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आज अगर हम बात करें तो महिलायें घर पर बैठकर घर का कामकाज देखती है और बच्चों को संभालती है और इसी सब काम में उनका पूरा समय और मेहनत लग जाती है. इस तरह सब कुछ करने के बावजूद उन्हें कुछ नही मिलता है.
अगर हम हिंदुस्तान की बात करें तो आमतौर पर यहां पर पुरुष घर से बाहर काम करने जाते है और उसके लिये उन्हें पैसे मिलते है. लेकिन महिलाये घर पर रहती है और उन्हें बगैर पगार के सारे काम करने होते है.
हालांकि अब इसमें बदलाव आ रहा है जिसमें हम देख रहे है कि महिलायें घर से बाहर जाती है और काम करती है लेकिन इसके बावजूद उनसे घर के काम करने की भी उम्मीद की जाती है. यह कोई मज़ाक नही है कि इंदिरा नुई ने स्वंय इस बात को माना कि उन्हें घर के लिये दूध लाना पड़ा जब उनकी मां ने उनसे बोला बजाय उनके पति जो पहले घर आ चुके थे. यह वाक्या उस वक़्त पेश आया था जब इंदिरा पेपसिको की प्रेसिडेंट बनी थी.
इस पूरी घटना के ज़रिये वह बताना चाह रही थी कि महिलायें बाहर जा सकती है और पैसा भी मिल सकता है. लेकिन उन्हें वापस आना पड़ता है और फिर घर के काम करने पड़ते है. आख़िर वह यह नही करेंगी तो कौन करेंगा.
इस तरह की बातें बताती है कि महिलाओं को किसी भी सूरत में आराम नही मिलता.
अगर महिला बाहर जाकर काम नही करती है तो उन्हें घर पर बगैर पैसों के सारे काम करने होते है लेकिन अगर वह बाहर का काम करती है तो उन्हें घर पर आकर वह सारे काम करने है जो वह घर पर छोड़ कर गई थी.
महिलाओं की जिदग़ी को देखा जायें तो हमे यह पता चलता है कि उनसे हर तरह की उम्मीदें की जाती है. अगर वह घर पर है तो घर के सदस्य यह अपेक्षा करते है कि वह घर का सारा काम करेंगी और जब वह बाहर जाकर आफिस में काम करती है उस वक़्त भी एक महिला होने की वजह से आफिस के लोग अपेक्षा करते है कि वह अपना कोई भी आफिस का काम नही छोड़ेंगी और पूरा करेंगी.
वही ऐसे पुरुषों की तादाद बहुत ज्यादा है जो घर पर काम करने और बच्चों के देखभाल करने वाली महिलाओं के बारे में विचार रखते है कि वह कुछ भी नही करती है. उन्हें औरतो के बारे मे ऐसी सोच बाहर निकलना चाहिये. लेकिन ऐसे पुरुषों को देखना चाहिये कि उनकी मां क्या करती थी. अगर घर पर काम करने वाली महिलायें थी तो उन्हें उन काम करने वाली महिलाओं को देखना चाहिये जो आपके घर में पैसा लेकर काम कर रही है वही आप के घर की महिला वही सारे काम बगैर किसी पैसों के कर रही है.