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दोस्त विशेष होते हैं. हालांकि महिलाओं की दोस्ती को अक्सर नाजुक और संभालने में मुश्किल बताया जाता है. जैसा माना जाता है कि महिलाओं की सबसे बड़ी दुश्मन महिलायें ही होती उन्हें एक दूसरे की मदद करने से काफी हद तक रोक देती हैं. हम सभी जानते हैं कि महिलाएं अन्य महिलाओं के साथ दोस्ती तलाशती हैं. और जब जीवन चुनौतीपूर्ण हो जाता है तो वह महिला साथी की तलाश में रहती हैं.
महिला दोस्ती साझा अनुभव है. एक लड़के के साथ दोस्त होने की तुलना में, दो महिलाओं के बीच का बंधन ऐसा हो जाता है जहां पर वह एक दूसरे की सहायता प्रणाली बन जाते है और कठिन समय में महिला मित्र एक-दूसरे के लिए खड़े होते हैं.
बॉलीवुड हमेशा से ही महिलाओं को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करता रहा है और उनकी "बदसूरत" लड़ाई पर ख़ुश होता रहा है. बॉलीवुड ने हमें "जय और वीरू" पुरुष मित्रता के प्रतीक के रूप में दिया, लेकिन महिलाओं के लिए ऐसी कोई स्थापित चीज़ नहीं बनाई.
दुश्मन के तौर पर महिलाओं के चित्रण ने वास्तविक जीवन की दोस्ती को प्रभावित किया और उन्हें ईर्ष्या और घृणा के मूल्यों के साथ प्रेरित किया, जिन्हें उन्होंने पहले अनुभव नहीं किया था. दशकों के बाद भी, स्क्रीन पर महिलाओं के बीच पर्याप्त बातचीत देखना कठिन होता है और जो बातचीत आमतौर पर होती भी है तो वह मर्दों के बारे में ही होती है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिंदी कॉलेज के परिनाता सैनी कहती है, “मुझे विश्वास है कि लड़कियों के कॉलेज को चुनना मेरे जीवन का सबसे अच्छा निर्णय था. आप दोस्ती विकसित करते हैं. आपकी महिला मित्रों को हमेशा मालूम होता है कि आप किस दौर से गुज़र रही है. वे हमेशा मदद के लिये तैयार रहती है और मुझे सबसे अच्छे सुझाव देती हैं. अध्ययन में या मेरे रिश्तों में, मैंने उन्हें हमेशा पाया है."
उसी कॉलेज की प्रिया देवल का मानना है, "लड़किया लड़कियों की मदद करें यह बहुत महत्वपूर्ण हैं. किसी प्रतिस्पार्धा की कोई ज़रूरत नहीं है. बल्कि हमें जश्न मनाना चाहिए और अपनी दूसरी बहनों की मदद करनी चाहिये."
कमला नेहरू कॉलेज के स्वाति धामजा कहते हैं,"मेरी गर्लफ्रेंड्स मुझे खुश करती हैं. वे अकेलेपन का मेरा इलाज हैं. हर बार जब मैं कमी महसूस करती हूं, वे मुझे सहयोग देने के लिये तैयार रहती है. महिलाओं के तौर पर हमें एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने और एक-दूसरे को जज करने के बजाए एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए."
एलएसआर के छात्रा गरीमा बब्लानी का मानना है कि, "केवल महिलाएं एक दूसरे को पूरी तरह से समझती हैं. वे स्वाभाविक रूप से देखभाल करने वाली और लगातार एक-दूसरे को देखने वाली होती है. महिला मित्रता आपके जीवन को मज़ेदार बनाती हैं और एक दूसरे के प्रति उनके सहयोग और सलाह उनकी दोस्ती का सार बन जाती हैं."
एलएसआर की शुभांगी मुखर्जी कहती है, "मुझे विश्वास है कि लड़कों के बजाय लड़कियों के साथ व्यक्तिगत समस्याओं को साझा करना आसान है. वे समझदार और सहायक होती हैं. हालांकि, मुझे लगता है कि महिलाओं को एक-दूसरे को नीचे दिखाने में खुशी मिलती है. तर्क और चर्चायें हर महिला मित्रता का हिस्सा हैं, लेकिन आख़िर में वह मजबूत होकर इसे पीछे छोड़ कर आगे बढ़ती है. हमें लड़कियों को एक दूसरे के निरंतर आलोचकों के बजाय सहायक बनना सिखाना चाहिये. इस तरह जीवन में एक लंबा रास्ता तय करने वाली ठोस दोस्ती विकसित की जा सकती है. "
आईपी कॉलेज फॉर विमेन की अदिति तिवारी का मानना है कि महिलाएं आम तौर पर चीजों के बारे में एक निश्चित तरीके से सोचती हैं. इस वजह से समझ का एक बेहतर स्तर है और वे एक दूसरे से बेहतर तरीके से सीखती है.
