जिसके आधार पर सभी की देखभाल करने की जिम्मेदारी महिलाओं और आर्थिक जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी पुरूषों को निभानी होती है। लिंग के आधार पर विभाजित ये जिम्मेदारियां समाज में मनुष्य के पूर्ण विकास को प्रभावित करती हैं।
पितृसत्तात्मक समाज
हमारे पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की कमाई को त्वज्जो नहीं दी जाती है। उनके बाहर काम करने को भी कभी बढ़ावा नही दिया जाता है। उनसे उम्मीद रखी जाती है कि वे घर पर रहकर बड़े और बच्चों की देखभाल करें और जौ पैसे उनके पति कमा रहे हैं उन्हीं में वे घर चलाए व सबकी और अपनी जरूरतों को पूरा करें। वही दूसरी ओर पुरुषों पर घर की पूरी आर्थिक स्थिति का भार होता है।
उन्हें सबके खाने, पहनने, पढ़ाई व अन्य जरूरतों के लिए पर्याप्त कमाना पड़ता है। बड़े परिवारों में ये जिम्मेदारी 1 से 2 पुरूषों की बीच बट जाती है लेकिन छोटे परिवारों में जहां पर माता-पिता और बच्चे होते हैं वहाँ पूरी आर्थिक जिम्मेदारी केवल एक पुरुष पर ही आ जाती है।
यह भार इतना अधिक होता है कि इसके कारण तनाव और डिप्रेशन जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। पुरुषों को ना चाहते हुए भी ये भार उठाना पड़ता है। क्योंकि समाज उनको तभी स्वीकारता है जब वह अपने घर के आर्थिक कर्ता-धर्ता हो। आर्थिक स्थिति को बैलेंस रखने का तनाव उनके लिए और भी शारीरिक समस्याओं का कारण बनता हैं।
वहीं अगर हम इन लिंग आधारित रोल्स को तोड़कर महिलाओं को भी घर की आर्थिक स्थिति में योगदान देने के लिए प्रेरित करें तो यह तस्वीर बदल सकती है। यह सिर्फ पुरुषों के लिए नही बल्कि महिलाओं के लिए भी बेहतर साबित होगा। पुरुषों पर से यह भार कम होगा और उनका तनाव भी कम होगा। वहीं महिलाएं जब कमाई करेंगी और परिवार की आर्थिक स्थिति में योगदान करेंगी तो उन्हें घर में अधिक महत्व दिया जाएगा। इससे महिलाओं की प्रतिभा को एक पहचान मिलेगी और परिवार में उनकी राय को भी अधिक महत्त्व दिया जाएगा।
घर-परिवार स्त्री और पुरुष दोनों से मिलकर बनता है। इसलिए घर की हर जिम्मेदारी में स्त्री व पुरूष दोनों का बराबर हिस्सा होना चाहिए। पुरुषों को घर के काम में भी योगदान देना चाहिए। वहीं महिलाओं को घर की आर्थिक जरूरतों में योगदान करने को बढ़ावा देना चाहिए।