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SheThePeople.TV के साथ एक वार्तालाप में, उन्होंने बताया कि वह हमेशा अपने ख़ुद का कुछ करना चाहती थी, विशेष रूप से एक रेस्तरां शुरू करना चाहती थी क्योंकि वह खुद एक बड़ी फूडी है. "कानून में स्नातक स्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद, मैंने इस पर काम करने का फैसला किया. लेकिन जब मैंने विश्वविद्यालय जाना शुरु किया, तब भी मैंने बहुत सारे कैफे और रेस्तरां में जाना जारी रखा और यह मेरे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गये."
मेहविश का बचपन
श्रीनगर के लाल बाजार इलाके में पली बढ़ी, 25 वर्षीय ज़र्गर का बचपन आसान नही था. वह केवल छह साल की थी जब उनके पिता की मौत कैंसर से हो गई. "उन दिनों में मैं स्थानीय स्कूल में पढ़ती थी, लेकिन मेरे पिता की मौत के बाद, मेरे परिवार की वित्तीय स्थिति बिगड़ गई. इसकी वजह से मुझे अपनी मां के चचेरे भाई के स्वामित्व वाले दूसरे स्कूल में स्थानांतरित करना पड़ा. मैंने छठवीं कक्षा तक वहां अध्ययन किया और उसके बाद, मुझे गंदरबल में एक सरकारी बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया गया."
अपने स्कूल को पूरा करने के बाद, वह कानून का अध्ययन करने के लिए कश्मीर के केंद्रीय विश्वविद्यालय में चली गई. 2017 में, उन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद जिला अदालत में कुछ महीनों तक काम किया उसके बाद इस काम में उतरी.
कानून पढ़ना
उन्होंने कानून की पढ़ाई क्यों शुरु कि, इस बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि वह कभी भी वकील बनना नहीं चाहती थी. वह कहती है,
"कानून पढ़ना मेरा जुनून रहा है, लेकिन वकील बनने की मेरी कोई योजना नहीं थी. मैं कानून में उच्च अध्ययन के लिए भी जाना चाहती हूं, लेकिन इसे पेशे के तौर पर नही अपनाना चाहती हूं. "
'एन' यू कैफे शुरू करने का फैसला
कोई सोच सकता है कि कश्मीर में मुस्लिम परिवार रूढ़िवादी होते हैं, लेकिन ज़र्गर को अपने परिवार के भीतर ऐसा अनुभव नहीं हुआ. उनके परिवार ने उन्हें कैफे शुरु करने के फैसले पर साथ दिया. हालांकि उनकी मां को शुरुआत में थोड़ी दिक्क़त थी. ज़र्गर ने कहा,"मेरी मां चाहती थी कि मैं डॉक्टर बनूं, लेकिन मैंने कानून चुना तो वह चाहती थी कि मैं कानून में करियर बनाउं लेकिन फिर मैं अपना खुद का कैफे शुरू करना चाहती थी. मुझे उन्हें समझाना पड़ा कि जब मैं कानून का और अध्ययन करना चाहती हूं, लेकिन मैं इसे व्यवसाय के प्रबंधन के साथ कर सकती हूं. "
इस कैफे को शुरु करने का विचार पिछले साल अक्टूबर में उनके दिमाग़ में आया. उन्होंने फरवरी में अपने भाई के दोस्त, यासर अल्ताफ के साथ साझेदारी में 'एन' यू कैफे शुरू किया.
चुनौतियां
अपने स्वयं के कैफे को शुरू करने का निर्णय लेने के बाद, जिसे कभी किसी भी कश्मीरी महिला ने नही सोचा था, उनकी सबसे बड़ी चुनौती थी कि वह ख़ुद को इसके लिये तैयार करें. "जिस समाज से हम आते हैं वह हमारे बारे में वह पर जेंडर की वजह से बहुत सी रुढ़िवादी चीजें आ जाती है. हमारे समाज के मुताबिक लड़कियां व्यवसाय नहीं चला सकती हैं और इसलिए हम भी उसी तरह सोचने लगते हैं. पहली लड़ाई आपकी आपने साथ होती है, क्या मैं इस भूमिका के लिए फिट हूं, जाहिर है, लड़कियां कैफे नहीं चलाती हैं? लेकिन एक बार जब आप स्वयं को आत्मविश्वास देते हैं, तो लोगों की बात ज्यादा महत्वपूर्ण नही रह जाती है."
