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क्या है ये नियम
जब लोगो से ये पूछा जाता है, की आखिर औरतो के साथ रेप होता क्यों है, उनका अक्सर ये कहना होता है कि लड़की ने छोटे कपड़े पहन रखे थे, या ये की लड़की आधी रात को एक सुनसान सड़क पे चल रही थी तो ये होना तो निशित था। निर्भया रेप केस में भी कुछ ऐसा ही सुनने को मिला।
समाज की सोच
समाज के अनुसार अगर एक लड़की देर रात तक काम करती है या देर रात घर आती है, तो गलती उसकी है, की ये जानते हुए की रात का समय खतरनाक है, वो अकेले निकली। क्या ये असाधारण समय हमारा समाज तय करता है?
जी हां , रेप और यौन शोषण दिन के समय में भी होते है और सबसे बड़ी बात ये है कि भारत में ये गुनाह लड़की के जान पहचान वाले होते है , नाहि की अनजान। समाज का ये प्रचलन काफी दिनों से चलता आ रहा है कि एक लड़की अपने घर में काफी सुरक्षित होती है। किंतु सारे अनुसंधान इसके खिलाफ हैं।
क्या ये तर्कहीन सोच है?
रात का समय महिलाओं के लिए असुरक्षित है, ये मान के और कहके लोगो ने अपने मन में एक तर्कहीन सोच अपना ली है। यही सोच रूढ़िवादी विचारों को आगे बढ़ता है जिनमें कोई तर्क वितर्क नही होता। सच तो ये है कि ये सोच सिर्फ गांव या पिछड़े हुए इलाको में नही बल्कि दिल्ली के लोगो में भी है। होस्टल की लड़कियों को 7 बजे के बाद अंदर आने नहीं दिया जाता नाहि तो निकलने दिया जाता है। इसके खिलाफ कॉलेज की लड़कियों ने पिंजरा तोड़ कर एक आंदोलन शुरू किया जहां उन्होंने इस नियम का विरोध किया।
अपराधों का नाहि कोई समय होता है और नाहि कोई जगह
बड़ी बात ये है जोकि लोगो को समझनी पड़ेगी की ऐसे अपराधों का नाहि कोई समय होता है और नाहि कोई जगह । अगर ऐसा ही होता तो कठुआ में एक मंदिर जैसे पवित्र स्थल में ऐसा घिनोना अपराध नही होता। लड़को की सोच और उन्हें दी गयी शिक्षा से ही इसका समाधान निकल सकता है। कड़े से कड़ी सजा इन गुनाहगारो को सावधान कर सकते है । गुजरात राज्य इस मामले में काफी सुरक्षित है जहां औरते देर रात तक डांडिया खेल के भी लौटती है, उन्हें कुछ नही होता। आशा है जल्द ही भारत का हर राज्य सुरक्षित हो और ऐसे तर्कहीन सोच अपनाने से ज्यादा लोग तर्क पे विश्वास करें ।