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प्राचीन भारत में ब्रमचारी का पालन करती हुई
यही ब्रमचारी महिलाये आगे जाके समाज के तिरस्कार का हिस्सा बनी। इन महिलाओं के ऊपर ये दोष लगाया गया कि इन्होंने अपने पति का साथ छोड़ मोह माया को अपनाया। इन महिलाओं के लिए समाज ने अलग नियम और कानून बनाये जिसके अनुसार इनकी ज़िन्दगी काफी दूभर होगयी।
समाज ने इनके ऊपर काफी बंधन लागये जैसे कि किसी सम्मेलन में न जाना वरना वातावरण अशुद्ध होजायेगा, पवित्र स्थान जैसे विवाह या किसी शुभ स्थान में शामिल न होना , अपने आश्रम में बिना शोर मचाये शांति से रहना, बाल न रखना या विवाह न करना। बाहर निकलना भी इनके लिए मुश्किल था और इन्हें अलग स्नान घर दिए जाते ताकि ये लोग दूसरों के संपर्क में न आएं।
बनारस और वाराणसी की विधवाएं
भारत में सबसे अधिक संख्या में विधवाएं बनारस और वाराणसी में रहती हैं। यहाँ कई आश्रम हैं जो कि इनकी आर्थिक और भावुक तौर से सहायता करते हैं। यहाँ की विधवाओं से लोग कैसे पेश आते है उस से हमारे समाज के बढ़ती हुई सोच पे रोक लग जाती है। इन्हें अपने बाल बढ़ाने नहीं दिए जाते,इन्हें सफ़ेद कपड़े पहन लोगों के पैसों पर अपनी ज़िंदगी चलानी पड़ती है। इनके साथ जगह जगह गलत होता आया है और सबसे बड़ी बात है कि ज्यादा लोगों ने इसपे कभी ध्यान ही नही दिया। 2005 में आयी फ़िल्म वाटर ने इन विधवाओं की ज़िंदगी को काफ़ी अच्छे से पेश किया। मंगल पांडे में भी ये दिखाया जाता है कि कैसे लोग ज़बरदस्ती इनको सती करने पर मजबूर करते थे।
ग्रैनी आशा जैसी औरतों के साथ हुआ ग़लत
हमारा देश जो की सबको बराबर का दर्ज़ा देने की बात करता है, वहीं ग्रैनी आशा जैसे लोग जो कि इन विधवाओं के लिए कुछ कर रहीं है, उनका तिरस्कार किया जाता है। अगर हमें एक महिला को उसका हक़ दिलाना है तो शुरुआत इनसे करनी चहिये जिन्होंने काफ़ी समय से ये सब झेला है और इनका चुप चाप पालन किया है।