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खुद से प्यार करें और अपनी ज़िंदगी की नायिका बनें

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Swati Bundela
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उसे एक नायक चहिये था और क्योंकि वो एक ढूंढ नहीं पाई तो वो स्वयं एक बन गयी। उसने दुनिया को अपनी तरह देखा।


उसने देखा कि उसकी इज़्ज़ाजत के बिना उसका ध्यान अतीत पे जा रहा था। जिन तस्वीरों को वो खंड करना चाहती थी, वो ही उसके आँखों के सामने आ रहें थे। वो पहले कैसी थी? वो आज कैसी है? ये सवाल ऊपर से बहुत आसान लग रहा थे। इन सवालों के जवाब और साफ़ होगये जब उसने अपनी कहानी दोहराई। उसके अंदर अभी भी लड़ने की क्षमता थी और वो अपने आपको और मजबूत बनाती थी जब भी उसकी आवाज़ आसमाँ में गूंजती थी।
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जब कभी भी उसने अपनी ज़िन्दगी को खत्म करने के बारे में सोचा, उसके पास कोई न कोई बहाना आगया। जब भी उसने खुद को टूटते हुए देखा, उसके सामने एक ऐसी बात आई जिसनें उसे फिरसे खड़े होने की हिम्मत दी। जब भी उसकी हिम्मत टूटती थी, ज़िन्दगी ने उसके सामने नई मुसीबतें ला दी ताकि वो आगे बढ़ सके।


वो पूरी नहीं थी, पर काफ़ी थी। वो बदली और इस बार एक अलग ही इंसान बनके आयी पर इस बार अलग लक्ष्य और अलग प्राथमिकता के साथ। इस बार उसके पास प्यार नहीं था पर उसकी हिम्मत बढ़ गयी थी। उसे बचाने की आवश्यकता नहीं थी। उसे बस ढूंढे जाने और सरहाने की ज़रुरत थी। उसके सोच, पागलपन और खूबसूरती को इस बार कोई नहीं रोक सकता था और ऐसी कोई चीज़ नहीं थी जो वो पा न सके। इस बार उसे बस अच्छा दिखना नहीं था, इस बार उसे साहसिक और उग्र होना था। जो भी उसे चाहिए था, उसने लिया – खुशी से।
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किसे के कदमो की आवाज़ ने अचानक से उसका ध्यान भटका दिया और वो असल जिंदगी में आ आगयी। उसने पीछे मुड़के देखा तो नौकरानी कॉफ़ी का कप लिए खड़ी थी। उसने कप पकड़ा और खिडकी की तरफ़ देखा। बारिश अब रुक चुकी थी और धूप की किरणें आने लगी। किरणे खिड़की को पार करते हुए उसकी आंखों तक आयी और एक हल्की मुस्कान उसके चेहरे पे आयी। उसे ये लगा कि उसकी जिंदगी इन किरणों को स्वीकार कर रहीं हैं और वो बदली तो है पर अच्छे के लिए। और अचानक से सब कुछ सुंदर लगने लगा।

उसे एक नायक चहिये था और क्योंकि वो एक ढूंढ नहीं पाई तो वो स्वयं एक बन गयी। उसने दुनिया को अपनी तरह देखा।
#फेमिनिज्म
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