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महिला सशक्तिकरण भारत में जटिल है: रितविका भट्टाचार्य

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Swati Bundela
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भारत और अमेरिका के बीच परवरिश


वह कोलकाता के पूर्व महापौर बिकाश रंजन भट्टाचार्य की पुत्री हैं और यही नतीजा है कि राजनीति को उन्होंने जीवन में बहुत करीब से देखा है. स्वाभाविक रूप से उन्हें परिवार में राजनैतिक माहौल मिला क्योंकि उनके घर नियमित रूप से सांसदों का आना जाना लगा रहता था.
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10 साल की उम्र में वह अमेरिका के फ्लोरिडा शिफ्ट हो गई और वहां अपनी शिक्षा पूरी की. उन्होंने अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में स्नातक की उपाधि वेक फोरेस्ट विश्वविद्यालय से प्राप्त की और हार्वर्ड केनेडी स्कूल से मास्टर ऑफ पब्लिक पॉलिसी में डिग्री ली.

पिता से प्रेरित

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अपने पिता के साथ समय व्यतीत करने की वजह से उनके जीवन में उनका प्रभाव देखने को मिलता है. "अगर मुझे यह देखने का मौका नहीं मिला होता कि अंदर से राजनीतिक जीवन कैसा होता है  तो मैं राजनीति में अवसरों और कमियों को कभी नहीं समझ पाती. उदाहरण के लिए मैं बता दूं कि मेरा निर्वाचन क्षेत्र पर पूरा ध्यान इसी वजह से रहा क्योंकि मैं अपने पिता के साथ सांसदों से मिलती थी तो वे लगातार अपने निर्वाचन क्षेत्र में जाने और मतदाताओं से मिलने की आवश्यकता के बारे में बात करते थे. "

उन्होंने आगे बताया: "यह मुझे प्रकृतिक तौर पर मालूम थी कि सांसदों के कार्यालय के माध्यम से एक निर्वाचन क्षेत्र में काम करना कितना प्रभाव पैदा कर सकता है. मीडिया में जो कुछ हम देखते हैं वह राजनीतिक जीवन में होने का केवल एक हिस्सा है. मुझे लगता है कि मेरा पिता के साथ होना और देखना की राजनेता कैसे काम करते हैं ने वास्तव में मुझे राजनीति और विकास के तरीके के बारे में गहराई से समझने में मदद की."
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राजनैतिक हित


यहां तक कि जब वह बड़ी हो रही थी, तब भी उन्होंने विकास की पहल में गहरी दिलचस्पी ली और देखा कि कैसे राजनीति लोगों के जीवन को बढ़ाने के लिए काम करती है. "जब मैं हाईस्कूल में थी, तो मुझे अपने निर्वाचन क्षेत्र के कार्यालय में एक सीनेटर के साथ प्रशिक्षण प्राप्त करने का मौका मिला. मैं किशोरी के रूप में देख रही थी कि कैसे विधिवत मुद्दों को हल किया जाता है. मैं कॉल का जवाब देती थी, शिकायत को नोट करती थी, उसे सही विभाग में भेजती और समय-सीमा के भीतर वे उसका जवाब देते थे. उन्होंने कहा, "प्रणाली अच्छी थी," उन्होंने कहा कि लेकिन भारत में ऐसा नही थी.
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"मुझे लगता है कि हमें यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि हम अपनी लड़कियों से कितनी उम्मीद करते हैं यह उन्हें मालूम हो और हम अपने महिला होने पर कितना गर्व महसूस करते है." - रितविका भट्टाचार्य


"जब मैं भारत वापस आती थी और मेरे पिता मुझे सांसदों से मिलने के लिए ले जाते थे तो  मैंने देखा कि हमारे निर्वाचित प्रतिनिधि अपने क्षेत्र में सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध थे, लेकिन वे केवल अपनी मर्जी से काम कर रहे थे क्योंकि उनके पास सिस्टम नहीं था. अधिकांश सांसद आज भी, केवल एक समय में व्यक्तियों की समस्याओं का समाधान करते हैं. इस प्रकार, अधिकांश भारतीय सांसद काम कर रहे हैं. "
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स्वानिती, रितविका का पहला उद्यम नहीं है. अपने कॉलेज के दिनों के दौरान, उसने ड्रीम्स कम ट्रू शुरू किया. उसका उद्देश्य कॉलेज के छात्रों को सलाह देना था. "मुझे अनुभव पसंद था और मेरा कुछ हिस्सा हमेशा उद्यमशीलता में वापस जाना चाहता था. यह केवल समय की बात थी. जल्द ही, मैंने अपना खुद का उद्यम शुरू किया और स्वानिती की स्थापना की "
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स्वानिती क्या करता है


स्वानिती के पास एक लाभकारी शाखा भी है, अंक आह, जो डेटा और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल बेहतर निर्णय करने के लिये करता है.

