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मुंबई के पनवेल की एक महिला ने अस्पतालों में बच्चों को ब्रेस्टफिड कराने के मामलें में कुछ गंभीर चिंताओं को उठाया है. मुंबई की एक माँ 'स्तनपान कराने के अधिकार' के लिए लड़ रही है. 31 वर्षीय सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल जिन्सी
अपनी कहानी के बारे में बताते हुये वर्गीस ने कहा, "मैं पहली बार माँ बनी हूं, मेरा बच्चा पिछले साल फरवरी में पैदा हुआ था. जब मैं गर्भवती थी तब मुझे गर्भावस्था में मधुमेह था. मेरे बच्चे के जन्म के बाद उसे एनआईसीयू में रखा गया था ताकि उसके शुगर लेवल पर नज़र रखी जा सकें. उस दौरान हमारी सहमति के बगैर उसे फॉर्मूला मिल्क दिया गया. मैंने इसे कोई मुद्दा नहीं बनाया, क्योंकि मुझे सच में नहीं पता था कि यह अच्छा नहीं होता है और बच्चे को देने से पहले माता-पिता की सहमति लेना महत्वपूर्ण है. सौभाग्य से वह केवल एक दिन के लिए ही वहा रहा. लेकिन उसे डिस्चार्ज से पहले मुझे फिडिंग की कुछ दिक्क़तें आ रही थी. लेकिन मैंने सोचा कि यह केवल मेरे साथ हो रहा है. "
फॉर्मूला दूध के उपयोग की व्याख्या करते हुए, उन्होंने कहा, "अनिवार्य रूप से, फॉर्मूला दूध का उपयोग तब किया जाना चाहिए जब मां फ़ीड न करा सकें या मां स्तनपान कराने के लिए न हो. नवजात शिशु के लिए स्तनपान सबसे अच्छा विकल्प है. फ़ॉर्मूला केवल आपातकालीन स्थिती में उपयोग किया जाता है और तब ही जब कोई अन्य रास्ता नहीं होता है. यहां तक कि यदि आप बच्चे को फार्मूला मिल्क दे रहे हैं, तो माता-पिता की सहमति लेना चाहिये, क्योंकि यह स्तन दूध के मुकाबलें आसानी से पचाता नही है. यह एक विकल्प है, लेकिन स्तन दूध जितना अच्छा नहीं होता है. "
वर्गीस को फेसबुक समूह के माध्यम से अस्पतालों द्वारा इस तरह के प्रथाओं के बारे में पता चला. वह कहती हैं, "एक दोस्त ने मुझे एक समूह में जोड़ा," भारतीय माताओं के लिए स्तनपान सहायता ". उस समूह से, मैंने सीखा कि बहुत सी मां एक ही चुनौतियों से गुजरती हैं जिसका सामना मैंने किया. भारत के कई अस्पतालों में, बच्चे को माता-पिता की सहमति के बिना फार्मूला दिया जाता है. "
"तो मुझे एहसास हुआ कि यह एक बहुत ही आम समस्या है. माता-पिता की सहमति के बिना बहुत से बच्चों को फार्मूला मिल्क दिया जाता है. समूह के एडमिन आधुनिका प्रकाश और मधु पांडा ने अस्पतालों के लिए फार्मूला खिलाने से पहले माता-पिता की सहमति अनिवार्य करने के लिये इस याचिका को शुरू किया. उस समूह के पास लगभग 50,000 सदस्य थे, लेकिन मात्र 1,000 लोगों ने याचिका का समर्थन किया था. यह जानना बेहद निराशाजनक था कि लोग इसके लिये भी समर्थन नहीं कर रहे है. उसके बाद मैंने समूह एडमिन से संपर्क किया कि यह जानने के लिए कि मैं किस तरह मदद कर सकती हूं. "
उन्होंने आगे बताया, "इससे पहले, याचिका को एक समूह के रूप में चलाया गया था, लेकिन फिर एडमिन ने इसे एक निजी अभियान में बदलने का फैसला किया. मैं अभियान का हिस्सा बन गई क्योंकि मुझे इस समस्या का सामना करना पड़ा था. हालांकि मैं जल्द ही दूसरी याचिका के लिए तैयार नहीं था, क्योंकि इसमें बहुत समय, ऊर्जा और धैर्य लगता है. इसके अलावा, मैं एक कामकाजी महिला हूं और अब मुझे अपने बच्चे का भी ख्याल रखना होता है. लेकिन मैंने याचिका शुरु करने का फैसला किया क्योंकि मैं वास्तव में इस मुद्दें पर विश्वास करती हूं और बदलाव लाना चाहती हूं. शुरुआत में Change.org की याचिका में ज्यादा हस्ताक्षर प्राप्त नहीं हुए, लेकिन धीरे-धीरे गति बढ़ गई, खासकर जब इस पर मीडिया ने ध्यान दिया. अब तक इसमें 43,000 हस्ताक्षर हो चुके है."