उन्होंने कहा, "ऐसे लोग थे जो शुरुआत में मेरी आलोचना करते थे कि आप एक लड़की हैं और आप इसे करने में सक्षम नहीं होंगी, लेकिन यदि आप अपने ऊर्जा को अपने लक्ष्य की ओर केंद्रित करते हैं, तो इन चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ता."
हालांकि, इन बातों ने ज़र्गर को प्रभावित किया लेकिन दृढ़ संकल्प अगर आप ने कर लिया है तो वह आपके साथ हमेशा रहता है.
उनकी प्रेरणा ज़र्गर अन्य महिलाओं से प्रेरणा लेती है जो अपने क्षेत्र में अग्रणी रही हैं. "इसके अलावा, मेरी प्रेरणा मेरी मां से आती है और यह महसूस करती हूं कि मुझे उन्हें गर्व महसूस कराना है."
मीडिया ने उनके कैफे को हाइलाइट कराने और कुछ चुनौतियों पर काबू पाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. वह कहती है,
"चूंकि क्षेत्रीय मीडिया ने मेरे कैफे को कवर किया है, इसलिए मुझे लगता कि अधिक से अधिक लोग मुझे और मेरे काम की सराहना कर रहे हैं. शायद यही वजह है कि जो मुझे मेहनत करने के लिये प्रेरणा दे रहा है. "
“"जिस समाज से हम आते हैं वह हमारे बारे में वह पर जेंडर की वजह से बहुत सी रुढ़िवादी चीजें आ जाती है. हमारे समाज के मुताबिक लड़कियां व्यवसाय नहीं चला सकती हैं और इसलिए हम भी उसी तरह सोचने लगते हैं. पहली लड़ाई आपकी आपने साथ होती है, क्या मैं इस भूमिका के लिए फिट हूं, जाहिर है, लड़कियां कैफे नहीं चलाती हैं? लेकिन एक बार जब आप स्वयं को आत्मविश्वास देते हैं, तो लोगों की बात ज्यादा महत्वपूर्ण नही रह जाती है."- मेहविश ज़रर्गर
कश्मीर में महिला सशक्तिकरण
कश्मीर में महिलाओं के सशक्तिकरण के बारे में बात करते हुये उन्होंने कहा, "कई महिलाएं हैं जो कश्मीर में बहुत अच्छा काम कर रही हैं. मैं जम्मू-कश्मीर की पहली महिला उद्यमी नहीं हूं. ऐसी कई हैं जिन्होंने बहुत कठिन परिश्रम किया है और कई चुनौतियों का सामना किया है, इसलिए यह अच्छा लगता है जब हमारे समाज की महिलाएं आगे बढ़ती हैं. मैंने इस विचार को कभी नहीं माना कि पुरुषों और महिलाओं की अलग अलग भूमिका लिंग के हिसाब से है."
ज़र्गर केवल अपने कैफे के भविष्य को देखती है. वह अपनी गुणवत्ता बनाए रखने के साथ ही एक प्रसिद्ध ब्रांड बनाना चाहती है. कैफे खोलने के सिर्फ छह महीने के अंदर उन्होंने जुलाई में मुनावाराबाद में दूसरे आउटलेट का उद्घाटन किया.
कश्मीर में एक कैफे की पहली महिला संस्थापक बनने के बारे में पूछने पर, वह यह कहकर जवाब देती है कि वह उत्साहित महसूस करती है.
"यहां इतनी सारी लड़कियां हैं जिनके पास ऐसे बड़े सपने हैं और उनके पास उन्हें पूरा करने की क्षमता है. इसलिए, यदि मैं अपना सपना पूरा करती हूं और उन्हें दिखाती हूं कि यह एक संभावना है, तो यह उनके सपनों की ओर एक कदम आगे बढ़ने के लिए एक विश्वास स्थापित करेंगा"- ज़र्गर
ज़रर्गर का समर्पण, उनके परिवार का सहयोग और आत्मविश्वास ने उन्हें कश्मीर में पहले कैफे संस्थापक बनने में मदद की. हम आशा कर सकते है कि ऐसी बातों को सुनने के बाद ऐसी और महिलायें अपने सपनों की पूरा करने के लिये आगे आयेंगी.