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आज भी, महिलाओं की ज़िंदगी में मेनोपॉज़ एक ऐसा समय है जिसके बारे में खुलकर बहुत कम बात होती है। हालांकि इसे अक्सर उम्र बढ़ने से, शर्म या कमज़ोरी से जोड़ा जाता है, लेकिन यह एक नॉर्मल बदलाव है जो सभी महिलाओं के साथ होता है। मेनोपॉज़ पीरियड्स बंद होने तक सीमित नहीं होता, बल्कि इसका असर शरीर, मन और भावनाओं तीनों पर पड़ता है। इसलिए, इस विषय पर खुलकर बात करना ज़रूरी है।
मेनोपॉज़ को लेकर खुलकर बातचीत करना क्यों ज़रूरी है?
1. सही जानकारी की कमी
मेनोपॉज़ को लेकर सबसे बड़ी समस्या है जानकारी की कमी। बहुत-सी महिलाएं इसके लक्षणों को आम थकान, तनाव या उम्र बढ़ने का लक्षण मान लेती हैं। मेनोपॉज़ के लक्षणों में मूड में बदलाव, कमज़ोरी, वज़न बढ़ना, नींद न आना और हॉट फ्लैशेस शामिल हो सकते हैं। जब इस बारे में खुलकर बात नहीं की जाती है, तो महिलाएँ सही समय पर मदद नहीं ले पातीं।
2. अकेलेपन की भावना
जब महिलाएं मेनोपॉज़ के बारे में बात नहीं करतीं, तो उन्हें लगता है कि सिर्फ़ वही मेनोपॉज़ से गुज़र रही हैं। इस वजह से डर और अकेलापन बढ़ता है। जब महिलाएं एक-दूसरे के साथ अपने अनुभव शेयर करती हैं, तो उन्हें समझ आता है कि यह एक आम प्रक्रिया है। बातचीत से आत्मविश्वास बढ़ाया जा सकता है और मन के बोझ को कम किया जा सकता है।
3. मानसिक सेहत पर असर
मेनोपॉज़ के दौरान होने वाले हार्मोनल बदलावों का सीधा असर दिमाग पर पड़ता है। इसके वजह से स्ट्रेस, एंग्जायटी, डिप्रेशन और चिड़चिड़ापन बढ़ सकता है। अगर इन भावनाओं को दबाया जाए और खुलकर न बताया जाए तो मेंटल हेल्थ खराब हो सकती है। जो महिलाएं खुलकर बात करती हैं, वे अपनी भावनाओं को बेहतर ढंग से समझ पाती हैं और कंट्रोल कर पाती हैं।
4. परिवार और समाज की समझ
मेनोपॉज़ के बारे में खुलकर बात करने से परिवार के सदस्यों और दूसरों को इस बदलाव को बेहतर तरीके से समझाया जा सकता है। इससे महिलाओं को सहयोग मिलता है और उन्हें ये महसूस नहीं होता की उनकी परेशानियों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है इससे उन्हें सपोर्ट मिलता है। सपोर्ट और समझ से इस दौर को आसान बनाया जा सकता है।
5. बेहतर सेहत और आत्मविश्वास
मेनोपॉज़ के बारे में बात करने से महिलाओं को अपनी हेल्थ को सबसे पहले रखने की हिम्मत मिलती है। महिलाएं अपना ख्याल रखती हैं, अपनी लाइफस्टाइल को एडजस्ट करती हैं, और तुरंत अपने डॉक्टरों से सलाह लेती हैं। अपनी फिजिकल हेल्थ को बेहतर बनाने के अलावा, इससे महिलाओं को अपनी ज़िंदगी के इस नए पड़ाव को स्वीकार करने का कॉन्फिडेंस मिलता है।
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