशक में शनिवार के रात को केबल टीवी में पेजेंट देखा करते थे तो ये बात आपके ध्यान से नहीं गया होगा कि पेजेंट प्रतियोगी एक ही सांचे में ढले लगते थे। यहां तक कि उनका चलना, बात करने का तरीका और महत्वपूर्ण आंकड़े भी साफ तौर पर एक जैसा है। तो क्या ये पेजेंट वाकई में उन भारतीय महिलाओं का चयन करते हैं जो भारत के असली सौंदर्य को दर्शा सके? बमुश्किल कभी!
तो पेजेंट में हमारा प्रतिनिधित्व कहां है? क्या सांवली और प्लस्साइज महिलाएं भारतीय नहीं हैं, क्या वो खूबसूरत नहीं हैं? क्या यह ब्यूटी पेजेंट हैं या किसी बॉलीवुड फिल्म का ऑडिशन? अगर हम पिछले कुछ पेजेंट विजेताओं को ध्यान से देखें तो ऐसा ही लगता है। सदियों से भारतीय महिलाएं इन घिसे पिटे सौन्दर्य मानकों के खिलाफ लड़ रही हैं।
ये सिर्फ मिस इंडिया की प्रतिभागी नहीं हैं, इनमें से एक प्रतिभागी विजेता होती है और इंडिया का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करती हैं। आखिर उनका रूप दुनिया को क्या बताएगा? यही की हम छोटी लंबाई वाली, मोटे शरीर वाली, घुंघराले बालों वाली, या सांवली महिलाओं को खूबसूरत नहीं समझते?
भारतीय महिलाएं खुद पर गर्व करती हैं। हम हर कर्व, हर कर्ल और हर पिंपल और स्ट्रेच मार्क को गर्व से लेकर चलते हैं। ब्यूटी पेजेंट्स हमें इसका उल्टा नही समझा सकती और इसलिए उन्हें अपने सौन्दर्य के मापदंडों को बदल लेना चाहिए।
महत्वपूर्ण बातें
- इस साल के सभी मिस इंडिया प्रतियोगी एक जैसे दिखे।
- उनके बालों की लंबाई , त्वचा रंग और मुस्कुराहट भी समान हैं।
- ये प्रतियोगी भारतीय महिलाओं के विविध सौंदर्य के साथ न्याय नहीं करते।
- वास्तव में सुंदरता की पुरानी धारणाओं को बनाए रखते हैं, जिससे हम सदियों से जूझ रहे हैं।
हालाकि पेजेंट प्रतियोगियों की शारीरिक रूप में समानता कोई नई बात नहीं है। अगर आप भी मेरी तरह नब्बे के दशक में शनिवार के रात को केबल टीवी में पेजेंट देखा करते थे तो ये बात आपके ध्यान से नहीं गया होगा कि पेजेंट प्रतियोगी एक ही सांचे में ढले लगते थे। यहां तक कि उनका चलना, बात करने का तरीका और महत्वपूर्ण आंकड़े भी साफ तौर पर एक जैसा है। तो क्या ये पेजेंट वाकई में उन भारतीय महिलाओं का चयन करते हैं जो भारत के असली सौंदर्य को दर्शा सके? बमुश्किल कभी!
बात ऐसी है कि मिस इंडिया जैसे पेजेंट भारतीय महिलाओं के सौन्दर्य को कायम नहीं रखते, बल्कि अभी भी उनकी सुंदरता को पुराने मानकों पर ही जज कर लेते हैं।ज्यादातर महिलाओं का रंग गोरा होता है। यहां तक कि अगर बालों की भी बात करें तो ऐसा नहीं है कि सभी महिलाओं के बाल सीधे और चमकदार होते हैं। कुछ महिलाओं के बाल घूंघराले भी हैं।
तो पेजेंट में हमारा प्रतिनिधित्व कहां है? क्या सांवली और प्लस्साइज महिलाएं भारतीय नहीं हैं, क्या वो खूबसूरत नहीं हैं? क्या यह ब्यूटी पेजेंट हैं या किसी बॉलीवुड फिल्म का ऑडिशन? अगर हम पिछले कुछ पेजेंट विजेताओं को ध्यान से देखें तो ऐसा ही लगता है। सदियों से भारतीय महिलाएं इन घिसे पिटे सौन्दर्य मानकों के खिलाफ लड़ रही हैं।
ये सिर्फ मिस इंडिया की प्रतिभागी नहीं हैं, इनमें से एक प्रतिभागी विजेता होती है और इंडिया का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करती हैं। आखिर उनका रूप दुनिया को क्या बताएगा? यही की हम छोटी लंबाई वाली, मोटे शरीर वाली, घुंघराले बालों वाली, या सांवली महिलाओं को खूबसूरत नहीं समझते?
भारतीय महिलाएं खुद पर गर्व करती हैं। हम हर कर्व, हर कर्ल और हर पिंपल और स्ट्रेच मार्क को गर्व से लेकर चलते हैं। ब्यूटी पेजेंट्स हमें इसका उल्टा नही समझा सकती और इसलिए उन्हें अपने सौन्दर्य के मापदंडों को बदल लेना चाहिए।