एलएसआर की छात्रा सृष्टि अरोड़ा कहती हैं, "मैं अपनी सभी गर्लफ्रेंड्स को महत्व देती हूं. अब भी जब मैं अन्य कॉलेजों की दोस्तों से बात करती हूं, तो वे मुझे लड़कियों की कॉलेज से संबंधित होने वाले झगड़ों के बारे में बात करने की उम्मीद करते हैं. ऐसी सोच मुझे महिला संबंधों के समाज के परिप्रेक्ष्य पर सवाल उठाने को मजबूर करती है. हमारी लड़कियों का गिरोह, हर समय एक दूसरे का सहयोग करते है. हम अपनी खुशी और दुःख को समान रुप से साझा करते है और यही कारण है कि हम वास्तव में करीब होते हैं. मुझे नहीं लगता कि इल तरह की दोस्ती का आनंद में लड़कों के साथ ले सकती हूं. "
वह कहती है, "लड़कियां बहुत ध्यान देती हैं. इसलिए बेहतर सलाह दे सकती हैं. हम एक दूसरे के साथ एक परिवार की तरह व्यवहार करते हैं. सभी उम्र में महिलाएं हमेशा एक-दूसरे का समर्थन करने के लिए होती हैं."
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ईमानदार, वफादार और लंबे समय तक चलने वाली
महिला दोस्ती साझा अनुभव है. एक लड़के के साथ दोस्त होने की तुलना में, दो महिलाओं के बीच का बंधन ऐसा हो जाता है जहां पर वह एक दूसरे की सहायता प्रणाली बन जाते है और कठिन समय में महिला मित्र एक-दूसरे के लिए खड़े होते हैं.
बॉलीवुड महिलाओं को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करता है
बॉलीवुड हमेशा से ही महिलाओं को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करता रहा है और उनकी "बदसूरत" लड़ाई पर ख़ुश होता रहा है. बॉलीवुड ने हमें "जय और वीरू" पुरुष मित्रता के प्रतीक के रूप में दिया, लेकिन महिलाओं के लिए ऐसी कोई स्थापित चीज़ नहीं बनाई.
दुश्मन के तौर पर महिलाओं के चित्रण ने वास्तविक जीवन की दोस्ती को प्रभावित किया और उन्हें ईर्ष्या और घृणा के मूल्यों के साथ प्रेरित किया, जिन्हें उन्होंने पहले अनुभव नहीं किया था. दशकों के बाद भी, स्क्रीन पर महिलाओं के बीच पर्याप्त बातचीत देखना कठिन होता है और जो बातचीत आमतौर पर होती भी है तो वह मर्दों के बारे में ही होती है.
हमनें कॉलेजों में पढ़ रही लड़कियों से बात की और महिला दोस्ती के बारें में उनकी राय जानी. जानिये उन्होंने क्या कहा:
दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिंदी कॉलेज के परिनाता सैनी कहती है, “मुझे विश्वास है कि लड़कियों के कॉलेज को चुनना मेरे जीवन का सबसे अच्छा निर्णय था. आप दोस्ती विकसित करते हैं. आपकी महिला मित्रों को हमेशा मालूम होता है कि आप किस दौर से गुज़र रही है. वे हमेशा मदद के लिये तैयार रहती है और मुझे सबसे अच्छे सुझाव देती हैं. अध्ययन में या मेरे रिश्तों में, मैंने उन्हें हमेशा पाया है."
दोस्त? नहीं, हम बहनों की तरह हैं
उसी कॉलेज की प्रिया देवल का मानना है, "लड़किया लड़कियों की मदद करें यह बहुत महत्वपूर्ण हैं. किसी प्रतिस्पार्धा की कोई ज़रूरत नहीं है. बल्कि हमें जश्न मनाना चाहिए और अपनी दूसरी बहनों की मदद करनी चाहिये."
