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Children Complete Women? नहीं, बिना बच्चे के भी महिला संपूर्ण होती है

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भारतीय समाज में शुरू से ही महिलाओं की स्थिति बेहद बेकार रही है। उन्हें केवल अपनी शारीरिक जरूरतें पूरी करने वाली और बच्चा पैदा करने वाली मशीन समझा जाता है। जैसे-जैसे महिलाओं ने हर क्षेत्र में पुरुषों से कदम मिलाना शुरू कर दिया और सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक समानता को कम कर दिया वैसे वैसे महिलाओं को पुरुषों से अलग बनाने वाली उनकी रिप्रोडक्टिव क्वालिटी ही रह गई।

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बच्चा नहीं है ज़रूरी

पुराने समय में महिलाओं को केवल एक वस्तु की तरह ट्रीट किया जाता था जो घर में सारा काम करती हो और बच्चों को जन्म देती है। महिलाओं के पास बच्चादानी होती है जो पुरुषों के पास नहीं होती है। उनकी इस क्वालिटी को लोगों ने उनके साथ भेदभाव करने और उन्हे कम समझने का एक कारण बना दिया।

भारतीय समाज समझता है कि अगर एक महिला बच्चे पैदा नहीं कर सकती है या नहीं करना चाहती है तो यह शर्म दायक है। वह मानते हैं कि एक बच्चा या खासतौर पर एक लड़का ही एक महिला को पूरा करता है। एक महिला के जीवन का उद्देश्य शादी करके बच्चे पैदा करना और जिंदगी भर उनकी सेवा करना होना चाहिए। जब तक वह बच्चे नहीं कर लेती है तब तक वह अधूरी है और उनके जीवन का उद्देश्य पूर्ण नहीं है।

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बच्चे न करना चॉइस महिला की चॉइस है

आपको समझना होगा की बच्चे करना या न करना एक महिला की चॉइस होती है । एक बच्चा ही सभी महिलाओं के लिए सब कुछ नहीं होता है। रूढ़िवादी सोच रखने वाले लोग और नारीवाद की विरोध को द्वारा महिलाओं को बच्चा न करने पर उन्हें dysfunctional बुलाया जाता है। लेकिन बच्चा करना या ना करना एक महिला की अपनी पर्सनल चॉइस होती है। उसकी चॉइस के आधार पर उसे शारीरिक तौर पर dysfunctional बुलाना या जज करना पूर्ण रूप से गलत है।

मां बनने का अनुभव बेहद अलग और खुशी से भरपूर होता है। लेकिन एक बच्चे की जिंदगी में आने से महिला के शरीर और उसके करियर में अनेक बदलाव आते हैं। 1 बच्चे के पैदा होने का प्रभाव सबसे ज्यादा महिला पर ही होता है। इसलिए यह महिला की चॉइस है कि क्या वह इतनी बड़ी जिम्मेदारी लेना चाहती है या नहीं।

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दूसरी सभी चीजों की तरह बच्चा भी एक महिला की जिंदगी का एक हिस्सा ही होता है, उसकी जिंदगी नहीं। महिला की जिंदगी बच्चे का निर्भर नहीं है और उसके बिना वह अधूरी नहीं होती है। हर महिला खुद में संपूर्ण होती है इसलिए कोई नहीं दूसरा व्यक्ति या बच्चा उसे संपूर्ण नहीं बना सकता है।

टीवी जगत को बदलाव की जरूरत

अगर आप भारतीय धारावाहिकों को देखते हैं तो आप इस बात से परिचित होंगे कि किस तरह एक महिला का अस्तित्व उसके मां बनने और बच्चे के होने से दिखाया जाता है। टीवी सीरियल में महिलाओं को बच्चे ना करने या ना होने पर बांझ भुला दिया जाता है। वे महिलाओं का चित्रण एक ऐसी इंसान के रूप में करते हैं जिसकी जिंदगी का मकसद केवल उसके पति और बच्चे ही हैं।

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बच्चे के बिना वह अधूरी है। लेकिन ऐसा नहीं है। टीवी जगत लोगों की सोच और उनके विचारों को बहुत प्रभावित करता है। इसलिए उसे इस तरह की सामाजिक चीजें बहुत सोच समझकर दिखानी चाहिए।

ओपिनियन
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