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क्यों सुषमा स्वराज का यूनियन कैबिनेट से जाना हमें बुरा लग रहा है?

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Swati Bundela
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ यूनियन कैबिनेट जब शपथ ले रहा था, तब सुषमा स्वराज की अनुपस्थिति स्पष्ट नजर आ रही थी। ये बात मीडिया के ध्यान से हट नहीं रही कि सुषमा स्वराज दूसरी बार अपना पद ग्रहण नहीं करेंगी। पर क्योंकि बहुत दिनों से स्वराज की स्वास्थ्य समस्या की खबरें चल रही हैं और यह तथ्य की इस बार के लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाग नहीं लिया, ऐसा होना लाज़मी था। चौंकाने से ज्यादा उनका इस बार कैबिनेट में ना होना उदास करता है क्यूंकि स्वराज पिछले पांच सालों में सबसे चहेती मंत्रियों में से एक के रूप में उभरी थी। पर ऐसा क्या था जिसने उनके कार्यकाल को इतना यादगार बना दिया?

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महत्वपूर्ण बातें

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  • सुषमा स्वराज इस बार कैबिनेट मंत्री के तौर पर वापिस नहीं लौटी हैं।






  • ऐसा आखिरी बार कब था जब किसी मंत्री के कैबिनेट से जाने पर हमें इतना दुख हुआ था?


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  • स्वराज ने बहुत सारी ज़िंदगियों पर अपने काम से असर किया और हमने उनके मुस्तैदी और संवेदना को सोशल मीडिया पर कई दफा देखा।


  • उन्होंने यह दिखा दिया कि एक्सटर्नल अफेयर्स मिनिस्ट्री का काम सिर्फ विदेश के साथ संबंध बनाए रखना नहीं बल्कि उससे कहीं अधिक होता है।




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पांच वर्ष पहले जा सुषमा स्वराज ने जब एक्सटर्नल अफेयर्स मिनिस्ट्री का कार्यभार संभाला तब ज्यादातर लोगों ने इसके बारे में अधिक सोचा नहीं। ऐसा लग रहा था जैसे बस एक कैबिनेट मंत्री एक विभाग छोड़कर दूसरे विभाग का कार्यभार संभालने जा रहा है। परन्तु एक्सटर्नल अफेयर्स मिनिस्ट्री का काम सिर्फ विदेशी सम्बन्धों को संभालना और बातचीत कर पड़ोसी देशों के साथ तनावों को सुलझाना ही नहीं होता बल्कि उससे अधिक होता है। पहली बार हमने ई.ए.एम. की बड़ी भूमिका को महसूस किया जो वह देश के नागरिकों, वो भी जो देश के अंदर रहते हैं और वो भी जो बाहर, के कल्याण में निभाता है।

क्या हमें कभी भी किसी भी मंत्री का कैबिनेट से बाहर जाना जो डिफेंस, फाइनेंस, या एक्सटर्नल अफेयर्स विभाग से हों, इतना खला है?

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यही है जो स्वराज के कार्यकाल को प्रसिद्ध बनाता है, उन्होंने यह साबित कर दिया कि वो लोगों की मंत्री हैं उन्होंने अपने पोर्टफोलियो में सोशल मीडिया पर लोगों से खुद बात करके एक व्यक्तिगत स्पर्श दिया। लेकिन सिर्फ यही नहीं था, वो अपने जवाबों में मुस्तैदी और संवेदनशीलता भी दिखाई। सिर्फ उन्होंने सवालों को सुना ही नहीं बल्कि उन्हें सुलझाने की कोशिश भी की। उदाहरण के तौर पर 2016 में स्वराज ने एक पाकिस्तानी प्रवासी को भारतीय विद्यालय में दाखिला लेने में मदद की, जब उसने उनसे मदद मांगी, क्यूंकि उसके पास पाकिस्तान से स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट या बर्थ सर्टिफिकेट नहीं था। अगले साल उन्होंने एक मां की मदद की जो अपने दिव्यांग बेटियों के लिए वीजा चाहती थी। इस तरह की असंख्य कहानियां हैं जो स्वराज की निष्ठा और करुणा कोदर्षती हैं, जो हमने पिछले 5 सालों में देखा।

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पासपोर्ट सेवाओं में सुधार लाना, जरूरतमंदों को वीजा देना और बाहर देशों में रह रहे भारतीय नागरिकों की मदद करना भी उनका काम था और उन्होंने उसे बखूबी किया भी। शायद इसलिए ही उन्हें विरोधी दलों के नेताओं से भी सम्मान मिला। कलाकारों से लेकर प्रसिद्ध हस्तियों, जो पार्टी के विचारधारा से सहमत नहीं थे, ने भी उनकी सराहना की। ऐसा आखिरी बार कब था जब किसी मंत्री के कैबिनेट से जाने पर हमें इतना दुख हुआ था? क्या हमें कभी भी किसी भी मंत्री का कैबिनेट से बाहर जाना जो डिफेंस, फाइनेंस, या एक्सटर्नल अफेयर्स विभाग से हों, इतना खला है?



स्वराज का एक राजनैतिक नेता के तौर पर अपने देश की सेवा करने के लिए लौटना या ना लौटना अनपर निर्भर करता है।  हमें उनका धन्यवाद करना चाहिए और उन्हें शुभकामनाएं देनी चाहिए। भारत जैसे बड़े देश में लोगों और राजनीतिज्ञों के बीच जो रिश्ता है, वो देखते हुए यह अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। 
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