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#WomenWritersFest के पहले पैनल ने गहराई से विचार किया गया कि एक मजबूत महिला कैसी होनी चाहिए. पैनल को फ्रीलांस लेखिका और संपादक, संध्या मेनन द्वारा संचालित किया गया था. चार वक्ताओं में श्राबोंटी बागची, शैली चोपड़ा, वर्षा एडुसुमिली, प्रिया रमन मौजूद थी.
संध्या ने कहा कि हम लगातार सफल लोगों से बात करते है और उनकी सफलताओं की बात करते है. वास्तव में हमें उन सामान्य महिलाओं के बारे में बात करना शुरू करना होगा जो अपने आप में सफल हैं.
प्रिया रमनी ने उल्लेख किया कि उन्हें नायिका की सबसे उपयुक्त परिभाषा क्या लगती है. "वह एक औरत है जो मौजूदा स्थिति को चुनौती देती है, बिना किसी डर के आगे बढ़ती है और बने हुये नियमों को तोड़ती है. निडरता न केवल मजबूत बनाती है बल्कि आगे बढ़ने में मदद भी करती है.
शैली चोपड़ा ने रोजमर्रा के नारीवाद के बारे में अपने विचार व्यक्त किये. उन्होंने कहा,
मॉडरेटर ने महत्वपूर्ण रूप से इस तथ्य को सामने लाया कि चुप रहने में भी बहुत ताकत है. पैनल ने चर्चा में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि कैसे कई महिलाओं में बहुत ताक़त होती है और वह आती है उनके अनुभव से.
"एक शक्तिशाली महिला का हमारा विचार केवल कुछ भूमिकाओं तक ही सीमित है. हमें उससे ऊपर उठने की जरूरत है, "- अकेली अवारा आजाद
श्रबोंटी बागची ने कहा कि जब हम महिलाओं के वृतांत की बात करें तो हमें उन्हें उनकी ख़ुद की कहानियों को लेकर आगे बढ़ायें. उन्होंने आगे कहा, "जब महिलाओं के बारे में लिखने की बात आती है तो हम संपादक के रूप में हमेशा बैठकर यह चुनाव नही कर सकते कि हमें किस कहानी को आगे बढ़ाने की जरूरत है. हमें महिलाओं को अपनी कहानियों का बताने के लिये सक्षम बनाना चाहिये और डिजिटल मीडिया एक अच्छा प्लेटफार्म है."
वर्षा एडुसुमिली ने कुछ तथ्यों और शोधों के बारे में बताया कि किस तरह से कार्यबल में सिर्फ 27% महिलाएं हैं, हम सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राष्ट्रों में से एक हैं.
वर्षा की पुस्तक वंडर गर्ल्स नियमित लड़कियों पर आधारित है. उन्होंने विस्तार से बताया, "लड़कियां शिक्षित हो रही हैं लेकिन वे वास्तव में शौक वाला करियर नही चुन रही है. 20 वर्षीय बच्चों के लिए उन्हें अपनी पसंद के करियर को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाने के लिए और अधिक प्रोत्साहन की आवश्यकता है. अफसोस की बात है, ऐसा कई क्षेत्रों में नही हो रहा है."
पैनल ने भारतीय टेलीविजन पर महिलाओं के चित्रण के बारे में भी चर्चा की. उन्होंने बताया कि किस तरह से शो में महिलाओं को चित्रित किया जाता है जिससे नारीवाद के पूरे विचार को कमतर बना दिया जाता है.
वर्षा सही तरीके से बताती है कि कैसे पुरुषों को महिलाओं के उत्थान में शामिल किया जाना चाहिए. वह कहती है, "पुरुष, महिलाओं के संघर्षों से बहुत अधिक ताकत प्राप्त कर सकते हैं."
