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बड़ों की बातों को नजरअंदाज करना क्यों जरूरी है ?

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Swati Bundela
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बड़ों की बातों को नजरअंदाज - समाज में लड़कीयां जो भी काम करें, जो उनके प्रथा के विरुद्ध है, उसे समाज गलत ठहराता है। यह टोकने का काम सिर्फ हमारा समाज नहीं करता बल्कि ऐसी सोच हमारे घर में भी है, जो कि इस जनरेशन के ढंग या सोच को अपनाना गलत मानती है। वह फिर छोटे कपड़े पहनने पर हो या लड़कियों की आगे बढ़ने की बात पर हो।

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हालांकि बड़ों की गलती नहीं होती क्योंकि वह खुद प्रथा और पुरानी सोच के साथ उन्हें बांधकर रखा गया था। लेकिन अब की सोच, अब का जमाना अलग है। खुलकर जिंदगी जीना या अपने मन का काम करना गलत नहीं है। इसीलिए उनकी बातें ना सुने, ऐसा करने से आप उनका निरादर नहीं करेंगी बल्कि अपने लिए खड़ी होंगी।

मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है

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अक्सर ऐसा देखा गया है कि कई लड़कियां टॉक्सिक मैरिज से बाहर नहीं आ पाती या अपने सपने पूरे नहीं कर पाती। दरअसल हमेशा लड़कियों को यही सिखाया जाता है कि पति उनका भगवान है, उनसे डिवोर्स लेना गलत है। यहां तक कि सपने पूरे करने के लिए भी रोका जाता है क्योंकि पुरानी सोच के हिसाब से लड़कियों शादी कर घर में खाना बनाने के लिए बनी है।

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परिवार या घर के बड़े लड़कियों को गलत कहकर रोक तो देते हैं। लेकिन इसका सीधा असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। अपने पति को या परिवार को संभालने के लिए भी खुद खुश रहना जरूरी है। इसलिए इसमें कोई गलती नहीं है कि आप अपने बड़ों के विरुद्ध जाकर अपनी जिंदगी जीना चाहती हैं।

सपने पूरी करना और जिंदगी खुद की शर्तों पर जीना गलत नहीं है



बड़ों की बात सुनना गलत नहीं है, क्योंकि उन्हें हमसे ज्यादा हर चीज का अनुभव है। लेकिन उन्हें गलत सही का अनुभव नहीं है। उन्हें सिर्फ यही बताया गया है कि लड़कियों के पंख नहीं होते हैं। वह सिर्फ रसोईघर या बच्चों को संभालने के लिए बनी है। हालांकि सोच गलत है, खुद की शर्तों पर जिंदगी जीना गलत नहीं है। खुद को खुश रखना गलत नहीं है, इसीलिए बड़ों के खिलाफ जाकर अपने लिए कुछ सोचना उनका निरादर नहीं है।
फेमिनिज्म
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