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आरजे स्मिता ने सत्र का संचालन किया. पत्रकार ललिता सुहासिनी, अभिनेत्री-फिल्म निर्माता विभावरी देशपांडे और लेखिका सोमया राजेंद्रन ने पैनल में अपने से संबंधित क्षेत्रों के बारे में अपनी बात रखी.
बाहर निकलने की जरुरत
स्मिता ने वक्ताओं के साथ चर्चा की कि महिलाओं को अपनी झिझक को मिटा कर बाहर आना चाहिये और अपने दिमाग से निडरता से काम करें. सोमया, जो कई महिला लेखिकाओं को पढ़ती रही है, का मानना है कि इन लेखिकाओं ने उन्हें काफी प्रभावित किया है.
"महिला लेखिकाओं की एक मजबूत विरासत रही है जिसे मैं बरसों से फोलो कर रही हूं. मैंने उनके दृष्टिकोण से लाभान्वित हुई हूं और महसूस करती हूं कि जितना अधिक आप एक महिला के रूप में सोचेंगे और परिणाम को सोचें बगैर आगे बढ़ेंगे, उतना ही बेहतर होगा.” - सोमया
ललिता का मानना है कि पिछले पांच सालों में परिस्थितियों में बदलाव बेहतरी के लिये हुआ है. उन्होंने एक महिला के संपादक होने का उदाहरण बताया. वह कहती है, "मुझे अपने दिमाग से लिखने में कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ा क्योंकि चीजें धीरे-धीरे समय के साथ बदल गई थी. हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जाता है कि कार्यस्थल पर कुछ भूमिकाओं को अपनाने वाली महिलाओं की बात आती है तब भी कुछ पूर्व-ग्रसित विचारों की बात होती हैं.
विभावरी एक ऐसे माहौल में बड़ी हुई, जो महिलाओं के लिए भी उसी तरह से उदार थी जैसे पुरुषों के लिये थी. उन्होंने कहा,"मैं अपने चारों ओर कुछ बहुत शक्तिशाली महिलाओं को देखकर बड़ी हुई. मेरी जिंदगी में मेरी मां, दादी और अन्य महिलाएं थी जिनकी बातों को तवज्जों दी जाती थी. इसने मुझे अपनी पसंद के अनुसार, आगे बढ़ने में मदद की और सक्षम बनाया.” विभावरी का मानना है कि अब महिलाओं अब ज्यादा सशक्त है और वह लिख रही है जौ उन्हें अच्छा लगता है.
चुनौतियां और सेंसरशिप
जब महिलाओं के विचारों और वास्तविकता की अभिव्यक्ति की बात आती है, तो महिला लेखिकाओं को कुछ हद तक एक निश्चित दुविधा का सामना करना पड़ता है. सोमया ने समझाया कि महिला लेखिकाओं से हमेशा एक निश्चित तरीके से लिखने और एक निश्चित प्रकार की कहानियां कहने की उम्मीद की जाती है. उन्होंने कहा, "महिला लेखिकाओं को इस बात पर विचार करना पड़ता है कि लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे. उन्हें हमेशा नैतिकवादी निर्णयों के बारे में सोचना पड़ता है.”
उन्होंने यह भी बताया कि लोग उन मुद्दों पर आपत्तियों को कैसे उठाते हैं जिनका उल्लेख सामान्य रूप से पुस्तकों में नहीं किया जाता है. उन्होंने कहा, "हमें डर के बिना सीमाओं को तोड़ना चाहिये और युवा, उभरते लेखकों को प्रोत्साहित करना चाहिये ताकि उनका रास्ता बन सकें."
विभावरी ने बताया कि कैसे एक निर्देशक के रूप में उन्होंने बिना किसी बाधा के महत्वपूर्ण कहानियों को बताने के लिए अपना ख़ुद का रास्ता तैयार किया.
ललिता को काम में सेंसरशिप का सामना नहीं करना पड़ा है. हालांकि, वह ऐसी स्थितियों में आई है जहां उन्हें दिक्क़त गई. उन्होंने विस्तार से बताया,"निश्चित रूप से, मुझे बताया गया है कि मुझे ज्यादातर समय महिलाओं के बारे में क्यों लिखना है. लोग नारीवाद को बुरे तौर पर देखते हैं."
ट्रोलिंग और अनावश्यक प्रतिक्रिया
विभावरी ने हमें रंगमंच के कामकाज के बारे में जानकारी दी और बताया कि रंगमंच एक बेहतर स्थान है जहां पर आप अपने विचारों और भावनाओं को पूरी तरह से व्यक्त कर सकते है.
अब, मुझे लगता है कि लोग चाहते हैं कि महिलाएं और ज्यादा लिखें. रचनात्मक उद्योग में कई कहानियां हैं जो लोग चाहते है कि महिला लेखिकाओं से लिखवाई जायें ताकि वह एक अलग परिप्रेक्ष्य के साथ उसे प्रस्तुत करें. यह एक बेहतर और रचनात्मक परिवर्तन है - विभावरी
सोमेया, जो एक फिल्म समीक्षक भी हैं, ने महिला केरेक्टर पर नकारात्मक और अनावश्यक प्रतिक्रियाओं को संभालने के अपने अनुभवों पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, "फिल्मों में महिलाओं के बारे में बात करना किसी को भी महत्वपूर्ण नहीं लगता है. जब मैं अपनी समीक्षाओं में यह बात बताती हूं, तो बहुत सारे पुरुष मुझे बताते हैं कि मैं गलत हूं, और ऐसा क्यों. हालांकि, इस तरह के फीडबैक मुझे अपनी अपनी मर्जी से लिखने के लिये रोक नही पाते है.”
ट्रोल से निपटने का तरीका ललिता के पास यही है कि उनपर हंसा जायें.
"मैं इन ट्रोल पर हँसती हूं, खासकर जब वे इसमें जेंडर को लेकर आते है. उन्हें किसी भी तरह से मुंह लगाने का कोई फायदा नही है.” - ललिता
पैनलिस्टों ने दृढ़ता से यह विचार रखा कि महिलाओं को लेखन जारी रखना चाहिए और अपने विवाक से बोलना चाहिये ताकि कोई भी परिस्थिति में वह दूसरी चीजों से प्रभावित न हों.