प्रिया ने बदलते समय के बारे में बात कि, जब महिलाओं को विशेष रूप से खेल में स्वीकार करने की बात आने लगी. उन्होंने कहा, "ऐसा समय था जब हमें भारतीय महिला एथलीटों और खेल व्यक्तित्वों के बारे में शायद ही पता था. अब हम बहुत सारे नाम देख रहे हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम उन्हें पहचानते हैं. "
संध्या ने कहा कि कैसे ऐतिहासिक रूप से महिलाएं हमेशा नियम तोड़ने वाली रही हैं. अब, हालांकि, उनकी कहानियों के लिए अधिक दर्शक मौजूद हैं.
पैनल ने इस बारे में भी बात कि की किस तरह से कितनी महिलाओं ने पितृसत्तात्मक रहना ही बेहतर समझा क्यों कि वे उसके कामकाज से पूरी तरह से सहमत थी.
श्रबोंटी का मानना है कि आसपास के लोगों को प्रेरित करने के लिए कभी भी एक विचार नहीं हो सकता है. उन्होंने विस्तार से बताया, "हमें विभिन्न चीजों के बारे में बात करने के लिए खुलेपन का माहौल बनाना होगा; तभी महिलाएं एक-दूसरे से अपनी बात कहेंगी, सशक्त बनेंगी और प्रेरित करने में सक्षम होंगी. "
मौजूद दर्शकों ने एक दिलचस्प चर्चा में भाग लिया कि, कैसे लड़कियों और महिलाओं को सशक्त बनाने की आवश्यकता है ताकि हर कहानी को हर स्तर पर महत्व देकर सुना जा सकें. प्रत्येक कहानी अलग-अलग तत्वों को लेकर बनती है और प्रेरित करती है.
पैनल ने महिलाओं को अपनी आवाज में बात करने और अपनी कहानियों की ख़ुद जिम्मेदारी लेने वाली बनने का बात कही. क्योंकि एक औरत जब स्वंय बोलती है और अपनी कहानी को आगे लाती है तो उससे अधिक प्रभावशाली कुछ नही होता है.
शक्तिशाली महिला को कैसे परिभाषित किया जा सकता है?
संध्या ने कहा कि हम लगातार सफल लोगों से बात करते है और उनकी सफलताओं की बात करते है. वास्तव में हमें उन सामान्य महिलाओं के बारे में बात करना शुरू करना होगा जो अपने आप में सफल हैं.
प्रिया रमनी ने उल्लेख किया कि उन्हें नायिका की सबसे उपयुक्त परिभाषा क्या लगती है. "वह एक औरत है जो मौजूदा स्थिति को चुनौती देती है, बिना किसी डर के आगे बढ़ती है और बने हुये नियमों को तोड़ती है. निडरता न केवल मजबूत बनाती है बल्कि आगे बढ़ने में मदद भी करती है.
फेमिनिस्ज़म
शैली चोपड़ा ने रोजमर्रा के नारीवाद के बारे में अपने विचार व्यक्त किये. उन्होंने कहा,
"महिलाओं को एक मंच की आवश्यकता होती है जहां उनकी कहानियों को सुनाया जा सके और बताया जा सकें. SheThePeople वही ज्यादा से ज्यादा करना चाहता है."
मॉडरेटर ने महत्वपूर्ण रूप से इस तथ्य को सामने लाया कि चुप रहने में भी बहुत ताकत है. पैनल ने चर्चा में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि कैसे कई महिलाओं में बहुत ताक़त होती है और वह आती है उनके अनुभव से.
"एक शक्तिशाली महिला का हमारा विचार केवल कुछ भूमिकाओं तक ही सीमित है. हमें उससे ऊपर उठने की जरूरत है, "- अकेली अवारा आजाद
श्रबोंटी बागची ने कहा कि जब हम महिलाओं के वृतांत की बात करें तो हमें उन्हें उनकी ख़ुद की कहानियों को लेकर आगे बढ़ायें. उन्होंने आगे कहा, "जब महिलाओं के बारे में लिखने की बात आती है तो हम संपादक के रूप में हमेशा बैठकर यह चुनाव नही कर सकते कि हमें किस कहानी को आगे बढ़ाने की जरूरत है. हमें महिलाओं को अपनी कहानियों का बताने के लिये सक्षम बनाना चाहिये और डिजिटल मीडिया एक अच्छा प्लेटफार्म है."