इस मांग के बारे में बात करते हुए, उन्होंने कहा, "मैं चाहती हूं कि बच्चों को फॉर्मूला खिलाए जाने से पहले माता-पिता की सहमति ली जानी चाहिये और माता-पिता को शिक्षित किया जायें कि बच्चों को स्तनपान कराने के लिए उन्हें किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. उन्हें यह महसूस नहीं होना चाहिए कि स्तनपान कराने के दौरान आने वाली कठिनाइयों का सामना वह अकेले कर रहे है. यह आवश्यक है कि डॉक्टर माताओं को जागरूक करें कि स्तनपान कराने पर आपको कुछ समस्याएं आती हैं, क्योंकि यह एक आम चीज़ है. डॉक्टर आमतौर पर एक बहुत ही आम जवाब देते हैं कि इसमें समय लगेगा और चीजों का हल हो जायेंगा. लेकिन आपको आश्वासन की आवश्यकता होती है. इसलिए यह जरुरी है कि मां को पता चले कि भविष्य में ऐसी चीजें हो सकती हैं और चिंता करने की कोई बात नहीं है. बच्चे के पैदा होने के बाद माता-पिता को परामर्श जरुरी होता है ताकि वह स्थितियों का सामना कर सकें.
वर्गीस ने कहा, "देवेंद्र फडणवीस, पंकजा मुंडे और मेनका गांधी पहले ही याचिका के बारे में अपडेट प्राप्त कर रहे हैं. साथ ही, मैंने व्यक्तिगत रूप से मेनका गांधी को पत्र लिखा था जब मैंने याचिका शुरू की थी. इन मुद्दों को उठाने के लिए यह एक अच्छा समय है क्योंकि यह स्तनपान सप्ताह है, लेकिन मुझे अभी तक सरकार से कोई अपडेट नहीं मिला है. "
वर्गीस ने Change.org के माध्यम से एक याचिका बनाई है ताकि अस्पतालों से आग्रह किया जा सकें कि नवजात शिशुओं को फोरमुला मिल्क बगैर माता-पिता की सहमति के न दिया जा सकें. वर्गीस, जो प्रसूति विधेयक संशोधन के पीछे थी, ने पिछले साल सितंबर में एक और याचिका शुरू की थी. Change.org याचिका 'स्तनपान कराने के अधिकार' के बारे में थी. Shethepeople.tv ने उनसे इसके पीछे की कहानी और उद्देश्यों को लेकर बात की.
अपनी कहानी के बारे में बताते हुये वर्गीस ने कहा, "मैं पहली बार माँ बनी हूं, मेरा बच्चा पिछले साल फरवरी में पैदा हुआ था. जब मैं गर्भवती थी तब मुझे गर्भावस्था में मधुमेह था. मेरे बच्चे के जन्म के बाद उसे एनआईसीयू में रखा गया था ताकि उसके शुगर लेवल पर नज़र रखी जा सकें. उस दौरान हमारी सहमति के बगैर उसे फॉर्मूला मिल्क दिया गया. मैंने इसे कोई मुद्दा नहीं बनाया, क्योंकि मुझे सच में नहीं पता था कि यह अच्छा नहीं होता है और बच्चे को देने से पहले माता-पिता की सहमति लेना महत्वपूर्ण है. सौभाग्य से वह केवल एक दिन के लिए ही वहा रहा. लेकिन उसे डिस्चार्ज से पहले मुझे फिडिंग की कुछ दिक्क़तें आ रही थी. लेकिन मैंने सोचा कि यह केवल मेरे साथ हो रहा है. "
फॉर्मूला दूध के उपयोग की व्याख्या करते हुए, उन्होंने कहा, "अनिवार्य रूप से, फॉर्मूला दूध का उपयोग तब किया जाना चाहिए जब मां फ़ीड न करा सकें या मां स्तनपान कराने के लिए न हो. नवजात शिशु के लिए स्तनपान सबसे अच्छा विकल्प है. फ़ॉर्मूला केवल आपातकालीन स्थिती में उपयोग किया जाता है और तब ही जब कोई अन्य रास्ता नहीं होता है. यहां तक कि यदि आप बच्चे को फार्मूला मिल्क दे रहे हैं, तो माता-पिता की सहमति लेना चाहिये, क्योंकि यह स्तन दूध के मुकाबलें आसानी से पचाता नही है. यह एक विकल्प है, लेकिन स्तन दूध जितना अच्छा नहीं होता है. "
सोशल मीडिया जागरूकता फैला रहा है
वर्गीस को फेसबुक समूह के माध्यम से अस्पतालों द्वारा इस तरह के प्रथाओं के बारे में पता चला. वह कहती हैं, "एक दोस्त ने मुझे एक समूह में जोड़ा," भारतीय माताओं के लिए स्तनपान सहायता ". उस समूह से, मैंने सीखा कि बहुत सी मां एक ही चुनौतियों से गुजरती हैं जिसका सामना मैंने किया. भारत के कई अस्पतालों में, बच्चे को माता-पिता की सहमति के बिना फार्मूला दिया जाता है. "
