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यह कहा जा सकता है कि जो व्यवहार एक लिंग के लिये अच्छा हो सकता है वही दूसरे के लिए नैतिकता का मुद्दा बन जाता है. उन्हें यह कौन बतायेंगा कि यह ऐसी धारणा है जो आजकल कई समस्याओं की जड़ है जिसे हम समाज के रूप में सामना कर रहे हैं. क्या लोग करियर या उच्च शिक्षा के लिए लड़कियों को शर्मिंदा करें ? अपनी जीवनशैली, फिटनेस और भविष्य की देखभाल करने के लिए? लड़कियों को उस बात के लिये शर्मिंदा करना बंद करे जो उनके लिये सही है.
हमारे समाज में असमानता और पूर्वाग्रह के अंत के लिए प्रयास करना हर लड़की का अधिकार है.
वह सही है अगर वह उच्च शिक्षा के बारे में सोचती है और उपयुक्त नौकरी पाने के लिए चाहती है. यह किसी भी लड़के का पीछा करने से बेहतर है और बाद में यह सोचना कि मेरा जीवन ऐसा हो सकता था अगर मैंने अपने सपनों का पीछा किया होता. यह सही नहीं है कि समानता की उसकी खोज को ग़लत मानना और उसके उदार दृष्टिकोण को शर्मनाक और सांस्कृतिक रूप से अमानवीय बताना.
कुछ बातें-
• कई लोग आधुनिक लड़कियों को सिर्फ इसलिये शर्मिंदा करते है कि वह सदियों पुरानी सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखने से इनकार करती हैं जो उन्हें विरासत में मिला है.
• क्या ऐसी लड़की अनैतिक या बोल्ड है, सिर्फ इसलिए कि वह अपनी शिक्षा, करियर और व्यक्तिगत भविष्य की परवाह करती है?
• क्या लड़कियों को समानता और मुक्ति के लिए त्याग करना चाहिए क्योंकि यह गरीब पुरुषों को असहाय और बेकार छोड़ देती है?
• अगर लोग इस दिन और उम्र में लड़कियों को अधीनस्थ होने की उम्मीद करते हैं, तो वे गलत हैं.
"द मॉडर्न गर्ल" नामक एक निबंध हमारी पिछड़ी मानसिकता को दर्शाता है जिससे भारतीय लड़कियों को हर रोज जूझना पड़ता है. इस साहित्य को सीबीएसई की निबंध पुस्तिका में स्थान मिला है. लोग इसे सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं, न केवल आधुनिक लड़की के अपने प्रतिकूल चित्रण पर, बल्कि हम सभी जानते हैं कि हमारी आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस बात से सहमत होगा. यह निबंध मूल रूप से लड़कों की तरह जीवन का आनंद लेने के उद्देश्य से लड़कियों की आलोचना करता है. इसके अनुसार, एक आधुनिक लड़की होने की परिभाषा व्यर्थ और आत्म केंद्रित है. इसमें कहा गया है कि कैसे फिट और सुंदर रहने की चाह में एक आधुनिक लड़की के पास अपने परिवार के अन्य सदस्यों की जरूरतों को पूरा करने के लिये कोई समय नहीं है.
जो लोग आधुनिक दुनिया के बदलते तरीकों को मानने से इंकार करते है उनके लिये संभावनाएं बहुत अधिक अच्छी नही दिखती है. क्योंकि जो लोग बदलाव को स्वीकार नही करते है वह विलुप्त हो जाते हैं.
लेकिन यह निबंध सिर्फ इस बात पर ही नही रुकता है कि लड़किया, लड़कों के खेल खेल रही है. या लड़कों के लिए बनी नौकरियां ले रही है. यह उनके माता-पिता को उनकी बोल्ड और आत्म केंद्रित प्रवृत्ति के लिए भी जिम्मेदार बताता है. "एक लड़की को बताया जाना चाहिए कि वह घर पर, स्कूल में और बचपन से दूसरों के साथ किस तरह का व्यवहार करें." मूल रूप से इसका मतलब है कि लड़कियों को बहुत अधिक स्वतंत्रता देना उन्हें अनुपयुक्त बनाता है.
एक आदर्श बालिका को अपने भाई या पति की सेवा करने में अपना समय बिताना चाहिए ... उनके गंदे कपड़े फर्श से उठाना, उन्हें पानी का गिलास देना और अपनी इच्छा से पहले पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों को महत्व देना चाहिये.
अगर लोग इस दिन और उम्र में लड़कियों को समर्पित होने की उम्मीद करते हैं, तो वे गलत हैं. इस तरह की सोच ने हमारे समाज में महिलाओं को उप-मानव स्तर तक ला कर खड़ा कर दिया है. इस वजह से लड़कों में हक़दारी की भावना आती है. इसने उनके बीच आक्रामकता और लापरवाही की प्रवृत्ति भी पैदा की है. लड़कियों से एडज़स्ट करने और हर आदेश का पालन करने की अपेक्षा करने के बजाय यह वह समय है जब लड़कों से यह सब कराया जायें.
क्योंकि आधुनिक भारतीय लड़कियां स्वतंत्रता और बेहतर जीवन की आकांक्षाओं को नहीं छोड़ेंगी. वे सभी को खुश रखने के लिए सदियों से एडज़स्टमेंट कर रही है और संयम बरत रही है. वे अब वो करेंगी जो उनके लिये बेहतर है, बाकी के लोगों के लिये जो आधुनिक दुनिया के बदलते तरीकों को मानने से इंकार करते है उनके लिये संभावनाएं बहुत अधिक अच्छी नही दिखती है. क्योंकि जो लोग बदलाव को स्वीकार नही करते है वह विलुप्त हो जाते हैं.