हर रोज नारीवाद
वर्षा एडुसुमिली ने कुछ तथ्यों और शोधों के बारे में बताया कि किस तरह से कार्यबल में सिर्फ 27% महिलाएं हैं, हम सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राष्ट्रों में से एक हैं.
वर्षा की पुस्तक वंडर गर्ल्स नियमित लड़कियों पर आधारित है. उन्होंने विस्तार से बताया, "लड़कियां शिक्षित हो रही हैं लेकिन वे वास्तव में शौक वाला करियर नही चुन रही है. 20 वर्षीय बच्चों के लिए उन्हें अपनी पसंद के करियर को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाने के लिए और अधिक प्रोत्साहन की आवश्यकता है. अफसोस की बात है, ऐसा कई क्षेत्रों में नही हो रहा है."
पैनल ने भारतीय टेलीविजन पर महिलाओं के चित्रण के बारे में भी चर्चा की. उन्होंने बताया कि किस तरह से शो में महिलाओं को चित्रित किया जाता है जिससे नारीवाद के पूरे विचार को कमतर बना दिया जाता है.
"हमें विभिन्न चीजों के बारे में बात करने के लिए खुलेपन का माहौल बनाना होगा; तभी महिलाएं एक-दूसरे से अपनी बात कहेंगी, सशक्त बनेंगी और प्रेरित करने में सक्षम होंगी. " - श्रबोंटी
वर्षा सही तरीके से बताती है कि कैसे पुरुषों को महिलाओं के उत्थान में शामिल किया जाना चाहिए. वह कहती है, "पुरुष, महिलाओं के संघर्षों से बहुत अधिक ताकत प्राप्त कर सकते हैं."
प्रिया ने बदलते समय के बारे में बात कि, जब महिलाओं को विशेष रूप से खेल में स्वीकार करने की बात आने लगी. उन्होंने कहा, "ऐसा समय था जब हमें भारतीय महिला एथलीटों और खेल व्यक्तित्वों के बारे में शायद ही पता था. अब हम बहुत सारे नाम देख रहे हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम उन्हें पहचानते हैं. "
संध्या ने कहा कि कैसे ऐतिहासिक रूप से महिलाएं हमेशा नियम तोड़ने वाली रही हैं. अब, हालांकि, उनकी कहानियों के लिए अधिक दर्शक मौजूद हैं.
पैनल ने इस बारे में भी बात कि की किस तरह से कितनी महिलाओं ने पितृसत्तात्मक रहना ही बेहतर समझा क्यों कि वे उसके कामकाज से पूरी तरह से सहमत थी.
श्रबोंटी का मानना है कि आसपास के लोगों को प्रेरित करने के लिए कभी भी एक विचार नहीं हो सकता है. उन्होंने विस्तार से बताया, "हमें विभिन्न चीजों के बारे में बात करने के लिए खुलेपन का माहौल बनाना होगा; तभी महिलाएं एक-दूसरे से अपनी बात कहेंगी, सशक्त बनेंगी और प्रेरित करने में सक्षम होंगी. "
मौजूद दर्शकों ने एक दिलचस्प चर्चा में भाग लिया कि, कैसे लड़कियों और महिलाओं को सशक्त बनाने की आवश्यकता है ताकि हर कहानी को हर स्तर पर महत्व देकर सुना जा सकें. प्रत्येक कहानी अलग-अलग तत्वों को लेकर बनती है और प्रेरित करती है.
पैनल ने महिलाओं को अपनी आवाज में बात करने और अपनी कहानियों की ख़ुद जिम्मेदारी लेने वाली बनने का बात कही. क्योंकि एक औरत जब स्वंय बोलती है और अपनी कहानी को आगे लाती है तो उससे अधिक प्रभावशाली कुछ नही होता है.