"तो मुझे एहसास हुआ कि यह एक बहुत ही आम समस्या है. माता-पिता की सहमति के बिना बहुत से बच्चों को फार्मूला मिल्क दिया जाता है. समूह के एडमिन आधुनिका प्रकाश और मधु पांडा ने अस्पतालों के लिए फार्मूला खिलाने से पहले माता-पिता की सहमति अनिवार्य करने के लिये इस याचिका को शुरू किया. उस समूह के पास लगभग 50,000 सदस्य थे, लेकिन मात्र 1,000 लोगों ने याचिका का समर्थन किया था. यह जानना बेहद निराशाजनक था कि लोग इसके लिये भी समर्थन नहीं कर रहे है. उसके बाद मैंने समूह एडमिन से संपर्क किया कि यह जानने के लिए कि मैं किस तरह मदद कर सकती हूं. "
माता पिता की सहमति के बिना बच्चों को फार्मूला मिल्क नहीं देना चाहिए
उन्होंने आगे बताया, "इससे पहले, याचिका को एक समूह के रूप में चलाया गया था, लेकिन फिर एडमिन ने इसे एक निजी अभियान में बदलने का फैसला किया. मैं अभियान का हिस्सा बन गई क्योंकि मुझे इस समस्या का सामना करना पड़ा था. हालांकि मैं जल्द ही दूसरी याचिका के लिए तैयार नहीं था, क्योंकि इसमें बहुत समय, ऊर्जा और धैर्य लगता है. इसके अलावा, मैं एक कामकाजी महिला हूं और अब मुझे अपने बच्चे का भी ख्याल रखना होता है. लेकिन मैंने याचिका शुरु करने का फैसला किया क्योंकि मैं वास्तव में इस मुद्दें पर विश्वास करती हूं और बदलाव लाना चाहती हूं. शुरुआत में Change.org की याचिका में ज्यादा हस्ताक्षर प्राप्त नहीं हुए, लेकिन धीरे-धीरे गति बढ़ गई, खासकर जब इस पर मीडिया ने ध्यान दिया. अब तक इसमें 43,000 हस्ताक्षर हो चुके है."
परिवर्तन की दिशा में एक कदम
इस मांग के बारे में बात करते हुए, उन्होंने कहा, "मैं चाहती हूं कि बच्चों को फॉर्मूला खिलाए जाने से पहले माता-पिता की सहमति ली जानी चाहिये और माता-पिता को शिक्षित किया जायें कि बच्चों को स्तनपान कराने के लिए उन्हें किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. उन्हें यह महसूस नहीं होना चाहिए कि स्तनपान कराने के दौरान आने वाली कठिनाइयों का सामना वह अकेले कर रहे है. यह आवश्यक है कि डॉक्टर माताओं को जागरूक करें कि स्तनपान कराने पर आपको कुछ समस्याएं आती हैं, क्योंकि यह एक आम चीज़ है. डॉक्टर आमतौर पर एक बहुत ही आम जवाब देते हैं कि इसमें समय लगेगा और चीजों का हल हो जायेंगा. लेकिन आपको आश्वासन की आवश्यकता होती है. इसलिए यह जरुरी है कि मां को पता चले कि भविष्य में ऐसी चीजें हो सकती हैं और चिंता करने की कोई बात नहीं है. बच्चे के पैदा होने के बाद माता-पिता को परामर्श जरुरी होता है ताकि वह स्थितियों का सामना कर सकें.
"स्तनपान और स्तनपान के महत्व के बारे में सरकार की तरफ से जागरूकता की बहुत कमी है. लेकिन वास्तव में कोई भी इसके आसपास की समस्याओं के बारे में बात नहीं करता है. माता-पिता द्वारा सामना किए जाने वाले मुद्दों के बारे में शिक्षित करना सिस्टम में कमी का कारण है और यह बहुत जरूरी है."
वर्गीस ने कहा, "देवेंद्र फडणवीस, पंकजा मुंडे और मेनका गांधी पहले ही याचिका के बारे में अपडेट प्राप्त कर रहे हैं. साथ ही, मैंने व्यक्तिगत रूप से मेनका गांधी को पत्र लिखा था जब मैंने याचिका शुरू की थी. इन मुद्दों को उठाने के लिए यह एक अच्छा समय है क्योंकि यह स्तनपान सप्ताह है, लेकिन मुझे अभी तक सरकार से कोई अपडेट नहीं मिला है. "