स्वातंत्रता दिवस: भारतीय महिलाओं को किस चीज़ से आजादी मिलनी चाहिए?

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Swati Bundela
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अपराध से मुक्ति- भारत दुनिया के उन देशों में शुमार होता है जहां पर महिलायें सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं. मैं एक महिला के रुप में चाहूंगी कि हमें अपराधों से मुक्ति मिलें जो महिलाओं के ख़िलाफ हो रहे हैं. हम देखते है कि महिलाओं के ख़िलाफ अपराध लगातार बढ़ रहे है. इसके चलते महिलाओं का घर से निकलना दूभर हो रहा है.
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देश की हर महिला इस बात को महसूस कर रही है कि सरकार अगर कुछ महिलाओं के लिये पहले कर सकती है तो वह उन्हें अपराध से मुक्ति दिलाना है.


कपड़े पहनने की आज़ादी- आज भी हमारे देश में कई घरों में कहे या फिर इलाकों की भी बात कर सकते है जहां पर महिलाओं को अपनी पसंद से कपड़े पहनने की आज़ादी नही है. इसलिये महिलायें चाहती है कि वह कपड़े अपनी पसंद के पहन सकें उसकी उन्हें आज़ादी मिलना चाहिये. समाज इस बात का फैसला न करें की महिलाओं को कपड़े किस तरह के पहनने है.
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शोषण से मुक्ति- बड़ी तादाद में इस देश में महिलायें आज भी अपने परिवार और समाज के शोषण का शिकार है. इस शोषण के चलते महिलायें अपनी ज़िदगी सही तरह से नही जी पाती है.
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महिलायें चाहती है कि उनके साथ हो रहे शोषण से उन्हें पूरी तरह से मुक्ति मिलना चाहिये. समाज के अंदर भी महिला को शोषण का शिकार होना पड़ रहा है और बहुत कम महिलायें है जो इसके ख़िलाफ आवाज़ उठा पाती है.


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घूमने फिरने की आज़ादी - हमारे देश में यह जरुरी है कि महिलायें शाम होते ही अपने घरों के अंदर आ जायें. शहरी क्षेत्रों में जरुर कुछ सुधार हुआ है लेकिन उसके बावजूद महिलायें अगर देर से घर आती है तो उन्हें ग़लत नज़रों से देखा जाता है. महिलायें चाहती है कि उनके घूमने फिरने पर किसी भी तरह की रोक न हो उन्हें इसके लिये आज़ादी मिलनी चाहिये. अगर पुरुषों की तरह महिलायें भी रात के वक्त घूमना चाहती है तो उन्हें यह आज़ादी मिलनी चाहिये.

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जेंडर आधारित काम से आज़ादी- कुछ काम ऐसे है जिन्हें पुरुषों का ही बना दिया गया और कुछ काम ऐसे है जिन्हें महिलाओं का ही माना जाता है. महिलायें चाहती है कि उन्हें इससे मुक्ति मिलें. घर की देखभाल मान लिया गया है कि सिर्फ महिलाओं का काम है. लेकिन अब महिलायें ये मान रही है कि घर की साफ-सफाई या फिर बच्चों को संभालना सिर्फ महिलाओं का काम नही है बल्कि पुरुषों की भी इसमें भागीदारी होनी चाहिये.

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असमानता से आज़ादी- महिलाओं को उनकी तादाद के मुताबिक़ आधी आबादी माना जाता है लेकिन जब हम संसाधनों और अन्य चीज़ों को देखते है तो महिलाओं को बराबर दर्जा नही मिल पाता है बल्कि कब्ज़ा पुरुषों का ही नज़र आता है. इसलिये यह जरुरी है कि इस असामनता से हमें आज़ादी मिलें और पुरुषों के साथ बराबर हक़ मिलें. हम देखते हैं कि राजनीति में ही महिलाओं की उपस्थिती पुरुषों से काफी कम है. इसलिये यह जरुरी है कि इस तरह के हर क्षेत्र में महिलाओं को समानता मिलें.