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कमला बेन की कहानी
गुजरात से आई कमला बेन को खेती बाड़ी के बारे में बचपन में ही सीखा दिया गया था। उनके माता एवं पिता उन्हें खेतो में लेजा खेती के बारे में बताते थे। जब शादी हुई तो कमला बेन ने ससुराल वालों के खेतों में काम किया । उनके दो बच्चे है और इसी खेती के दौरान कमला बेन एच डी आर सी के संपर्क में आई। उन्हें पता चला कि महिलाएं ही महिलाओं हाथ बटाती है।
शहरी महिलाओं से संपर्क
कस्तूरी नामक संस्था से जुड़ने के बाद, एच डी आर सी ने शहर की महिलाओं की सहायता से उन्हें अपने ऑर्गेनिक खेती का प्रदर्शन करने का मौका मिला। ओर्गानिक दवाइयों को बनाने से लेके सूखे बीज़ संभाल के रखना, ये सब उन्हें बताया गया। उन्हें अब बाज़ार में जाके बीज़ खरीदना नही पड़ता। कमला बेन के अनुसार “ये मेरा सपना था कि कस्तूरी से जुड़ी महिलाये सब एक साथ आये और एक बैठक हो”
सरकार की योजनाएं
सरकार ने जितनी भी योजनाएं निकली,उन सबका लाभ इन्हें मिला, सेल्फ हेल्प ग्रुप की सहायता से इन्हें ये सब प्राप्त हुआ। “इस से हमारा सरकार के साथ चाहे वो अधिकारी हो या खेतीबाड़ी के अधिकारियों से हमारा रिश्ता जुड़ गया है”। जब भी कोई नई योजना निकलती है तो पूरे गाँव में ऐलान करदिया जाता है कि कब, कहाँ और कैसे इसका फायदा उठाया जाए।
मुश्किलें
कमला बेन के अनुसार, “जब भी मैं बाहर निकलती हु तो घर वाले और पड़ोसी कहते हैं कि तुम रोज़ रोज़ बाहर क्यों जाती हो, क्या होता है वहां?”। संस्था वालो को भी लोग टोना कसते थे, की आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। सरकार आपकी मदद नही करने वाली। धीरे धीरे जब इस ऑर्गेनिक खेती का असर दिखा, तब लोगों ने बोलना बंद किया।
जागृति यात्रा
“कस्तूरी और डब्ल्यू जी डब्ल्यू एल ओ की मदद द्वारा, महिलाएं अब अपने सामान और अनाज को बेचने में सक्षम होगयी है”। इस से हमें ये पता लगता है कि कैसे भारत के कोने कोने में कुछ महिलाएं ऐसी है जो आर्थिक रूप से शशक्त होने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है और कामयाबी हासिल कर रही है।