वर्तमान में स्वानिती में, रितविका सिस्टम बनाने पर काम कर रही है जहां कोई भी जलवायु परिवर्तन पैटर्न के आधार पर आजीविका के अवसरों के लिए समुदायों की योजना बनाने में मदद करने के लिए डेटा का उपयोग कर सकता है. पूर्वानुमानित विश्लेषण और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करके, वह डैशबोर्ड बना रही है जहां किसान अपनी आवश्यकता के अनुसार योजना बना कर उसका उपयोग कर सकता है ताकि जलवायु परिवर्तन के ख़तरों को कम किया जा सकें.

रितविका ने संगठन को नेतृत्व दिया लेकिन वहीं कुछ चुनौतियां भी हैं जिनका वह लगातार सामना करती रही है.  "मुझे लगता है कि सरकार के पास जबरदस्त क्षमता है कि वह प्रभाव बना सकें, लेकिन सरकार एक बड़ी मशीनरी है और इसलिए संयम होना बहुत महत्वपूर्ण है. परियोजना शुरु करने में महीने लग सकते है लेकिन आज के तेज़ युग में वही वक़्त काफी लंबा लगने लगता है. हालांकि, याद रखने की सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि जब परियोजनाएं शुरु हो जाती हैं, तो वे बहुत अधिक प्रभाव डालती हैं. "

महिला सांसदों की चुनौतियां


महिलाओं के सशक्तिकरण के बारे में बात करते हुए, रितविका ने कहा, "भारतीय संदर्भ में महिला सशक्तिकरण अविश्वसनीय रूप से जटिल है. महिलाओं के सशक्तिकरण की कोई भी एक परिभाषा नहीं है. उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों में जहां हम काम करते हैं, हमनें देखा है कि समाज महिलाओं को बिना पुरुष साथी के घर छोड़ने की इजाज़त नही देता है. इस तरह से महिलाओं के सशक्तिकरण की अवधारणा पूरी तरह गायब है. अन्य स्थानों में जैसे पूर्व में, हम देखते हैं कि महिलाएं घर छोड़ती हैं तो वह न केवल काम करती है और घर में पैसा लेकर आती है. "

महिला सशक्तिकरण आर्थिक मूल्य से संबंधित होने की वजह से वह उम्मीद की कुछ रोशनी है भी देखती है.  वह कहती हैं, "और फिर जब मैं दिल्ली वापस आई तो मैंने देखा कि सफल व्यवसायी और राजनीतिक नेताओं को भी अपने घरों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है सिर्फ इसलिये क्योंकि वह महिलाएं हैं. और मैं यही सोचती हूं कि कौन सी चीज़ हमें सशक्त बनायेंगी. महिलाओं के अधिकारों और समानता में बहुत उम्मीद है और प्रगति भी हुई है लेकिन भारत के संदर्भ में यह जटिल है. "

भारत के बारे में सबसे असाधारण बात यह है कि पश्चिमी देशों के विपरीत, हम महिलाओं को नेतृत्व से दूर नहीं रखना चाहते. चाहे ममता, मायावती या जयललिता हों, हम अपने महिलाओं को नेताओं के रूप में देखने के लिए तैयार है.

वह कहती है, "भारतीय राजनीती महिलाओं के प्रवेश के लिए बहुत अधिक बाधा उत्पन्न करती है.  जो राजनीति की स्थिती है उसमें हम हर जगह पुरुषों का वर्चस्व देखते है और हम पेशे और जीवन में संतुलन पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं, जिससे महिलाओं के लिए यह लगभग असंभव हो जाता है. वही अधिकांश राजनीतिक दलों ने महिलाओं की भर्ती के लिये ठोस प्रयास नही किये है. इस तरह की बाधाओं की वजह से हम बहुत कम महिला सांसदों और विधायकों को देख रहे है.”

रितविका का मानना है कि अब अधिक महिलाएं राजनीति में आ रही है.

"भारत के बारे में सबसे असाधारण बात यह है कि पश्चिमी देशों के विपरीत, हम महिलाओं को नेतृत्व से दूर नहीं रखना चाहते. चाहे ममता, मायावती या जयललिता हों, हम अपने महिलाओं को नेताओं के रूप में देखने के लिए तैयार है. मुझे लगता है कि हमें यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि हम अपनी लड़कियों से कितनी उम्मीद करते हैं यह उन्हें मालूम हो और हम अपने महिला होने पर कितना गर्व महसूस करते है."


भविष्य के लक्ष्य


स्वानिती के साथ, रितविका भारत से आगे जाकर वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक सेवा वितरण में आने वाली समस्याओं को निपटाना चाहती है.
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