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पुरुषों का मानना है कि उनका महिलाओं के शरीर पर नियंत्रण है
पुरुष महिलाओं को मुस्कुराने के लिए कहते हैं क्योंकि उन्हें को लगता है कि हम पुरुष की नज़र और उनके आनंद के लिए मौजूद हैं. पुरुषों का मानना है कि उनका महिलाओं के शरीर पर नियंत्रण है. इसलिए हमें कैसे दिखना, सोचना और कार्य करना चाहिए, इस पर वह अवांछित निर्देश देते हैं.
इसे हल करना आसान है: पुरुष, महिलाओं को मुस्कुराने के लिए न कहें
महिलाओं को पुरुषों से अधिक, मुस्कुराने की अपेक्षा की जाती है. वार्ता में, महिला उपस्थिति को व्यक्त करने के लिए सिर हिलाती है और मुस्कुराती है. यदि कोई महिला मुस्कुराती नहीं है, तो उसे नाराज माना जाता है. क्यों?और जब हम पुरुषों को महिलाओं पर मुस्कुराने के लिए सबसे अधिक दबाव डालने वाला समझते हैं, पर सामाजिक दबाव उससे कहीं अधिक महिला ही महिला पर बनाती है. जब कोई व्यक्ति किसी महिला को मुस्कुराने के लिए कहता है, तो वो यह सोचता है कि हम उसे खुश करने के लिए मौजूद हैं और हमें अपनी उपस्थिति में बदलाव करना चाहिए, फिर चाहे हम वास्तव में क्या महसूस कर रहे हों.
हमारी संस्कृति सिखाती है कि मुस्कुराती हुई महिला सहज और सहमत लगती है.
महिलाओं के चेहरे "स्माइली" होते है
2009 के एक अध्ययन में पाया गया कि पश्चिम में मुस्कुराहट को "नारी" के रूप में सोचा जाने लगा है. मुस्कुराते हुए चहरों में अधिक स्त्री हैं, जबकि खाली या आक्रामक चेहरे पुरुष के होते हैं. महिलाओं के चेहरे को अधिक सहज रूप से "स्माइली" माना जाता है. महिलाओं को मुस्कुराने की मांग अजीब और डिमांडिंग है. और उनसे अपेक्षा की जाती है, जैसे विनम्र होने, स्वीकार्य होने, पुरुषों के लिए अनुकूल होना, निर्वाह होना, आदि.
अवश्य ही, मुस्कान खूबसूरत लगती है और जिस चेहरे पर मुस्कुराहट हो तो वो और सुंदर लगता है. पर जब आप अंदरूनी तनाव महसूस कर रहे है, और फिर भी आपसे मुस्कुराहट की अपेक्षा? यह मानसिक अत्याचार है. आप जैसे है वैसे रहिये, किसी और की ख़ुशी या मज़े के लिए, अपने आप को तकलीफ में न डालिये. हम रोबोट्स नहीं है, की हमें कुछ महसूस नहीं होता, या अपनी भावनाओं और इमोशंस को दूसरे के लिए छिपा ले.
कठपुतली नहीं है आप! जीती जागती इंसान है, जिसको कभी ख़ुशी होती है तो कभी निराशा व दुःख. और हर वक्त मुस्कुराकर , चीज़ों को अंदर न रखे. चिलाइये, रोइए, हसिये जोर जोर से और ज़िन्दगी अपने मुताबिक जीएं.