कमला नेहरू कॉलेज के स्वाति धामजा कहते हैं,"मेरी गर्लफ्रेंड्स मुझे खुश करती हैं. वे अकेलेपन का मेरा इलाज हैं. हर बार जब मैं कमी महसूस करती हूं, वे मुझे सहयोग देने के लिये तैयार रहती है. महिलाओं के तौर पर हमें एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने और एक-दूसरे को जज करने के बजाए एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए."
बेहतर समझ और सहयोग
एलएसआर के छात्रा गरीमा बब्लानी का मानना है कि, "केवल महिलाएं एक दूसरे को पूरी तरह से समझती हैं. वे स्वाभाविक रूप से देखभाल करने वाली और लगातार एक-दूसरे को देखने वाली होती है. महिला मित्रता आपके जीवन को मज़ेदार बनाती हैं और एक दूसरे के प्रति उनके सहयोग और सलाह उनकी दोस्ती का सार बन जाती हैं."
एलएसआर की शुभांगी मुखर्जी कहती है, "मुझे विश्वास है कि लड़कों के बजाय लड़कियों के साथ व्यक्तिगत समस्याओं को साझा करना आसान है. वे समझदार और सहायक होती हैं. हालांकि, मुझे लगता है कि महिलाओं को एक-दूसरे को नीचे दिखाने में खुशी मिलती है. तर्क और चर्चायें हर महिला मित्रता का हिस्सा हैं, लेकिन आख़िर में वह मजबूत होकर इसे पीछे छोड़ कर आगे बढ़ती है. हमें लड़कियों को एक दूसरे के निरंतर आलोचकों के बजाय सहायक बनना सिखाना चाहिये. इस तरह जीवन में एक लंबा रास्ता तय करने वाली ठोस दोस्ती विकसित की जा सकती है. "
केवल महिलाएं एक दूसरे को पूरी तरह से समझती हैं. वे स्वाभाविक रूप से देखभाल करने वाली और लगातार एक-दूसरे को देखने वाली होती है. महिला मित्रता आपके जीवन को मज़ेदार बनाती हैं और एक दूसरे के प्रति उनके सहयोग और सलाह उनकी दोस्ती का सार बन जाती हैं."
मेरी गर्लफ्रेंड्स मेरा सहयोगी है
आईपी कॉलेज फॉर विमेन की अदिति तिवारी का मानना है कि महिलाएं आम तौर पर चीजों के बारे में एक निश्चित तरीके से सोचती हैं. इस वजह से समझ का एक बेहतर स्तर है और वे एक दूसरे से बेहतर तरीके से सीखती है.
एलएसआर की छात्रा सृष्टि अरोड़ा कहती हैं, "मैं अपनी सभी गर्लफ्रेंड्स को महत्व देती हूं. अब भी जब मैं अन्य कॉलेजों की दोस्तों से बात करती हूं, तो वे मुझे लड़कियों की कॉलेज से संबंधित होने वाले झगड़ों के बारे में बात करने की उम्मीद करते हैं. ऐसी सोच मुझे महिला संबंधों के समाज के परिप्रेक्ष्य पर सवाल उठाने को मजबूर करती है. हमारी लड़कियों का गिरोह, हर समय एक दूसरे का सहयोग करते है. हम अपनी खुशी और दुःख को समान रुप से साझा करते है और यही कारण है कि हम वास्तव में करीब होते हैं. मुझे नहीं लगता कि इल तरह की दोस्ती का आनंद में लड़कों के साथ ले सकती हूं. "
महिला दोस्ती साझा अनुभव है. एक लड़के के साथ दोस्त होने की तुलना में, दो महिलाओं के बीच का बंधन ऐसा हो जाता है जहां पर वह एक दूसरे की सहायता प्रणाली बन जाते है और कठिन समय में महिला मित्र एक-दूसरे के लिए खड़े होते हैं.
सर्वश्रेष्ठ सलाहकार
वह कहती है, "लड़कियां बहुत ध्यान देती हैं. इसलिए बेहतर सलाह दे सकती हैं. हम एक दूसरे के साथ एक परिवार की तरह व्यवहार करते हैं. सभी उम्र में महिलाएं हमेशा एक-दूसरे का समर्थन करने के लिए होती हैं."
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